Monday 4 May 2015

10. कांड- नई सेज, कुं आरी काया


साथियों के शोर-शराबे से मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि शाम ढल रही थी। दूर दो पहाड़ों के बीच छिपने के लिये खड़ा सूर्य मुझे लेटे हुये भी दिखाई दे रहा था। जैसे कि मुझे गुड-बॉय कहने को ही रूका हुआ था, नहीं तो सूर्य ने कब का अस्त हो जाना था। हालांकि मेरी मुश्किल से दो-अढ़ाई घंटे आंख लगी थी। लेकिन फिर भी ऐसे प्रतीत होता था जैसे मैं कई दिन सोने के बाद जाग रही हूँ। भरपूर नींद ली थी मैंने। हल्का-हल्का सिर तो दर्द कर रहा था। लेकिन मैं फिर भी पूरी होश में थी। दारू का नशा उतर चुका था।


उठकर जहाई लेती हुई मैं टैंट से बाहर आई तथा मिट्टी के ढेर पर खड़ी होकर जैसे ही मैंने एक अंगड़ाई ली तो मुझे महसूस हुआ कि जैसे मैं पहले से भी सुन्दर हो गई हूँ। छाती का उभार ज्यादा हो गया था। चमड़ी पहले से ज्यादा मुलायम तथा चमकीली हो गई थी। सारा रंग रूप निखर गया प्रतीत हो रहा था। मैं सिर से पैरों तक काम से भरी पड़ी थी। सैक्स मेरे अन्दर छलकता साफ नजर आ रहा था। यौवन मेरे कपड़ों से रोके नहीं रूक रहा था।

दूर-दूर तक जहां तक नजर जाती थी, हरियाली ही हरियाली फैली हुई थी। खेतों में कोई मौसमी सब्जी की फसल लहलहा रही थी। चलती हवा के टकराने से पेड़ों के पत्ते बहुत ही मनोहर संगीत पैदा कर रहे थे। ऊंचे-नीचे टीलों व गड्डों वाले फ्रांसीसी गांव की दिलकश वादीयां पर्यटकों को आमंत्रित कर रही थी, इन वादीयों में आने तथा गुम हो जाने के लिये। बड़ी नशीली सी मदहोश कर देने वाली शाम थी वह।

मैं वहां यात्रीयों के लिये बनाये पक्के गुस्लखानों की ओर चली गई। मुँह हाथ धोकर जब मैं बाहर निकली तो खाने की लपटों ने मेरा सारा ध्यान अपनी ओर खींच लिया था।

तंबूओं के झुंड के बिल्कुल बीच बची खाली जगह में मेरे साथीयों ने रात के खाने के लिये बारबीक्यू करने का कार्यक्रम बनाया था। नीचे लकड़ीयों की आग जलाकर ऊपर लोहे की सलाखों पर टंगे हुये मुर्गे भूने जा रहे थे। उसके पास ही दो तीन बड़े-बड़े बारबीक्यू ओवनों के अन्दर जल रहे कोयले के सेंक पर सॉसेज मशरूम, आलू, बैंगन, मक्का के भुट्टे, स्टेक आदि खाने वाली अन्य सामग्री सेंकी जा रही थी। हमारी बस के साऊंड सिस्टम पर ऊंची आवाज में पश्चिमी संगीत बज रहा था। लड़के-लड़कीयां मस्ती में मस्ताने होकर खूब नाच रहे थे। कई तो नाचते-नाचते हाल-बेहाल हो गये थे। जैसे नाच नहीं कुश्ती कर रहे हों। माहौल ही ऐसा बन गया था कि मेरा अपने आप ही नाचने को दिल कर आया था। मैंने आव देखा, न ताव, बस नाचने के लिये घुस गई थी। ऐसे लगता था जैसे हम न्यू स्ट्रीट या चाइना टाऊन की किसी नाइट क्लब में नाच रहे हों। मेरा मस्ती में अंग-अंग नाचा था। नाचते हुये मुझे जब किसी और का कोई स्टैप या एक्शन अच्छा लगता तो मैं झट से उसकी नकल कर लेती थी। मुझे नाच में से एक विस्माद, एक आनंद, एक सरूर अनुभव हो रहा था। मैं आंखें बंद करके जोगी की बीन पर नाच रही नागिन की तरह झूल रही थी। हवा के झोंकों से लहराती गेहूं की बालीयों की तरह ऊपर उठाई हुई मेरी बांहें झूल रही थी। आटा छान रही छलनी की तरह मेरी कमर हिलोरे खा रही थी। बूढ़े बरगद की जटाओं की तरह लटक रहे मेरे बाल पीठ पर लहरा रहे थे।

बॉलीवुड की मशहूर नृत्य निर्देशिका सरोज खान के प्रशिक्षित किये डांसरों से बढिय़ा डांसर थी मैं। चाहे मुझे गोविंदा जैसे बढिय़ा डांसर के साथ डांस करवा लेते, जिसके साथ हर कोई हिरोइन नाच नहीं सकती थी। यह बात अलग थी कि मुझे कभी ज्यादातर खुलेआम अपने हुनर का प्रदर्शन करने का अवसर नहीं मिला था। लेकिन घर पर मैं अपने कमरे में अकेली एम टी.वी. पर आते गाने या साथ में कोई डांस विडीयो लगाकर उन्हें देख-देखकर नाचती रहती थी। मैडोना, जेनीफर लोपेज, ब्रिटनी स्पीयर, बिल्ली पाईपर जैसी उस समय की बढिय़ा नाचने वाली पॉप गायिकाओं के मुश्किल से मुश्किल स्टैप भी मैं बड़ी आसानी से कर लेती थी। मुझे नाचते देखकर सबकी आंखें खुली रह गई थीं। नटराज की नजर-ए-इनायत से मैंने मिश्र की प्रसिद्ध नृतिकी एलमा का रूप धारण कर लिया था।

नाचते समय जब मुझे प्यास लगती तो मैं जिससे जो मिलता लेकर पी लेती थी। पता नहीं क्या क्या पीती रही थी मैं। जूस-----मिनरल वाटर----वोदका---व्हिस्की---बकार्डी-, रंम--बीयर---वाईन---सब कुछ। मैंने कोई परहेज नहीं किया था। बिना परवाह किये सब कुछ खींचती गई थी। मेरे अन्दर सब कुछ की कॉकटेल बनती गई थी। जो तरल पदार्थ मैंने पिये थे, उनमें ज्यादातर नशीले पदार्थ थे। मैंने अन्धी होकर सेवन किया था। जैसे-जैसे अंधेरा होता जा रहा था, हमारी अंजूमन और रंगीन होती जा रही थी। देर रात तक मैं नाचती तथा पीती रही थी। खाने की ओर मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैक्स की नजरें मेरे नाचते हुये शरीर पर टिकी हुई थीं।

रात बहुत गहरी हो चुकी थी। तकरीबन ग्यारह या बारह का समय हो चुका होगा। जशन पूरे शिखर पर था। पहले प्रेमी जोड़े खिसकने शुरू हो गये थे। फिर इक्का-दुक्का लड़के-लड़कीयां शराबी होकर लुढकने लगे थे। दिल तो करता था कि सारी रात नाचती रहूँ। हौवलैक एलिस ने अपनी किताब ''दी डांस ऑफ लाइफ" में लिखा है, ''नाचना सबसे ऊंची, सबसे प्रभावशाली तथा सबसे सुंदर कला है, क्योंकि यह केवल जीवन की नकल या कल्पना नहीं होता, ये तो खुद जीवन होता है।"

भरपूर जीवन जी रही थी उस दिन मैं। लेकिन क्या करती, थक-टूट कर चूर हो गई थी और नाच गाने के लिये मेरे अन्दर ताकत नहीं बची थी। सेहत इजाजत नहीं देती थी। ऊपर से आधी रात हो गई थी। सुबह जल्दी उठकर हमने फ्रांस की राजधानी पैरिस को रवाना होना था। पैरिस तो लोग कहते हैं ऐसा शहर है, जो कभी नहीं सोता तथा रात को दिन से भी खूबसूरत हो जाता है, वहां की रात की रंगीनीयां भी आनंद लेने वाली होती हैं।

मैं जानती थी कि अगले दिन हमने पूरे चौबीस घंटे बिना आराम किये घूमना था। मैं नहीं चाहती थी कि जब मेरे साथी दृष्नीय स्थानों का आनंद ले रहे हों तब मैं टूरिष्ट बस में सो रही होऊं। इसलिये मैं कुछ घंटे सोकर अपनी नींद पहले ही पूरी करने के लिये अपने तंबू में लेटने आ गई थी। मैंने टैंट की ओर आते समय चोर आंख से दो-तीन बार पीछे मुड़कर देखा था। मैक्स की नजरें मेरा पीछा कर रही थीं। मैं चलती-चलती तेज हो गई थी।

मेरे साथ तंबू की मेरी भागीदार एंजला अपने आशिक की गोद में सिर रखकर टैंट के बाहर ही लेटी हुई थी। यह आशिक उन्नीस-बीस साल का एक फ्रैंच किसान लड़का था, जो उसने ताजा ही पटाया था। जहां पर हमारे कैंप थे। उस जगह के साथ लगते उस लड़के के खेत थे तथा उसके मां-बाप खेती-बाड़ी का धंधा करते थे। सैलानीयों से क्योंकि यह गांव आम तौर से भरा रहता था। इसलिये वह लड़का कैंप वाले स्थान के पास छप्पर टाईप दुकान में सिगरेट, तंबाकू, चाकलेट, वाईन आदि बेचता था। यहीं पर ही एंजला की सिगरेट, बीड़ी लेने गई की उसके साथ सांठ-गांठ हो गई थी। पहले तो शाम से ही एंजला उसके पास उसके छप्पर में ही रही थी। अंधेरा होने पर छप्पर बंद करके यहां टैंट के पास आकर चोंच भिड़ाने लगे थे। उन्हें इश्क फरमाते देखकर मुझे इकबाल की बहुत याद आई थी। काश अगर वह भी वहां होता तो मैं उसकी बांहों में मदहोश होकर नाचती हुई हवा का छोटा सा तूफान बन जाती। वह मुझे भरी महफिल में से अपनी बांहों पर उठाकर सबसे दूर कहीं सुनसान जगह पर ले जाता तथा जब वह घास पर धीरे से रखने लगता तो मैं उसके गले में डाली अपनी बांहों को जोर से जकड़ लेती तथा उसे अपने ऊपर ही लिटा लेती। न तो वह कुछ बोलता तथा न ही मैं कुछ बोलती। हमारे दरमियान चुप्पी की भाषा काम करती। करने वाली बातें हम अपने शरीर से करवाते। हम चांद सी चांदनी में घास पर लेटे-लेटे खरमस्तीयां करते----।

उधर अचानक पार्टी का संगीत बंद हुआ तो मैंने अपने दिमाग में चुभे विचारों के तीर को खींचकर निकाला। चारों ओर एकाएक सन्नाटा छा गया था। शायद सभी अलग-अलग बिखर गये थे।

एंजला व उसका प्रेमी सामने थे, लेकिन मैं उनके लिये उनके सामने नहीं थीे, क्योंकि वे इस समय दुनिया से बेखबर थे।

मैं भी एंजला और उसके प्रेमी को देख लेने के बावजूद उनकी परवाह किये बिना चुपचाप तंबू के अंदर जाकर लेट गई थी। दोपहर में सो लेने के कारण मुझे इतनी जल्दी नींद कहां से आ सकती थी? फिर भी आंखें बंद करके मैं सोने की कोशिश कर रही थी।

थोड़ी देर बाद टैंट का छप्पर खुला तथा एंजला मेरे साथ आकर लेट गई। मैं कुछ समय उसके साथ बातें करने की सोच रही थी कि एंजला की फुस्फुसाहट सुनाई दी। उसका प्रेमी भी उसके साथ ही तंबू में घुस आया था। हमारा तंबू काफी छोटा था। मुश्किल से हमारे दो के सोने की जगह ही थी उसमें, जाहिर था कि एंजला का प्रेमी उसके ऊपर लेटा था। चाहे तंबू में घुप्प अंधेरा था तथा हाथ मारने पर भी कुछ नजर नहीं आता था। फिर भी मैं सोने का ढोंग करती हुई आंखें बंद करके लेटी रही थी।

काफी समय तक 'पुचक-पुचक' एक दूसरे को चूमने की आवाजें सुनती रही थी। फिर मेरे ऊपर आकर कुछ गिरा था। जो मेरे अनुमान से जीन की निक्कर थी, जो एंजला ने उस समय पहनी हुई थी। फिर उन्होंने कोई और कपड़ा फेंका था, यह एंजला का ब्रा-ब्लाऊज (ब्रेजीयर नुमा छोटा सा ब्लाऊज) था। मैंने इसे नाक के पास करके सूंघा था। इसमें से परफयूम की सुगन्ध आ रही थी। जो एंजला ने उस दिन सुबह लगाया था। (यह परफयूम उसने कैले के यहां आते समय रास्ते में एक जगह यहां हमारी कोच रूकी थी, वहां एक दुकान से बड़ी सफाई के साथ उड़ा लिया था)। उसके बाद दो कपड़े और उन्होंने मेरी ओर फेंके, जिनकी छान-बीन किये बिना ही मैं समझ गई थी कि वे किसके थे।

जैसे कोई बिमार व्यक्ति हल्के-हल्के दर्द से सिसक रहा होता है। ऐसे ही एंजला सरूर में कर रही थी। ''हूँ---हैं---हूँ---हैं।" एंजला का प्रेमी फूले हुये संास से जोर लगा रहा था तथा इस प्रकार आवाजें पैदा कर रहा था जैसे वह किसी भारी वस्तु को झटका मारकर खींचे तथा जब वह अपने स्थान से हिल जाये तो वह थोड़ा रूककर वस्तु को खींचने के लिये फिर से ताकत लगाये। वस्तु को जरा सी खिसकाकर सांस लेने के लिये थोड़ा रूक जाये। फिर उसकी ''हैं---हैं---" 

जैसे-जैसे ऊंची होती गई, वैसे-वैसे उसके बीच का अंतराल भी कम होता गया। धीरे-धीरे छुक-छुक करके चली उनकी रेल, फुल स्पीड पर सीटी बजाती, धूआं छोड़ती, छक-छका-छक दौड़ती जा रही थी----।

मुझे एंजला व उसके प्रेमी का प्रेम करना बुरा तो नहीं लगा था, लेकिन चुभन बहुत हुई थी क्योंकि मैं तन्हां थी। मैंने जानबूझकर उनके आनंद में रूकावट डालने के इरादे से कहा था, ''कुछ शर्म तो कर लिया करो? मैं तुहारे पास लेटी हूँ।"

''शर्म तो तुझे करनी चाहिये, जा तूं भी किसी कि साथ सो जा। यहां पड़ी भी चूतड़ खुरचती रहोगी।"

एंजला के इस उत्तर का मुझे कोई जबाव नहीं आया था। एंजला की एक बात तो ठीक थी। मुझे उनके पास ठहरकर उनके रंग में भंग नहीं डालनी चाहिए थी। एंजला व उसके साथी ने मेरी कोई परवाह नहीं की थी तथा वे अपने कार्य में उसी तरह लगे रहे थे। एेसे लगता था जैसे उन्होंने धरती हिलाने के लिए कमर कस रखी हो।

चंद मिनटों के बाद एंजला व उसका साथी हांफते हुए एेसे सांस ले रहे थे। जैसे ताजा-ताजा मैराथन दौड़ कर आये हों

उससे कुछ समय बाद समुन्दर में आये तूफान जैसा उनकी सांसों का शोर झील में खड़े पानी की तरह शांत हो गया था, लेकिन मेरे अंदर खलबली मच गई थी, मेरे पेट में मरोड़ उठा व मैं वहां से निकल गई थी। रात का समय होने के कारण ठंडी हवा चल रही थी, मैंने सिर्फ टी-शर्ट व लाइकरा पहनी हुई थी, मुझे ठंड महसूस हुई तो मैं टहलती हुई आग सेंकने के लिये यहां बार्बीक्यू किया था, वहां चली गई थी। आग लगभग बुझ चुकी थी जो कोयले थोड़े-बहुत सुलग रहे थे, मैं उन पर हाथ सेंकने लगी थी। चांद की काफी चांदनी थी। आस-पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई दे रही थी। मुझे अकेली वहां देखकर मैक्स वहां आ गया था।
''ठंड लग रही है ?"

मैंने अपने पीछे गर्दन करके मैक्स की आेर देखकर कहा था, ''हां, ठंडी हवा चल रही है न? इसलिए सर्दी महसूस हो रही है।"

''मुझे जप्फी डाल ले, अगर पसीना न आ गया तो कहना।"

मैक्स की बेशर्मी के साथ की गई टिप्पणी के उत्तर में पहले तो मैं कहने लगी थी, "जा पहले अपनी बहन की ठंड उतार, वह मेरे तंबू में घुसकर बेगाने पुत्रों के साथ हाथ सेंक रही है।" 

यह सुनकर मैक्स लड़  ही  न पड़े, इस डर से मैंने चुप्पी धारण कर ली थी, मुझे लगा था कि अगर मैं मुंह नहीं लगाउंगी तो वह अपने आप ही चला जायेगा लेकिन वह तो महाढीठ निकला, वहां से हिला ही नहीं।

''यह कोयले तो ठंडे हो गये हैं, इनसे क्या खाक सेंक आयेगा? मैक्स ने चिमटे से आग टटोल कर ऊपर वाले राख बने कोयले नीचे कर दिए तथा नीचे वाले धहकते कोयले ऊपर कर दिये, नीचे दबे कोयले अभी भी लाल थे, मैक्स ने पास पड़ी बोरी में से निकाल कर थोड़े से और नये कोयले आग में डालकर कोट की जेब से बोतल निकाली तथा दो घूंट ब्रांडी कोयलों पर डाल दी। स्प्रिट डलने से लपटें छोड़ती आग धू-धू करके जलने लगी थी। दोनों अग्रि देवते वाल्कन व सैलमैंडर मिलकर प्रदर्शन कर रहे थे, ठंड थी भी बहुत, मैं कोयलों की गर्माहट के बावजूद भी खड़ी थर-थर कांप रही थी, मैक्स ने अपनी जैकेट उतारकर मेरे कन्धों पर टांग दी। ठंड से बचने के लिए मैंने दोनों तरफ से हाथों से खींचकर जैकेट को बंद कर लिया था।

बातें करते हुए मैक्स ने दोपहर की बदसलूकी के लिये मुझसे माफी मांगी थी तथा मैंने उसे माफ कर दिया था। मैक्स मुझे बहुत ही सय व दिलकश लगा था। आग की लपटों के प्रकाश में उसका चेहरा बहुत ही मनमोहक नजर आया था, मैक्स के पास जो ब्रांडी की बोतल थी, उसे वह बिना पानी के ही पीये जा रहा था। मेरा भी पीने को दिल कर आया था, एकदम मैंने मैक्स से पकड़कर खुद ब्रांडी अपने मुंह को लगा ली थी

आधी से ज्यादा बोतल पीने के बाद हम बातें करते रहे थे। आम सी बातें। जिनमें मैं उसे फ्रांस देश में जो कुछ अब तक देखा था, जो प्रभाव ग्रहण किये थे, उनके बारे में जिक्र करते-करते मैं चुप कर गई थी। मेरी बातें खत्म हो गई थी। किसी अजनबी के साथ आप कितनी देर तक मगज खपाई कर सकते हो? खासकर एेसे व्यक्ति के साथ जिससे तुहारे विचार न मिलते हों, जिसकी पसंद-नापसंद से तुम वाकिफ न हों, जिसकी रूचि-अरूचि का तुहें ज्ञान न हो तथा सबसे बड़ी बात तुहें उस व्यक्ति से बात करने में कोई दिलचस्पी न हो, आप उसे पसंद न करते हों।

पहले मैं बोलती रही थी, मैक्स मुझे सुनता रहा था तथा फिर वह बोलने लगा व मैं उसे सुनती रही, एेसे लगता था, जैसे मैक्स ने मुझे शराब की बजाए जादुई तरल फिल्टर पिला दिया था, जिसके पीने से पिलाने वाले के साथ इश्क हो जाता है। मैक्स मुझे मेरी खूबसूरती के बारे में बता रहा था, जिसे भोगने की उसके अंदर तीव्र इच्छा थी। मेरे फूलों जैसे नाजुक तथा लाल-गुलाल रूखसारों बारे, जिन्हें वह चूमना व चूसना चाहता था, मेरी भरपूर छातियां जिन्हें वह नोचना सहलाना व चिकोटना चाहता था, मेरी सुराही जैसी कमर के बारे जिसे वह जकडऩा व दबाना चाहता था, मेरे गुलाब की पत्तीयों जैसे होठों के बारे जिन्हें व चूसना व दांतों से दबाना चाहता था।

किसी गैर मर्द के मुंह से अपने हुस्न की तारीफ सुनकर औरत अंधी हो जाती है। मुझे भी अपनी तारीफें सुनकर दिखाई देना बंद हो गया था। मैक्स के चेहरे में से मुझे इकबाल दिखाई देने लगा था। रूप व वेश बदलने वाले देवते प्रोटीयस की तरह मुझे मैक्स का रूप बदला नजर आया था, मैंने उसके होठों के साथ अपने होंठ जोड़ लिये थे, मेरे शरीर में कोई सरसराहट न हुई, उसके छूने में वह पिघला देने वाला सें∙  नहीं था। मैंने चूमना बंद कर दिया था। मैंने चौंक कर देखा था, इकबाल नहीं वह तो मैक्स था, मैंने अपना सिर झटककर कई बार अपनी आंखें झपकाई मुझे बहुत झुंझलाहट हुई थी।

''यू आर ए ग्रेट किसर" मैक्स ने दोबारा फिर मुझे मुंह लगाने की कोशिश की थी।

उसके होठों पर हाथ रखकर उसे रोकते हुये जबाव में मैं कह बैठी थी, ''वॅट यू आर नाट, तुझे तो चुंबन कला की ए बी सी भी नहीं आती।"

''सिखा दो फिर? एम फास्ट लर्नर।"

मैं चुप रही। मैक्स अपने आप मुझसे दूर हो गया था।

''सोना नहीं क्या? चल मैं तुझे तेरे टैंट तक छोड़ आऊं? मैक्स की नीयत में अभी भी खोट झलक रही थी।"

''नहीं. मैं. मेरे टैंट में तो तेरे बहन-बहनोई सो रहे हैं", बिना सोचे समझे अपने आप ही मेरे मुंह से निकल गया था।

मैक्स को तो जैसे सचमुच ही मेरी चिंता थी, ''फिर कहां सोयेगी?"

''सोने को जगह होती तो यहां आग सेंकने क्यों आती?"

''तुझे आग सेंकने की क्या जरूरत है? तुम तो खुद ही बिल्कुल आग हो चल मेरे साथ आ जा", गोल मश्करी (मजा) करके मैक्स अपने तंबू की तरफ चल पड़ा था।"

रात खड़े रहकर तो काटनी नहीं थी, मैं बुरी तरह थकी पड़ी थी, मेरा अंग-अंग टूट रहा था, और कोई चारा चलता न देखकर मैं भी मैक्स के पीछे चल पड़ी थी।

बड़ी देर तक हम मैक्स के टैंट में बैठकर पीते रहे थे। गप्पें मारते समय मैंने उसके वजूद में से इकबाल को तलाशना शुरू कर दिया था। इकबाल व मैक्स में जमीन आसमान का अन्तर था। इकबाल जितना सुंदर था, मैक्स उतना ही बदसूरत, इकबाल जितना नरम, मैक्स उतना ही कड़, हर चीज उनकी एक दूसरे के बिल्कुल उलट थी। जिसकी इच्छा थी जब वह नहीं मिला तो सड़क पर जवानी ढूंढ रहे बूढ़े की तरह मैंने भी निराश होकर इकबाल को मैक्स में से ढूंढना छोड़ दिया था।

मैंने नफरत से ग्लानि मानकर मैक्स से दूसरी आेर मुंह फेर लिया था। उसकी आेर देखकर मुझे उबकाई आ रही थी। बिलकुल उसी समय मुझे बाइबिल का वह टैस्टामेंट याद आ गया था, जिसका मूल अर्थ है, ''जो छिन गया है, उसका गम करना, जो है उसका आनन्द न लेना तथा जो नहीं मिल सकता, उसकी उमीद न छोडऩा, तीनों ही मूर्खता की निशानी हैं।"

इकबाल नहीं है तो न सही, मैक्स तो है, मैं इसी के साथ गुजारा क्यों नहीं कर लेती? यह सोचकर मैं मैक्स के मुंह में मुंह डालकर उसे ''सनौग" करने लग पड़ी थी।

मैक्स ने इससे आगे बढऩे की कोशिश की थी। मैक्स मेरे थोड़े से झुकाव का काफी ज्यादा फायदा उठाना चाहता था, लेकिन मैंने उसे यह कहकर मना कर दिया था कि मैं लंबी-लंबी छलांगें लगाकर थोड़ा रास्ता चलकर थकना नहीं चाहती, मैं तो स्टैप बॉय-स्टैप धीरे-धीरे चलकर ज्यादा दूर तक जाने की खवाहिशमंद हूं। मैक्स के मोटे दिमाग में यह बात समा गई थी तथा फिर हम दोनों एक दूसरे से दूरी करके सो गये थे।

मैं मैक्स की आेर पीठ करके सो रही थी, मैक्स धीरे-धीरे मेरे पास आ गया था। वह मेरे पीछे मेरी आेर मुंह करके पड़ा-पड़ा शायद मुझे निहार रहा था। फिर अल्ला जाने कि उसके दिल में क्या आया कि उसने लेटे-लेटे अपने दोनों हाथ मेरे गुदगुदे नितंबों को डाल लिए थे। उसने अपनी मुट्ठियों में आये मांस को पूरे जोर से एेसा कसा था, जैसे उन्हें निचोड़कर जूस निकालना हो। असीम ताकत से दबाने के बाद उसने मेरे नितंब ढीले छोड़ दिये थे, तभी उसने दुबारा कसने शुरू कर दिये थे। इस तरह यह कार्रवाई उसने कई बार दुहराई थी। जब वह अपनी हथेलियों को कसता तो अपने आप स्वाद में आई मेरे मुंह से 'हाय'निकल जाती थी। उसके स्पर्श ने मेरी नस-नस में  करंट दौडऩे लगा दिया था। मेरे तन-बदन में हवस की खुजली होने लग गई थी। उसके छेड़-छाड़ करते हाथ मुझे आनन्दमयी लगते थे। एेसे लगता था जैसे मेरे अन्दर कोई खौलता हुआ पारा छलक-छलक ऊपर-नीचे जा रहा हो।

मेरे अन्दर जैसे कई एक्सप्लोजन, कई धमाके हो रहे थे, जैसे बम फट रहे होते है। मेरे मन में मैक्स को अपनाने की इच्छा तो पहले ही उत्पन्न हो गई थी। उस समय आनन्द लेने के रास्ते में अड़चन बने मुझे अपने ही कपड़े, अपने दुश्मन लग रहे थे। तब मैंने मैक्स की मदद से लेटे-लेटे ही तुरन्त अपने वस्त्र उतारकर तंबू से बाहर फेंक दिये थे।

वस्त्रों की दिवार बीच से निलकते ही मैक्स सिर से पैर तक मेरे करीब आ गया था, बहुत नजदीक, बिल्कुल पास। मेरी वासना उसकी हवस की अंगुली पकड़कर चल पड़ी थी। एक मशाल से दूसरी मशाल जलती है। मैक्स मेरे वजूद की बाहरी सीमायें पार करने लगा ही था कि मैंने उसे अपने दिमाग में घूम रहे डर से परिचित करवाया था, ''मैक्स? मैंने यह कभी किया नहीं है, आज जिन्दगी में पहली बार करने जा रही हूं, एम स्केअरड।"

मेरी बात सुनकर मैक्स जोर-जोर से लॅचर सी हंसी हंसा था, ''दुनियां की हर औरत नये व्यक्ति को यही बात कहती है, ईवन पराटीचिऊटस भी।"

मैं मैक्स को पैरों से निकालना चाहती थी, ''वेश्याएं क्या कहती हैं, तुझे कैसे पता है? जरूर जाता होगा तू उनके पास?"

''हां, बस कभी-कभी, जब कभी दिल करे, वैसे दिल मेरा हमेशा ही करता रहता है",

''लुच्चा कहीं का, यू आर वैरी नॉटी, नॉटी यू आर", मैंने छेडख़ानी करने के लिये मैक्स की छाती में हल्के-हल्के मुक्के मारे थे।

शेखी बघारने के लिये मैक्स ने कोई अपनी  आप बीती छेड़ ली थी, ''दो-तीन साल हो गये, एक वेश्या के साथ मैंने बीस पौंड में सैक्स किया था, अच्छी भली सुन्दर थी, बहुत मजा दिया था उसने। लगभग दो सप्ताह बाद मैं फिर चला गया था उसके पास,उस दिन पन्द्रह पौंड लिये थे उसने मुझसे। उसके बाद मैं चोरी के इल्जाम में पकड़ा गया तथा छ: महीने जेल में रहा। उसके बाद रिहा होकर मैं फिर रैड लाईट (लाल बत्ती इलाके) एेरिया में चला गया तो उसी वेश्या ने मुझसे सौ पौंड मांगे, मैंने कहा, ''यह तो बहुत ज्यादा हैं, मुझसे भोला सा मुंह बनाकर कहने लगी"

"मैं इज्जतदार घराने की शरीफ लड़की हूं, आर्थिक संकट के कारण मजबूर होकर आज पहली बार शरीर बेच रही हूं, नहीं तो एेसे धन्धे पर मैं थूकती भी नहीं, तू पहला व अन्तिम ग्राहक है मेरा, इसलिये सौ पौंड से एक पैनी भी कम नहीं लूंगी।" 

गौड नोज उसने कितने व्यक्तियों को यह डायलॉग सुना-सुनाकर बेवकूफ बनाया तथा लूटा होगा। मैं तो वहीं उसके गले पड़ गया, ''पंद्रह पौंड में तो छ: महीने पहले तुझे रौंद कर गया था?" 

छत्तीस तो आते हैं इन के पास, किस-किस की शक्ल याद रखें वह भी। अपना झूठ पकड़े जाने पर वह कहने लगी, ''अब महंगाई हो गई है।" 

मैंने कहा, ''तू भी तो साली हाई-माइलेज हो गई। तूं प्रापर्टी या शराब थोड़े ही है, जिसकी पुरानी होने पर कीमत बढ़ेगी?" 

मैंने उसे सुना दिया, कार व नार (स्त्री) की समय बीतने के साथ वैल्यू लॉस (कीमत गिरना) ही होती है, पौंड दस लेने हैं तो बात कर, नहीं तो मैं चला? इतना कहकर शाजीया मैं वहां से चल पड़ा, मेरे पीछे दौड़ी आई, कहने लगी, ''बोहनी का समय है, खाली मत जाओ, चाहे पांच पौंड ही दे दो? पर कुछ न कुछ जरूर देकर जाओ, अब तुम खुद ही बताओ? यह बात तो मुझे उस औरत ने कही थी जिसे मैं दो बार भोग चुका था।

''लेकिन मैं सच कह रही हूँ",  मैक्स को अभी भी मुझपर कोई यकीन नहीं आया था।

''आई मीन इट, यू नो।"

''ओ.के. आई बलीव यू, मैं कब कहता हूं कि तू रोज करती है? नित्य का अयास तो हम करते हैं......इन हाथों के साथ।"

मैं उसका मतलब समझ गई थी, ''मैं नहीं जानती थी कि तू इतना लुच्चा होगा?"

मैक्स तो हाथों में थूककर तैयार बैठा था, ''लुच्चापन तो मेरा अभी तूने देखा ही नहीं, कहो तो दिखाऊं?"

''दिखा फिर?" मेरे अन्दर वासना के दहकते अंगार ठंडे हो चुके। बुझी हुई आग को हिलाकर लपटें निकालने का तरीका मैक्स को पूरी तरह से आता था। बढ.ई (खाती) के एक हथोड़ी मारकर लकड़ी में कील गाडऩे की तरह जब वह मेरे अंदर धंसा था तो दर्द से मेरी चीख निकल गई थी, मुझे एेसे लगा था जैसे मेरे अन्दर दो धारी तलवार चीरती हुई धंसती जा रही हो, मैंने सारा मजा भूलकर इस क्रिया को वहीं खत्म करने का हुक्म दिया था।

''दो कोस चली नहीं, और बाबा प्यास लगी है, अभी तो शुरू हुआ है, अभी कैसे रूक जायें, मैक्स को अपने मजे की पड़ी थी।"

''मेरे दर्द हो रहा है स्टूपिड, यू आर हर्टिंग मी।" एम पेनिंग, यू नो, मैंने दर्द से चीखकर कहा था।

''डोंट वरी, अब दर्द नहीं करूंगा, आई प्रामिस, आई विल बी जेंटल विद यू, मैक्स किसी तर्जुबेकार सर्जन के आप्रेशन करने की तरह एहतियात के साथ अपना काम करने लगा था।"

कष्ट व दर्द तो अब भी हो रहा था। लेकिन अब वह बर्दाशत के बाहर नहीं था,  मैं अब उसे सहन कर सकती थी। मैक्स मेरे अन्दर ही अन्दर घुसता जा रहा था। मुझे उस समय भारतीय कालगर्ल पामेला  बोर्डेज उर्फ पामेला चौधरी की इन्टरव्यू में कही बात याद आ गई, उसका कहना था, By and Large, Most men spend nine months in their mother’s wombs and the rest of their lives trying to crawl right back” आदमी नौ महीने अपनी मां के पेट में रहता है तथा उसे उस जगह से लगाव हो जाता है, इसी लिये जन्म के बाद सारी उम्र वापिस उसी जगह घुसने की कोशिश करता रहता है, जिस जगह से वह निकला होता है)

डेढ-दो मिनट की जोर-अजमाईश करने के बाद मैक्स मेरे ऊपर ही तूफान आने पर जड़ से उखड़े पेड़ की तरह गिर पड़ा था। वह इतना हल्का हो गया था कि उसका मुझे बिल्कुल वजन महसूस नहीं हुआ था। उस समय चाहे उस जैसे दस व्यक्ति मेरे ऊपर लेट जाते, मुझे कोई अहसास नहीं होना था।

मैक्स को मजा आया था या नहीं, इसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती, लेकिन हां, मुझे तो रत्ती भर भी मजा नहीं आया था। उस जिन्दगी के पहले संभोग में से मुझे दर्द के सिवाए और कुछ भी नहीं मिला था। मैं उस समय सोचती थी कि क्या है इसमें, जिसके पीछे दुनियां अन्धी हो जाती है? लोग रिश्ते-नाते भूल जाते हैं। मुझे वही सैक्स दुनिया की सबसे भद्दी वस्तु मालूम हुआ था। जिसे करके मैं अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी भूल कर बैठी थी। मैं अपने किये पर पछता रही थी। मैंने इस क्रिया को भविष्य में न दुहराने की कसम खा ली थी।
उतारकर फेंके कपड़े ढूंढने के लिये मैक्स ने टार्च जलाई थी, रोशनी में मेरे नीचे वाली चादर पर गिरे खून के छींटे देखकर मैक्स घबरा गया था, ''ओह माई गॉड, यू आर ब्लीडिंग,....क्या हुआ तुझे?"

''पहली-पहली बार एेसे ही होता है, तुझे नहीं पता था क्या? वैसे तो अपने आपको सैक्स स्पैशलिस्ट (काम माहिर) कहलाते हो?  औरत की योनि के अन्दर मुय दरवाजे पर एक मांस की नाजुक झिल्ली लगी होती है। यूनानी लोगों के विवाह वाले देवता 'हाईमेन' के नाम पर इस झिल्ली का नाम हाईमेन रखा गया है। पहली बार संभोग करने पर हाईमेन (कुंवारा पर्दा) फट जाता है, तथा स्त्री की योनि में से खून निकलने लगता है।"

''अच्छा.....तो क्या तूने सचमुच पहले कभी नहीं किया था?"

''मेरा कोई ब्वायफ्रेंड तो था नहीं, करना किसके साथ था?"

''फिर भी इतनी उम्र तक विर्जन (कुंवारी) थोड़ा रहते हैं, अंग्रेज लड़कियां तो अंगुलियां मार-मारकर ही फाड़ लेती हैं।"

''ऐसी उल्टी-सीधी हरकतें अंग्रेज लड़कियां ही करती हैं, हम नहीं। तुम फिरंगी लोग शादी से पहले कुंवारापन गंवाने को चाहे 'स्टेटस सिंबल' मानते हो, लेकिन हमारे लोग तो इस चीज को औरत की पवित्रता का सर्टीफिकेट मानते हैं। जिस समाज में हम रहते हैं, उसमें अगर सुहागरात को चादर पर दुल्हन के खून से रूस का नक्शा न बने तो दूल्हा उसके चरित्र पर शक करने लग जाता है। चाहे लड़की की कुंवारी होने संबंधी झिल्ली खेलते, कूदते, उछलते या कसरत करते फट गई हो, फिर भी लड़की को माफ नहीं किया जाता। दूसरी तरफ दूल्हा साहिब ने खुद चाहे मुहल्ले की कोई कुतिया भी न छोड़ी हो।"

मेरी बात सुनकर मैक्स हंस पड़ा था। मैंने मैक्स से पोंछने के लिये टिशू पेपर मांगे तो वह बोला, ''मेरे बाप की पेपर मिल चलती है क्या?"

''तेरे बाप ने फिर स्प्रे पंप क्यों लगाकर दिया है? सिर्फ गंदा करना ही आता है तुहें?" मैंने नखरे के साथ मैक्स को छेड़ा था। जब कुछ और न मिला तो मैंने अंत में मैक्स की बनियान ही उठाकर गंदी कर दी तथा अपने आपको साफ कर लिया। एेसा करते समय मुझे मोनिका लिवंस्की याद आ गई थी। अमेरिका के राष्ट्रपति बिॅल क्लिंटन के अपनी बेटी की उम्र की सताईस साल की व्हाईट हाऊस की कर्मचारी मोनिका के साथ गुप्त रूप से शारीरिक संबंध बन गये थे। इश्क व मुशक (गंध) कहां छिपाये छिपते हैं? एक बार यह राज बाहर निकल गया तो सारी दुनियां के मीडिया ने मसाला लगाकर इस खबर को प्रसारित कर दिया। मोनिका मान गई तथा क्लिंटन ने साफ इन्कार कर दिया। क्लिंटन के द्वारा मोनिका के साथ प्रेम संबंधों का खंडन करने पर मोनिका ने अपना गैप कंपनी का बना नैवी ब्लू रंग का गाऊन पेश कर दिया, जिसे उसने कुछ दिन पहले 28 फरवरी 1997 को क्लिंटन के साथ उसके औवेल दफतर में बने शारीरिक संबंधों के समय पहना था तथा उस समय तक उस गाऊन की धुलाई नहीं की थी। मजेदार बात यह थी कि उस समय सैक्स करने के बाद मोनिका ने भी मेरी तरह क्लिंटन का वीर्य अपनी पौशाक से ही पोंछ लिया था। डी.एन.ए. टैस्ट में यह साबित हो गया था कि मोनिका के गाऊन पर लगे वीर्य के धब्बे क्लिंटन के ही थे। इस तरह उस गाऊन ने क्लिंटन के चरित्र को दागदार कर दिया था। मैं नहीं चाहती थी कि मेरे साथ भी क्लिंटन की तरह हो। इसलिये मैंने मैक्स की बनियान अपने कब्जे में ही रख ली ताकि उसे बाहर ले जाकर अग्नि की भेंट कर सकूं।

धन तथा काम व्यक्ति को जितना मिले उतना ही व्यक्ति की भूख बढ़ती जाती है। मेरा भी यही हाल था। मैंने मैक्स के साथ होने की कोशिश की तो वह अपनी जगह से गायब था, पता नहीं कब उठकर बाहर चला गया था।

औरत को भोगते ही उठकर चले जाना उसकी तौहीन करने के बराबर होता है। पोस्ट-प्ले भी फोर-प्ले जितना ही महत्वपूर्ण होता है। मैं चाहती थी कि मैक्स मेरे साथ पड़ा रहता....टांगों में टांगें अड़ाकर, साथ-साथ बिल्कुल चिपककर, मेरी छाती से अपना सीना जोड़कर, मेरे पेट से उसका पेट लगा होता..... मेरे नाखुन उसकी पीठ का मांस उधेड़ रहे होते.... उसके गर्म-गर्म सांस मेरे माथे से टकराते.... उसकी अंगुलियां मेरे घने काले बालों में कंघी कर रही होतीं, उसके पैरों के अंगूठे मेरी टांगों पर मूर्तियां बनाते, सारी रात ही कुछ न कुछ होता रहता, हम बाकी की बची रात को इकट्ठे ही पड़े रहते, मैक्स को गैर हाजिर देखकर मैं कपड़े पहनने लगी थी।

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