Monday 4 May 2015

कांड 8 -प्रेम पत्र

Model: Madhuri Gautam /Photography: Vicku Singh, Gaurav Sharma & Rishu Kaushik/ Makeup: Gagz Brar

मायूस होकर मुझे अपनी जिंदगी से इस तरह नफरत हो गई थी कि मेरा दिल करता था कि मैं मर जाऊं। यकीन करो तो मैंने ऐसा करने की कोशिश भी की थी।  अममी कभी-कभार डिप्रेशन तथा नींद की जो गोलीयां खाया करती थी, मैं उनकी शीशी उठाकर सारी की सारी खाने लगी थी। गोलीयां खाकर आत्महत्या करने से पहले मेरे मन में आया कि क्यों न मैं मरने से पहले अपनी वसीयत कर दूं। ऐसा करने के लिये मैं किताबों वाली दुकान डब्लू.एच.समिथ से बहुत समय पहले अब्बा के लिये लाया गया। सरकार से प्रमाणित वसीयतनामा उठाया तथा लिख मारा।


वसीयत
मेरा तन, मन तथा धन, यानि कि हर चीज का मालिक व हकदार सिर्फ मेरा महबूब इकबाल सिंह है।

मैं शाजीया खान अपने पूरे होशों-हवास में बिना किसी किस्म के दबाव या मजबूरी के यह तस्दीक करती हूँ कि ऊपर दिया गया विवरण मेरी जानकारी के अनुसार बिल्कुल सच व सही है।
दस्तखत
शाजीया खान

यह सनद लिखने के बाद मुझे अपनी मूर्खता पर हंसी आई। मेरे पास ऐसा था ही क्या, जो मैं इकबाल के लिये छोड़कर मरती। धन मेरे पास था ही नहीं। मन पहले से ही इकबाल के पास था तथा तन? तन, मेरी मौत के बाद कब्र में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया जायेगा। इकबाल को तो कोई मेरी लाश को हाथ भी नहीं लगाने देता। मिट्टी में दफनाई हुई मेरी मृतक देह भी समय के साथ मिट्टी ही बन जानी थी।

मेरा जो कुछ भी था, इसमें तो कोई गुंजाइश नहीं थी कि वह सब इकबाल की अमानत थी। मुझे वसीयत या ऐलान करने की तो कोई जरूरत ही नहीं थी। हाथ में पकड़ी मजाक की तरह लिखी वसीयत की कापी को फिर से पढ़ते हुये मुझे एक स्कीम दिमाग में आई कि क्यों न मैं इकबाल को एक चिट्ठी लिखकर उसमें अपनी सारी भावनाएं प्रकट कर दूं। काफी समय से इकबाल से टूटे संबंधों को सुधारने का इससे बढिय़ा और कोई माध्यम नहीं हो सकता था। इसलिये मैंने चिट्ठी लिखने का पक्का इरादा कर लिया था।

मेरा दिमाग बिल्कुल काम नहीं कर रहा था। इकबाल को मिलने के सभी तरीके फेल हो गये थे। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था तथा न ही कोई रास्ता नजर आ रहा था। इकबाल के साथ कोई संपर्क न होने के कारण तथा खुद-ब-खुद अपने ही मन को झूठी तसल्ली व दिलासा देने के लिये मैंने चिट्ठी के द्वारा उसके साथ संपर्क कायम करने के बारे में सोचा था। मैंने उससे पहले अपने जीवन में कभी भी प्रेम-पत्र नहीं लिखे थे। इसी लिये मुझे बिल्कुल ही पता नहीं था कि लव-लैटर्ज कैसे लिखे जातेे हैं। फिर भी, ''देअरज फस्र्ट टाईम फार ऐवरीथिंग" कहकर मैंने कागज पैन उठाया तथा पत्र लिखने का बिस्मिलाह कर दिया था----

सोच-विचार कर एक दो शब्द लिखे थे, लेकिन वह बात नहीं बनी थी जो मैं चाहती थी। मैंने पन्ना फाड़ दिया था। फिर नया शुरू किया तथा कुछ लाईनें लिखीं। लेकिन उसमें मेरी लिखाई कोई ज्यादा बढिय़ा नहीं थी। ऐसे ही कीड़े-मकौड़े से अक्षर लग रहे थे। मैंने उसे भी तोड़-मरोड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया था। फिर से नये कागज पर लिखने लगी थी। फिर उसमें भी गलती हो गई थी तथा मैंने उसे गुच्छा-मुच्छा करके गेंद बना दी थी। नये सिरे से फिर लिखने लगी थी।---। इस तरह करते-करते मेरा लैटरपैड खाली होता गया तथा कूड़ेदान भरता चला गया। ऐसे ही समय की बरबादी तथा कोई प्राप्ति न होती देखकर मैंने अपने आपको झिंझोड़कर अपना दिलो-दिमाग टिकाया व एकाग्रचित होकर खुशखत लिखाई में धीरे-धीरे पायलट पैन से पत्र लिखने बैठ गई थी।----

स्थान-सुनसान सेज, स्वपन नगरी
समय-तारों भरी आधी रात
सारी दुनियां से निराले तथा जान से प्यारे इकबाल,
गलबहीयां डालकर होठों पर दहकता चुंबन।

ऐ मेरे महिबूब, उमीद है तुहारी सेहत पहले से कुछ अच्छी होगी। आगे समाचार यह है कि मेरा तो यहां पर बुरा हाल हुआ पड़ा है। तुहारे बिछोड़े में मैं ऐसे जल रही हूँ, जैसे तन्दूर में मुर्गा भुना जाता है। उस दिन प्रयोगशाला में हुये हादसे के लिये मैं तुहारे पैर पकड़कर माफी मांगती हूँ। मुझे आपके साथ खफा नहीं होना चाहिये था। आपको डांटने का तो मुझे बिल्कुल भी हक नहीं था। मैं कोई तुहारी मां थोड़े हूँ? जबकि हर बात प्यार से समझाई जा सकती है। मुझे उस दिन तकरार तो करना ही नहीं चाहिये था। फिर आप भी तो कोई मूर्ख या पागल नहीं हो। आप तो बहुत ही सयाने व समझदार हैं। आप तो पंडित गरशीन, प्लेटो तथा अफलातून से भी  सुलझे हुये विद्वान हो। मैं कहूंगी, कि आप ब्रह्मज्ञानी हैं। जिस बौधिक व विचारक स्तर तक तुहारी पहुँच है, मेरा विचार है कि अपने स्कूल का और कोई भी लड़का वहां तक नहीं पहुँच सकता। अगर मैं तरीके से अपनी बात कहती तो आपने सब समझ जाना था। पर क्या करूं? आप तो जानते ही हैं कि मैं अभी बच्चा-बुद्धि हूँ तथा मौके पर सोचती नहीं कि मैं क्या कह रही हूँ। जो मुँह में अनाप-शनाप आया, वही बक देती हूँ। सच मानना, उसके बाद मैं बहुत पछताई थी। मुझे अपनी बददिमागी पर बहुत गुस्सा आया था। मेरा दिल करे कि अपना मुँह अपने ही थप्पड़ों से पीट लूँ। अल्लहा कसम, मैं अब तक उस बीते समय का अफसोस कर रही हूँ। उस दिन से लेकर मैंने आज तक एक बार भी हंसकर नहीं देखा है। दिन रात उदासी मुझे घेरे रखती है। सबसे छिप-छिपकर मैं इतना रोई हूँ कि पूछो मत।
वह पंजाबी गायक अकरम राही का गाना है न, दुनियां तो लुक-लुक असीं रोंदे रहे, तेरीयां जुदाईयां वाले दाग धोंदे रहे, बस यही हालत मेरी है। मैं समझती हूँ कि आंसू बहाना ही आपके दिल को तोडऩे का मेरा प्रायश्चित है। कितना समय हो गया है, तुहारी रब्ब जैसी सूरत देखे हुये। तुमने तो स्कूल आना तथा अपनी शक्ल दिखानी ही छोड़ दी है। बहाने बनाना व नाटक करना तो कोई आपसे सीखे। तुम डाक्टरों, अध्यापकों व अपने घर वालों को बेवकूफ बना सकते हो, लेकिन मेरी आंखों में धूल नहीं झोंक सकते। मैं तुहारी नस-नस से वाकिफ हूँ। मैं जानती हूँ कि तुम मुझसे बचते हो। कहते हैं, ''बिमार हूँ" बड़े मरीज बनते हो। जनाब असली मरीज तो हम हैं, जिन्हें तुहारे प्रेम का बुखार चढ़ा हुआ है। हमारी मर्ज-ए-इश्क के मारों की तो वह हालत है जिसके बारे में बाबा बुल्लेशाह ने कहा है, ''बहुड़ीं बे तबीबा मैंडी जिंद गई आ, तेरे इश्क नचाया, थैया, थैया, थैया।"

तुहारे प्यार का कत्थक करते-करते मेरे पैर दर्द करने लगे हैं। लेकिन मैंने नाचते रहना है, रूकना नहीं। इकबाल शायद तुहें अंदाजा नहीं है कि मैं तुहारी बिरहा की पीड़ा कितनी मुश्किल से सन कर रही हूँ। समझदार व्यक्तियों ने कहा है कि 'पीड़ हिजर दी, ते जम जिगर दा', ये दोनों ही इतने बुरे होते हैं कि इन बिमारीयों से इन्सान अपनी जान से हाथ धो बैठता है। क्या मेरे छोटे से गुनाह की इतनी बड़ी सजा, जो मैंने अब तक भुगती है, वह काफी नहीं? मेरा तुहारे आगे निवेदन है कि प्लीज----प्लीज-----प्लीज---- मुझे मेरी जान बनकर माफ कर दो?

मैं जानती हूँ कि मेरे हजूर बहुत दयालू, कृपालू व दरिया दिल हैं। इसलिये आशा करती हूँ कि आप मुझे नादान समझकर माफ कर देंगे। इकबाल तुहारे चरनों में सारी उम्र के लिये एक यही निवेदन है मुझे अपनी जुदाई में न तडफ़ाना तथा सदैव अपने अंग-संग रखना। मैं तहारे कदमों की दासी बनकर रहूंगी। बाकी अब तक हुई गुस्ताखीयों की तुम जो सजा मुझे दोगे, मैं वह हंसते-हंसते कबूल कर लूंगी।

हां सच, सनम, एक तुहारे साथ ही गिला है, तुम बहुत ही भावुक हो। पागल, इतना भावुक नहीं होते। सुना है, भावुक इन्सानों को जिंदगी में काफी दुख उठाने पड़ते हैं। अपने जज्बातों को काबू रखा करो। मैं भी कितनी बेवकूफ हूँ। तुहें अकल दे रही हूँ। मैं खुद कौनसा कम हूँ? मैं खुद भी तो बेहद भावुक हूँ। शायद मुहब्बत करने वाला हर दिल ही इसी तरह का होता है। उस दिन हमारे बीच नोंक-झोंक हुई, तुम तो गुब्बारे की तरह मुँह फुलाकर घर को भाग गये। अपनों के साथ कभी इस तरह भी लड़ते हैं? इस तरह औरतों की तरह रूठना आपने कहां से सीखा है?

इकबाल, तुहारे उस दिन वहां से जाने के पल से लेकर अब तक गुजारे वक्त का लेखा-जोखा लिखने से पहले मैं तुहारा साथ कुछ और बातें सांझा करना चाहती हूँ। इस चिट्ठी के द्वारा मैं अपने कुछ अहसासों को शब्दों का लिबास पहनाकर आपके पास भेज रही हूँ। ज्यों ही कोई लड़की बचपन की तंग पोशाक उतारकर जवानी का खुला-सा चोला पहनती है तो उसकी आंखें जरूर कोई न कोई सपना देखती हैं। उसकी कल्पना में कोई न कोई शहजादा, कोई हीरो बस जाता है तथा मेरे वह 'ही मैन' तुम हो। सिर्फ ही मैन ही नहीं, रॉबिन हुड, रैंबो, हरकुलीस, टारजन, सुपरमैन, स्पाइडरमैन सब कुछ तुम हो।      

भगवान की लीला देखो, सारी दुनिया मेरे पीछे लगी हुई है, तथा मैं तुहारे पीछे। सच में मेरी तो वही पंजाबी लोक गीत, ''लॅगी तेरे मगर (पीछे) फिरां, की घोल के तबीत (ताबीज) पिलाये' वाली हालत है। तुम तो जानते ही हो कि मैं तुहारे सिवाए किसी और को अपने नजदीक तो क्या हाथ भी नहीं लगाने देती। तुहारी बात और है। तुहें तो मेरा दिल करता है कि मैँ सुपर गलू (गोंद) लगाकर अपने साथ चिपका लूं। तुहें देखते ही मुझे न जाने क्या हो जाता है। मेरे एकदम होश गुम होकर उड़ जाते हैं। मेरा शरीर इस तरह से सुन्न हो जाता है, जैसे हाइड्रोकोरटीसोन का इन्जेक्शन लगाने पर होता है। मैं घबरा जाती हूँ। तुहारे सामने आकर मेरा दिल धक-धक नहीं खड़ -खड़ करने लग जाता है। तुम क्यों मुझे इतने अच्छे लगते हो? इस प्रश्न का जबाव तो खुद मुझे भी नहीं पता। तुहें देखते ही मुझे अहसास होने लगता है कि मेरी रूह का साथी मिल गया है। आंखें बंद करते ही मुझे तुहारी तस्वीर ऐसे दिखाई देती है, जैसे रात के अन्धेरे में जुगनू चमकते हों। मेरे दिल-ओ-दिमागग पर हर समय तुहारे खयालों के बादल छाये रहते हैं।

तुम भी मेरे सिवाए किसी और लड़की में दिलचस्पी नहीं लेते थे। लेकिन जब मैंने तुहें तथा इजबल को स्कूल के खेल ग्राऊंड में मुँह में मुँह डाले चूमते देखा था तो मेरे हाथों के तोते उड़ गये थे। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी। मुझे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं आया था।

''नहीं, ये नहीं हो सकता", कहकर मैंने अपने सिर को झटका था। मुझे इससे पहले कभी भी तुहारी इजबल से प्रेम कहानी की जरा भी जानकारी नहीं थी। कब, कहां और कैसे यह सिलसिला शुरू हुआ था? कितनी देर से तुहारा यह गड़बड़ झाला चल रहा था? मैं इसके बारे में जरा भी नहीं जानती थी। तुम दोनों को लिपटा देखकर मैं दंग रह गई थी। मुझे इजबल से बहुत जलन हुई थी।
वैसे इजबल भी कोई ऐसी वैसी वस्तु नहीं है। सुन्दर तो है ही, शरीर भी साली का बहुत बढिय़ा है। पूरी तरह से फिट है। सुना है हर रोज जिमनेजीयम जाती है। ऐरोबिक्स क्लासें भी ज्वाइन की हुई है उसने तो। तुहारा उसके साथ जोर-शोर से इश्क चल रहा था। इस लिये मैं तुमसे दूर रहने का यत्न करने लगी। चाहे लाख मैं अपने दिल को बचा-बचाकर रखती, लेकिन फिर भी तुहारे प्यार की लहरें मेरे अन्दर तूफान पैदा करने से बाज नहीं आती थीं। चाहे मैं मूर्तीपूजा के खिलाफ हूँ, लेकिन तुहारे कारण मुझे मूर्तीपूजक बनना पड़ गया है। मैं अपने मन-मंदिर में तुहारी मूर्ती स्थापित करके दिल में ही तुहारी पूजा करती रहती थी। मुझे अपने प्यार व भक्ति पर पूरा यकीन था। मुझे विश्वास था कि मेरी यह तपस्या बेकार नहीं जायेगी। एक न एक दिन तुहारा व मेरा मिलन होकर रहेगा। फिर तुहारा इजबल से संबंध टूट गया था। अब तक यह बात भेद बनी हुई थी तुहारा व इजबल का तोड़-बिछोड़ा क्यों हुआ था। तुम तो इजबल के साथ घी-खिचड़ी बने हुये थे। यह रहस्य तो मुझे इजबल की बहन लिली से ही पता चला था। उनके गार्डन शैड में जो झूला लगा हुआ था, सुना है तुम इजबल के उस झूले पर बैठे झूल रहे थे। झूलते-झूलते तुहारा मूड बन गया था तथा तुम दोनों 'कुछ' करने वाले थे। ऊपर से इजबल की बड़ी बहन लिली आ गई तो तुम लोग सावधान हो गये थे। सच या झूठ? इजबल तहारे पीने के लिये गर्म चाकलेट बनाने रसोई में चली गई थी तथा पीछे से लिली तुहारे गले पड़ गई कि, 'जो मेरी बहन के साथ करना था, वही मेरे साथ भी कर।"

उसने तुहारी गोद में अपना सिर रखकर लेटते हुये अपने ब्लाऊज में तहारा हाथ डलवाना चाहा था तथा तुम उठकर दूर हो गये थे। लिली ने तुहें उकसाने के लिये अपने ब्लाऊज के सारे बटन भी खोल दिये थे। तभी इजबल आ गई तथा तुमने उसे सारी बात बता दी थी। लिली इजबल के सामने अपना दांव बदल गई थी। उसने तुहारी बात का खंडन करके, उल्टा तुहारे ऊपर ही दोष मड़ दिया था कि तुम उसके साथ धक्का कर रहे थे। तुम उसका रेप करना चाहते थे। इसलिये तुमने उसके कपड़े उतारने की कोशिश की थी। लेकिन इजबल भी पूरी चालाक थी। उसने अपनी बहन को यह कहकर पैरों से निकाल लिया था कि अगर इकबाल धक्केशाही करना चाहता था तो उसने भी अपना कोई न कोई कपड़ा जरूर उतारा होता। सिर्फ तुहारे कपड़ों के बटन ही क्यों खुले हैं? इस तरह लिली से इजबल की इस दलील ने सच उगलवा लिया था।

दोनों बहनें तुहारे सामने ही मारपीट व गाली-गलौज पर उतर आई थीं। बिल्लीयों की तरह लड़ते हुये एक दूसरे का मुँह नोच डाला था। बाद में वे दोनों एक दूसरी से बोली नहीं थी। कई दिनों के बाद इजबल के माता-पिता ने बीच पड़कर दोनों बहनों का राजीनामा करवाया था तथा इजबल पर तहारे साथ मेल-जोल न रखने की शर्त लगा दी थी। इस तरह तुहारा व इजबल का संबंध टूट गया था।

जब मुझे तुमने इजबल से अपने संबंध टूटने के बारे में बताया था तो मेरा दिल करे कि मिठाईयां बांटूं। इतनी खुशी थी मुझे। तुहारे जैसा हीरा मिल जाने की उमीद बंध गई थी।

फिर वह सिनेमा हाल वाली घटना तो एकदम हमें पास ले आई थी। अगर मैं बिमार न होती तो हम लोग कब के एक हो गये होते। मेरा यकीन करो। मुझे अपने हुस्न की सौगंध, जब तक मैं बिमार रही तुहारे लिये ही तडफ़ती रही थी। यहां तक कि कई बार तो मैं तुहारा नाम लेकर मास्टरबेट भी किया करती थी।

आपने मुझे बड़े ही प्यार से कार्ड भेजा था। उसे पढ़कर मुझे उसमें अनूठी तडफ़ दिखाई दी थी। एक शब्दों में न कहा जाने वाला खुशनुमा अनुभव हुआ था। ऐसे लगा था जैसे परवरदिगार (भगवान) ने मेरी छोटी सी झोली में असंय खुशीयां भर दी हों। तहारी शहद से भी मीठी मधुर यादों के सहारे ही मैं बिमारी से लड़ती रही थी। मुझे तो बामुश्किल वह दिन आया था जब मैं ठीक होकर स्कूल आई थी। उस दिन भी मनहूस घड़ी अपना हाथ दिखाने से बाज नहीं आई थी। तुम नाराज होकर चले गये थे तथा उसके बाद आज तक मेरा संपर्क नहीं हो सका।

मैं सोचती थी कि तुम इजबल की पार्टी पर जरूर पहुंचोगे। स्पैशल दर्शन करने के लिये मैं हथेली पर जान रखकर वहां गई थी। लेकिन तुम नहीं आये। सोहनी चिनाब नदी तैरकर जाया करती थी तो आगे से महीवाल भी उसे भागकर मिलता था। लेकिन तुम तो महीवाल से भी गये-गुजरे निकले। अगर पार्टी पर आते तो मैं तुहारी सारी शिकायतें दूर कर देती। तहारे बगैर मुझे पार्टी का बिल्कुल मजा नहीं आया था। अगर तुम वहां होते तो हम लोग पार्टी से खिसककर कहीं और चले जाते। तुहारा क्या विचार है, मुझसे संभाली जा रही है जवानी की यह आग? अपनी ही जवानी की आग में मैं खुद ही भस्म होती जा रही हूँ। इस बेमिसाल हुस्न के धधकते अंगारों को अगर तुम फूंक मारकर बुझाओ तो बुझें, नहीं तो ये जल-जल कर ही तबाह हो जायेंगे।

अब तो बस मुझे बेसब्री से उस पल का इंतजार है जब तुम मेरे सामने होंगे इकबाल? अक्सर मैं अकेली बैठकर सोचती हूँ कि कितनी अजीब बात है। हमारे आस-पास लाखों चेहरों की भीड़ रहती है। लेकिन पता नहीं क्यों, कोई चेहरा हमें कुछ ज्यादा ही अच्छा लगने लगता है तथा हमारे दिल मे अंदर त∙ उतर जाता है,मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि मैं तुहें इतना ज्यादा चाहने लगूंगी। खुद अपने आप को भी भूल गई हूँ। मुझसे तो इबादत भी नहीं की जाती। बंदगी करने के लिये हाथ ऊपर उठाती हूँ तो हाथों की लकीरों पर तुहारा चेहरा उभर आता है। आंखें बंद करती हूँ तो भी तुम दिखाई देते रहते हो। हर समय दिमाग में तुहारी ही सूरत रहती है। तुहारी मुहब्बत का कुर्ता जबसे पहना है, मैं तो तबसे पागल हो गई हूँ। इसी बहाने मैं तुहें अपनी दिवानगी के कुछ किस्से बताती हूँ।

पिछले सप्ताह अमी ने मुझे कपड़े धोने के लिये कहा तो मैंने उठाकर अपनी किताब कापीयां वाशिंग मशीन में डालकर मशीन चला दी। पूरे साल की मेहनत से तैयार किया कोर्स वर्क एक सेकंड में बेकार कर दिया।

यह तो कुछ भी नहीं, और सुनो, मेरी अमी ने चाय बनाई ही थी तथा उन्हें किसी का फोन आ गया। अमी खुद तो फोन सुनने लगे तथा उन्होंने चाय कपों में डालकर देने को मुझसे कह दिया। जानते हो मैंने क्या किया? सारे परिवार के जूते डाइनिंग टेबल पर रखकर चाय से भर दिये। सारे सदस्य मेरी मूर्खता पर हंस रहे थे। मैं कह रही थी, ''पता नहीं इनमें कौनसे भूत आ गये? सारे पागलों की तरह दांत क्यों निकाल रहे हैं? फोन रखकर ऊपर से अमी भी आ गये। मेरी करतूत देखकर उन्होंने माथे पर हाथ मारा। वे मुझसे भी आगे चले गये, मेरी बजाए खुद को ही गाली देने लगीं, कह रही थीं, ''फिॅटे मुँह तेरे जनन वाली दे।" 

लो करलो बात। मुझे तो लगता है कि मेरे इश्क का अमी पर भी असर हो गया है।                   

आजकल मुझे अपनी कोई सुध-बुध नहीं रहती। कल रात की बात है। मैं रोटी खाकर बड़ी बहन के साथ रसोई में बर्तन साफ करवा रही थी। खड़े-खड़े मेरे मुँह से स्वाभाविक ही निकल गया, ''दीदी, चलो फिर, लगें खाना पकाने। खाना खाकर काम निपटायें?"

''शर्म कर, अभी-अभी क्या खाया है? तेरा दिमाग ठिकाने है? मेरी बहन ने मुझे डांटा था।

मैंने हैरानी से अपनी बहन नाजीया की ओर देखा था, ''अच्छा, ऐसा है?"

''और नहीं तो क्या? भूख है तो और पका देती हूँ?"

मैंने अंगुली चुभोकर अपना पेट देखा, सचमुच ही पेट भरा हुआ था। बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि पेट ठूंसा पड़ा था। फिर नाजीया ने मुझे बताया था कि मैंने उस दिन पहले से ज्यादा खाया था। अब आप खुद ही मेरी हालत का अन्दाजा लगा लो। ''गालिब तेरे इश्क ने निकमा कर दिया, वर्ना आदमी तो हम भी थे काम के।" जब तुहारी याद आ जाती है तो मेरा सारा शरीर पैरालाइज्ड, एकदम निकमा सा हो जाता है। किसी भी अंग को हिलाना मेरे वश की बात नहीं रहती। तुहारे यालों में इतनी गहरी उतर जाती हूँ कि मुझे अपने वजूद का भी अहसास नहीं रहता। मेरे दिलवर, बताने की तकलीफ करना कि क्या तुहें भी इसी तरह यादों के संसार में रहना पड़ता है?

मैं तो अच्छी तरह से मुहब्बत शब्द के अर्थ भी नहीं जानती। ''एक आग सी है सीने में लगी हुई, शायद इसी का नाम मुहब्बत है।" 

बाले यार, कितनी अनोखी तडफ़ है प्यार की, है न? दिल चाहता रहता है कि जल्दी से जल्दी अपनी सांसों की महक एक हो जाये। तुहारे बारे में सोचकर ही रूह को नशा हो जाता है। जिस 'आइडियल पार्टनर', अर्थात 'शरीक -ए-हयात' (पति) होने के लिये जिस किस्म के प्रतिभावान व्यक्ति की कल्पना मैंने की थी, तुम उस आदर्श तस्वीर से भी दो रत्ती ज्यादा हो, कम नहीं, तुम तो सिर्फ गुणों की थैली हो। गुद्ड़ी के लाल हो। मुझे यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि मैं तुहारी खूबीयों की वजह से तुम पर बुरी तरह से मरती हूँ।

इकबाल एक पुरानी कथा है। एक दरवेश होता था। उसने दिन-रात भगवान की भक्ति की। उसकी तपस्या से खुश होकर ईश्वर प्रकट हुये तथा उन्होंने दरवेश से कहा, ''मांग क्या मांगता है?"

कहते हैं दरवेश ने भगवान से ''मुहब्बत मांगी।" 

इस मांग को सुनकर भगवान ने कहा कि, ''कमाल है, मैं तो सोचता था तुम मुझे मांगोगे?"

दरवेश ने जबाव दिया, ''हे मेरे मालिक, मुहब्बत मांगकर मैंने तुहें भी मांग लिया है। मुहब्बत में ही सब कुछ आ जाता है।"

इसलिये मेरे दोस्त इकबाल जी मेहरबानी करके मेरी गोद भी अपनी मुहब्बत की खैरात से भर दो। मेरा बार-बार यही कहना है कि मुझे केवल, केवल और केवल तुहारी मुहब्बत चाहिये। इसके बदले में मैं हर कीमत देने को तैयार हूँ।
इकबाल जी, अगर कहीं हम दोनों एक ही धर्म में पैदा हुये होते तो बात और थी। अलग-अलग धर्मों व देशों से संबंधित होने के कारण अपने विवाह के रास्ते में अनेक अड़चनें हैं। कोई बात नहीं। मुझे अब किसी की परवाह नहीं है। ''मैं नॅचके यार मनाना नी, चाहे लोग बोलीयां बोलें।" 

मैंने तुहें अपनाने का पक्का फैसला कर लिया है। इश्क के रास्ते पर चल ही पड़े हैं तो पीछे क्या हटना? अब तो एक टक फैसला कर लिया है कि, ''वारिस शाह न मुड़ांगी रांझने तों, चाहे बाप के बाप का बाप आये।" 

मेरे तथा तुहारे घरवाले या समाज वाले मानें या न मानें। मैंने हर हालत में तुहारी होना है। जैसे वह कहावत है न, ''जब मीयां बीबी राजी, तो क्या करेगा काजी?" 

पहले-पहले ही थोड़ा-बहुत हंगामा होगा। फिर अपने आप ही धीरे-धीरे सब लोग चुप कर जायेंगे। मैं तो चाहती हूँ कि हीर रांझा, सॅसी पुन्नु, शीरी-फरहाद की तरह हमारे इश्क के भी किस्से लिखे जायें । हमारा इश्क भी दुनियां के लिये एक मिसाल बन जाये। अपनी कोर्ट मैरिज तो जब होगी तब देखा जायेगा। लेकिन दिल में मैं आपको अभी इसी पल से अपना पति मानती हूँ। मैं खुदा को अंग-संग मानकर ऐलान करती हूँ कि आप इकबाल जी मुझे जीवन साथी के रूप में कबूल, कबूल, कबूल।

शादी की बहुत-बहुत बधाई हो आपको मेरे सिरताज, लड्डू बांटो, वलीमे का इन्तजाम करो। वलीमा अर्थात सामूहिक भोजन, विवाह ही खुशी में दी गई पार्टी, जियाफत, सुहागरात तथा हनीमून मनाने का प्रबंध करो। मैं तो कहती हूँ कि वह कौन सा समय होगा जब तुम मुझे मिलोगे, ताकि मैं तुहें अपने अन्दर छिपा लूं। जैसे गुन्डे अपनी कमर में रिवाल्वर छिपा कर रखते हैं। बस यही इच्छा है कि, ''आन बसो मेरे नयनन में, मैं पलकें मूंद लूं। न खुद देखूं किसी और को, न तुझे देखने दूँ।" 

इजबल व रजनी के नाम का पेज फाड़कर फेंक दो अपने दिल से। अब से अमीरी-गरीबी, खुशी-गमी, बिमारी-तंदरूस्ती, अच्छा-बुरा अर्थात हर हालात में मैं तुहारे कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहूंगी। ''जहां-जहां तुम होंगे, मेरा साया साथ होगा।" या ''जित्थे चलेंगा, चॅलूंगी नाल तेरे, वे लै लीं दो टिकटां।"

देर मत करो। जल्दी से जल्दी स्कूल आना शुरू करो। अपने स्कूल की ओर से विद्यार्थियों का जो फ्रांस को ट्रिप जाना है अब तो उसमें भी बहुत कम समय रह गया है। खुशखबरी सुनाऊं? मैंने भी फ्रांस की टिकट ले ली है। घरवालों को अपने आप मना लूंगी, चाहे भूख हड़ताल ही क्यों न करनी पड़े। नहीं तो सहमति के बिना ही-----। खैर यह चिंता तुम मुझ पर छोड़ दो। मैं जैसे भी कर लूंगी। तुम आओ। हम दोनों खुशी-खुशी फ्रांस की सैर करके आयेंगे। अपनी मुहब्बत का जश्न मनायेंगे। शैंपेन खोलेेंगे। जानूं तुहें पता है शैंपेन को शैंपेन क्यों कहते हैं? अगर मालूम है तो ठीक है। नहीं तो मैं बता देती हूँ। फ्रांस में एक शैंपेन नामक कस्बा है। वहां रहने वाले लोगों का मुय काम शराब बनाना है। उस जगह बनने वाली वाईन का नाम गांव के नाम पर ही शैंपेन पड़ गया। जैसे शैंपेन गांव के लोग वाईन बनाते हैं। अगर कोई दुनियां के और किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति बिल्कुल उसी तरह, उसी विधि से, वही सामग्री डालकर वाईन बना भी ले तो भी उसे शैंपेन नहीं कहा जा सकता और जो मर्जी नाम दे दो। शैंपेन नाम रखने के लिये जरूरी है कि वाईन फ्रांस के उसी कस्बे में ही बनी हो।
फ्रांस की एक और भी चीज मशहूर है। बताओ कौनसी? मुझे पता है तुम कहोगे फ्रैंच डोर या फ्रैंच विंडो। नहीं पागल वह तो हम किसी भी साफ सीसे वाले दरवाजे या खिड़की को कह सकते हैं। मैं इन बेजान चीजों के बारे में बात नहीं करती। मेरा इशारा तो किसी और तरफ है। नहीं समझे? बुद्धूराम--डम--मोटा दिमाग---। क्लासरूम में तो बहुत ब्रेन-बाक्स बना रहता है। चलो मिट्टी के माधो जी, मैं ही बता देती हूँ। फ्रांसीसी लोगों के चुंबन बहुत चर्चित हैं। ''फ्रैंच किस" नाम की एक फिल्म भी बनी हुई है। जो लंबी व उत्तेजक चुंबन हो उसे फ्रैंच किस कहते हैं। पैरिस में ऐफिल टावर के पास खड़े होकर मैं तुहारी ऐसी जब्रदस्त फ्रैंच किस लूंगी कि लोग वहां टावर को नहीं, हमें देखेंगे तथा देखते ही रह जायेंगे। तुहारी व मेरी जोड़ी दुनियां का आठवां अजूबा बन जायेगी।

हमने ढोल-नगाड़े बजाकर अपने इश्क की मुनादी करवा देनी है। यार, तगड़ा होकर स्कूल आना। बहाना बनाना छोड़। इकबाल साहिब मेरी सारी गलतीयां व गुस्ताखीयां भूल जाओ। मेरे सुहाग, मैं तुहें पाने के लिये तत्पर हूँ। मेरे मन में तुहारे प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होने की ललक लग गई है। तुहारी कमीज के बटन खोलकर तुहारी अधनंगी छाती पर अपनी अंगुली से गोल चक्कर बनाने को मेरा बहुत ही दिल करता है। तुहें नंगा देखने को तरस रही हूँ। जब तुम मेरे पास बिना कपड़ों के होंगे तो देखना कपड़ा कोई मेरे बदन पर भी नहीं होगा। तुम सिर्फ मेरे महबूब और मैं तुहारी महबूबा, तुझे चाहेगी बहुत खूब तुहारी ये महबूबा। मैं मुहब्बत की देवी वीनस बनूंगी तथा तुम भी एडोनिस बनकर दिखाना।      

तुम तो जानते ही हो कि चिट्ठीयों में बहुत कुछ नहीं लिखा जाता। वैसे भी मैं अगर सारे यालों को लिखने लगूं तो पन्ने के पन्ने भर जायेंगे। फिर भी मैं पूरी बात कह नहीं सकूंगी। मुझे अपने मनोभाव व्यक्त करने के लिये समुद्र की सियाही व धरती का कागज भी थोड़ा लगता है। रात काफी हो गई है। अब पत्र बंद करती हूँ। बाकी बातें मिलकर करेंगे। इसलिये एक बार फिर नम्रता सहित तथा हाथ बांधकर निवेदन करती हूँ कि जानी जल्दी स्कूल आना शुरू करो, ताकि मुहब्बत का कलमां पढ़कर अपनी नई विवाहित जिंदगी के इस नये अध्याय की शुरूआत करें।

तुहें अपने वजूद में मिलाने की इन्तजार में उतावली।

तुहारी और सिर्फ तुहारी,
शैज।

इतना लिखने के बाद मैंने घड़ी देखी। सुबह के पांच बच चुके थे। सारी रात बीत चुकी थी। मैंने लिखी हुई पूरी चिट्ठी पढ़ी। मैं अपने लिखे से संतुष्ट थी। तकरीबन लिखी जाने वाली सारी बातें मैंने उसमें कर दी थी। चिटठ्ी डालकर मैंने लिफाफे पर परफयूम छिड़की ताकि जब इकबाल चिट्ठी खोले तो उसके चारों तरफ महक ही महक हो जाये। लिफाफा थूक लगाकर सील करते समय मुझे याल आया कि यह पत्र इकबाल तक कैसे पहुँचेगा?

मैं काफी समय तक बैठी सोचती रही, लेकिन मुझे कोई भी ऐसा भरोसे योग्य नाम नहीं सूझा, जिसे पत्र वाहक बनाया जा सके। पुराने समय में लोग कबूतरों के पैरों में बांधकर खतों-खिताबत किया करते थे। काश अब भी कबूतर ये काम करते होते। इकबाल के पास तो वैबसाईट भी नहीं थी। नहीं तो मैं उसे ई-मेल करके अपनी समस्या हल कर लेती। जिस खत ने सही पते पर पहुँचना ही न हो, उस खत का क्या फायदा? ऐसा सोचकर मैंने बड़ी ही बेदर्दी से पत्र को फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। फिर टुकड़ों के भी आगे और टुकड़े करके उन्हें कूड़ेदान में फेंकने लगी तो मेरे आंसू निकल गये। स्टडी टेबल से उठकर मैं बैड पर जाकर लेट गई। अपने ऊपर रजाई लपेटकर तकिए के नीचे मुंह छिपाकर धीरे-धीरे रोने तथा हिचकोले लेने लगी थी मैं।

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