Monday 4 May 2015

16 कांड -माँ


मुझे मैक्स के साथ रहते पूरे तीन साल हो गये थे। मैं मां-बाप को लगभग भुला चुकी थी। पिछली जिंदगी के पन्ने फाड़कर मैं नये पन्ने लिखने शुरू कर चुकी थी। अब मेरा जीवन सिर्फ और सिर्फ मैक्स के साथ जुड़कर रह गया था। जिन्दगी अपनी चाल चलती जा रही थी। मैं जद्दो-जहद करके दुखों-तकलीफों से लड़-लड़कर जिन्दगी जीने की जीवन जांच सीख गई थी।


मांग भरी जाने पर एक कुंवारी लड़की दुल्हन बन जाती है तथा कोख भरने पर दुल्हन एक मां बन जाती है। हर औरत में मां बनने की इच्छा होती है। मां बने बिना औरत का इस दुनिया में आना व्यर्थ व इसका वजूद मुकमल नहीं माना जाता है। पंजाबी कवि प्रो. मोहन सिंह ने अपनी 'बच्चा' शीर्षक वाली कविता में लिखा है, ''होवन भावें मांवां परीयां, नाल हुस्न दे डक-डक भरीयां, शाहां घरीं ब्याहीयां वरीयां, पहनन पट, हंडावन जरीयां, पूरा कदी शिंगार न होवे, जे लालां दा हार न होवे।"

मैं भी पूरा हार-शिंगार करके अपने आपको पूर्ण औरत बनाने पर तुली हुई थी। लेकिन मेरा ये इरादा तो तभी कामयाब होना था जब परविदगार (प्रमात्मा) ने मेहर करनी थी। प्रमात्मा के आगे अरदास, निवेदन, विनति करने में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दिन-रात मुझे बेचैनी लगी रहती थी कि मैं जल्दी से जल्दी मां बनकर अपनी गोद में बच्चे को लोरी दूं।

चंदोगिया उपनिषद में लिखा हुआ है कि संभोग महायज्ञ के समान होता है। स्त्री अग्नि, पुरूष जलने वाली वस्तु, योनि हवनकुंड, वीर्य आहुति, कोख देव, लिंग पुरोहित, प्रेम मंत्र व बच्चा दो जीवों को मिलने वाला वरदान अर्थात यज्ञ का फल होता है।

मैक्स के संपर्क में आने से लेकर उस समय तक के तीन सालों के समय में हमारे किये सभी 'यज्ञ' व्यर्थ ही जा रहे थे। लेकिन एक दिन उनमें से पता नहीं कैसे हमारा एक 'यज्ञ' सफल हो गया था। देवताआें ने आहुतियां स्वीकार कर लीं थी। मेरे मासिक धर्म चक्र में आई रूकावट को कई दिन बीत चुके थे। मैनसट्रल-पीरीयडस के रूकते ही मुझे अपने गर्भवती होने की सूचना मिल गई थी। मैंने अपने अंदर उपजे बच्चे के साथ बहुत सी आशाएं, उम्मीदें तथा सपने जोड़ लिये थे। मैंने उसे बेहतर इखलाकी शिक्षा देकर ऊंचे स्तर के आचरण का मालिक व अच्छा नागरिक बनाने की मन में धारणा पैदा कर ली थी। मैंने तो यहां तक भी सोच लिया था कि चाहे लड़का हो या लड़की, मैं अपने बच्चे का पालन-पोषण इस्लामी असूलों के अनुसार करूंगी। जब मेरे बच्चे का जन्म होगा मैं उसे नहा-धुलाकर पहले पाक पवित्र करूंगी, फिर उसके कान में ''अव्वल अजान दूंगी, ''अल्ला हू अकबर, अशहदु अल्लाह इल्लाह इललिलाहा, अशहदु  मुहम्मद रसूल अल्लाह, हैया अलससबाह, हैया अलॅल फलाह।"

इस अजान ए अव्वल को सुनकर मेरे जिगर का टुकड़ा मुसलमान बन जायेगा।
रूके हुये मासिक धर्म के बारे में सोचकर मैं खुशी में पागल हुई हवा में उड़ रही थी, जैसे कि मेरे पंख लग गये हों।

कुत्ती जब गर्भवती हो तो वह पैरों से मिट्टी में गढ्ढे बनाने लग जाती हैं। यह संकेत होता है उसकी बेताबी का, इन्तजार का तथा एेलान होता है नई जान के आने का। औरत भी लगभग एेसा ही कुछ करती है, जब वह गर्भवती हो जाती है। पहले कुछ दिन तो मैंने मैक्स से यह रहस्य छिपाकर ही रखा, फिर एक रोज मुझसे रहा न गया तथा मैंने मोजे बुनते हुये मैक्स को यह खुशखबरी सुना दी। मैंने सोचा था कि यह खबर सुनकर मैक्स सिर से लेकर पैरों तक मेरा अंग-अंग चूमने लगेगा। अगर औरत को मां बनने की खुशी होती है तो मर्द को भी बाप बनने का कोई कम चाव नहीं होता। बच्चा पैदा करके आदमी, औरत पर अपनी मर्दानगी की मोहर लगा देता है तथा दुनिया के सामने साबित कर देता है कि वह नपुंसक नहीं है। मैं सोचती थी कि मेरे गर्भ ठहरने की खबर सुनकर मैक्स से खुशी संभाले नहीं संभलेगी। लेकिन नहीं, जैसा मैने सोचा था, वैसा बिल्कुल नहीं हुआ था। मेरा एेसा सोचना गलत था। मैक्स को तो ये सब सुनकर आग ही लग गई थी, वह बौखला गया था।

''इस नाजायज बच्चे को गिरा दो", मैक्स ने एक टक फैसला सुना दिया था।

''क्यों?"

''हमें इसकी जरूरत नहीं है।"

मैं प्यार से अपने पेट पर हाथ फिराने लगी थी, ''चलो हमने कौन सा इसकी प्राप्ति के लिये कोई विशेष कोशिश की है, बच्चे तो भगवान का आर्शीवाद होते हैं, अब पेट में आये को फेंकना थोड़ी है?"

''नहीं, नहीं, अच्छी औरत बनके, अबार्शन करवाने की कर।"

''किस लिये?" मैं कड़क कर बोली थी।

''अपना क्या पता कब तक इकट्ठे हैं तथा कब अनबन हो जाये। हमने कौनसा शादी की है? वैसे ही तो रहते हैं। कुंवारी मां के बच्चों का कोई ज्यादा अच्छा भविष्य नहीं होता। लड़की हुई तो  तुम्हारी  जैसी कंजरी (वेश्या) बन जायेगी। अगर लड़का हुआ तो चोरी-चकारी करेगा, बदमाश, दस नंबरी, गैंगस्टर या डॉन ही बनेगा।"

मैक्स के ये तीखे बोल कीलों की तरह मेरे पोटे-पोटे में धंस गये थे। यह सुनकर मुझे बड़ा धक्का लगा था कि उसकी नजरों में मेरी हैसियत एक वेश्या जितनी थी। वह मुझे रंडी समझता था। रोष में आकर मैंने उसे बहुत झाड़ डाली थी, ''कुंवारीयों के पेट से अपराधी नहीं, बल्कि दुनियां को रास्ता दिखाने वाले ईसा मसीह जैसे पैगंबर तथा महाभारत जैसे धर्मग्रन्थ की रचना करने वाले व्यास जैसे ऋषि-मुनी या दानवीर कर्ण जन्म लेते हैं….।"

मैं कत-ए-हमल (भू्रण हत्या) का गुनाह करने के हक में नहीं थी, तथा मैक्स मुझसे यह अबार्शन जैसा पाप करवाने पर तुला हुआ था। इसी बात को लेकर हमारे बीच तीखी बहस हुई तथा आपस में झगड़ पड़े। नौबत तो मारपीट तक पहुँच गई थी। मुझे नीचे गिराकर मैक्स मेरे पेट में लात-घूंसे मारने लगा। मैंने अपने हाथों की ढाल बनाकर मुश्किल से अपने गर्भ को बचाया था। आधा पौना घंटा मुझे मारने-पीटने के बाद मैक्स वहां से चला गया तथा मैं वहां पड़ी रोती रही।

वैसे थोड़ी बहुत तो मैं मैक्स के साथ भी सहमत थी। हम दोनों के बीच लिखित या जुबानी कुछ भी तय नहीं हुआ था। हमने न तो कोई वादा किया तथा न ही कोई कसम खाई थी। हमने कोई रस्म भी नहीं निभाई थी। सबसे बड़ी बात हमने एक दूसरे के साथ शादी भी नहीं की थी। वैसे ही इकट्ठे रह रहे थे। दो मुसाफिरों की तरह जो कुछ समय इकट्ठे सफर करने के बाद कभी भी बिछुड़ सकते हैं।

बच्चा होने से हमारा खर्च बढ़ जाना था। हम तो पहले ही बड़ी मुश्किल से गुजारा कर रहे थे। बस सामाजिक सुरक्षा विभाग के रहम-ओ-करम तथा मेरी तन्खाह से हमारे घर का खर्च चल रहा था। मैक्स कोई काम धन्धा नहीं करता था। एक मैं ही थी जो थोड़ी-बहुत नौकरी करती थी। बच्चे की पैदायश से वह भी छूट जाती । हमें तो दो वक्त अपने खाने पीने की चिंता रहती थी। बच्चे का खर्च उठाने के तो हम बिल्कुल योग्य नहीं थे। इस बात पर विचार करते हुये मेरे जिस्म का एक हिस्सा मैक्स का कहा मानकर अपने पेट में पंगुर रहे बीज को साफ करवा देने को कहता तथा दूसरा हिस्सा ममता का पक्ष पूरा करके मुझे पाप करने से रोकता था।

तीन-चार दिन इसी तरह फैसला करते-करते निकल गये। अंत में मैं मैक्स के आगे झुक गई थी तथा मजबूरन क्लीनिक चली गई थी। वहां पर मैंने वेटिंग रूम में अपने साथ बैठी मेम को स्वाभाविक ही पूछ लिया था, ''आप यहां कैसे?"

सुलगती सिगरेट मुँह से निकालकर धूंआं छोड़ती हुई उस औरत ने कहा, ''क्या पूछती हो बहन, बेवकूफ यार के पंगे डाले हुये हैं। नहीं तो मैं कहां बच्चों के झंझट में पडऩा चाहती हूँ। ऐसे ही कई महीने पेट निकाले घूमते रहो, आजादी गंवा दो, शरीर खराब कराओ। मैं तो गर्भ में से भ्रूण को कांटे की तरह निकालकर बाहर फेंक दूँ।"

उसका यह विचार सुनकर मुझसे रहा न गया, ''अगर तुम्हारा यही इरादा था तो पहले ही चौकन्ना रहना था?"

''तुझे तो पता ही है कि उस समय मजे-मजे में ∙ हां पता चलता है। बाद में पछताना पड़ता है। मैं तो बहुत सावधानी रखती थी। कभी चूक हो गई। मेरा आदमी हमेशा वह गुप्त अंग पर चढ़ाने वाला होता है न ....वस्त्र?"

''अंग का वस्त्र? कौन सा वस्त्र मैं समझी नहीं?" मैंने उसे बीच में टोका था।

''अरे वही..... जो क्या कहते हैं-हां, कंडोम। वहीं चढ़ाकर मेरा मर्द मुझे हाथ लगाता था। सैक्स के बाद सारा वीर्य उसी गुब्बारे में भर जाता था। रबड़  होती है वह। रगड़ खा-खाकर गर्म हुआ निरोध कई बार फट जाता था। बस तभी बच्चा पैदा करने वाले शुक्राणु भगौड़े होकर गुब्बारे से निकलकर अपना काम कर गये होंगे। खैर चलो, अब एक मिनट में डाक्टर सफाई करके मेरी जान आसान कर देंगे।" पूरे का पूरा मुँह खोलकर रज़ाई लेकर वह औरत चुप कर गई थी।

कितनी अलग व मतलबप्रस्त सोच थी उस अंग्रेज औरत की मुझसे। कितने स्वार्थी होते हैं ये तन के गोरे मन के काले लोग। मेरी तो गर्भपात करवाना मजबूरी थी। वर्ना मैं तो एेसा पाप कमाने के बारे में सोचती तक भी नहीं।

बहरहाल मैंने बैठी-बैठी ने एक नर्स को गर्भपात करने की विधि के बारे में पूछा था तो उसने मुझे विवरण सहित बताया था कि कैसे मांस को छोटे-छोटे टुकड़े करके बच्चे को खत्म किया जाता है। नर्स से सारा विवरण सुनकर मेरी तो सांस ही अटक गई थी, मैं अंदर तक कांप रही थी तथा मेरे आंसू निकल गये थे।
क्लीनिक में यहां मैं बैठी थी वहां सामने दिवार पर एक रोते बच्चे की तस्वीर लगी थी। उस थुलथुल व प्यारे से बच्चे को देखकर एेसा लगता था जैसे वह मुझे तस्वीर में खड़ा कह रहा हो, ''मां....नहीं...इतना बड़ा जुल्म मत करो, मां तो जन्म देती है, मौत नहीं.....नहीं मां...मुझे मत मारो….।"

तथा फिर बच्चे की मिन्नत-मसाजत करती आवाजें मेरे कानों में ऊंची होती चली गई थीं। उस चीख पुकार को सुनकर मेरी आत्मा जमी हो गई थी तथा मैं वहां से उठकर भाग गई थी। मेरे अन्दर की औरत हार गई थी तथा मां जीत गई थी। मैंने घर आकर मैक्स को अपना फैसला बता दिया था कि मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी, चाहे वह मेरे साथ खड़ा हो या नहीं। मैक्स सुनकर बिल्कुल गूंगा ही हो गया था। कुछ भी नहीं बोला था। मेरे विचार में उसकी चुप्पी का अर्थ यह था कि उसने मेरे फैसले को मान लिया था।

उस शाम मैं सीढ़ी चढ़ रही थी। जब शिखर पर पहुँची तो मेरा पहले से इंतजार कर रहे मैक्स ने धक्का मारकर मुझे नीचे गिरा दिया। सीढ़ीयों से लुढ़कती हुई मैं नीचे आ गिरी थी। मेरे सिर पर भी काफी चोट लगी थी, मेरा पेट तो आटे की तरह गूंथा गया था, मेरे पेशाब वाली जगह से खून बह निकला था, मैं नीचे जमीन पर गिरी पड़ी थी। मुझे एेसी नाजुक हालत में देखकर मैक्स सीढिय़ों से उतरा तथा मेरे पीठ व पेट पर बेरहमी से ठोकरें मारकर खुद घर से बाहर चला गया। मेरा बुरा हाल हुआ पड़ा था तथा उठने की भी ताकत नहीं थी। रींगने वाले कीड़े-मकौड़ों की तरह धरती पर घिसट-घिसट कर जैसे तैसे करके मैं फोन के पास पहुंची तथा एंबुलेंस वालों को फोन किया। फोन का रिसीवर रखते ही मैं बेहोश हो गई थी।

अल्ला ही जानता है कि कब एंबुलेंस आई तथा कैसे एमरजेंसी सर्विस वाले घर के अन्दर दाखिल हुये पता नहीं। मुझे कुछ भी पता नहीं था, मुझे जब होश आई तो मैं अस्पताल में पड़ी थी। मेरी बाजू पर खून की बोतल लगी हुई थी। मैंने बिस्तर पर लेटी हुई ने ही आस-पास देखा, कमरे में मैं अकेली ही थी, कोई भी मेरे आस-पास नहीं था। मैंने पूरी आँखें खोलकर छत्त को घूरा तो दुबारा उस हादसे वाला खौफनाक मंजर मेरी आँखों के सामने आ गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैक्स ने एेसा क्यों किया था? कोई इतना बड़ा निर्दयी भी होता है? घटना से कुछ समय पहले वह अच्छा-भला मेरे साथ हंस खेल रहा था, न हम लड़े, न झगड़े तथा न ही हमारी आपस में कोई नोक-झोंक हुई थी। फिर भी उसके इस तरह से बहशीआना हमला करने का कारण मुझे समझ नहीं आया था।

मेरे कमरे में कुछ रखने के लिये नर्स आई तो मुझे होश आई देखकर उसने चैकअप के लिये डाक्टर को बुला लिया। वैसे थोड़ी जानकारी तो मुझे खून निकलने से ही हो गई थी। लेकिन डाक्टरों के बताने पर सब कुछ सफेद दूध की तरह सामने आ गया था कि मेरे गर्भ में खिलने वाला फूल समय से पहले ही मुरझा गया था। जब मिसकैरेज (गर्भपात) की मनहूस खबर डाक्टर ने सुनाई तो मेरे तो जैसे मां-बाप ही मर गये, मेरा दिल करे कि जहर खाकर जान दे दूं।

तब मैं तीन दिन अस्पताल में रही थी। मैक्स एक दिन भी मुझसे मिलने, देखने या पता करने नहीं आया था। चौथे दिन मुझे छुट्टी देकर घर भेज दिया गया था। घर आकर मैंने रो-रोकर बच्चा गिरने की सूचना सुनाई थी। मुझे लगता था कि मैक्स यह सब सुनकर उदास हो जायेगा। मुझसे माफी मांगेगा, मेरे पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ायेगा, लेकिन मैक्स की तो खबर सुनकर बांछें खिल गई थी। साफ जाहिर था कि उसने मुझे धक्का जान-बूझकर बच्चे को खत्म करने के उद्ेश्य से ही दिया था। मेरी भलमनसाहत देखो, मैं फिर भी मैक्स को बचा गई थी। औरत मर्द का वस्त्र होती है। जो उसके पर्दे ढंककर रखती है। डाक्टरों व पुलिस को मैने इतना अनर्थ हो जाने पर भी यही ब्यान दिया था कि मैं फिसलकर सीढिय़ों से अपने आप ही गिर गई थी। अगर मैं असलियत का चिट्ठा खोल देती तो वे लोग तो उसी समय मैक्स को जेल यात्रा करवा देते। चाहे मैंने ऐसा कोई सखत कदम तो नहीं उठाया था । लेकिन उसी दिन से मुझे मैक्स के साथ नफरत हो गई थी।

जब भी बात होती तो मैं बार-बार मैक्स से अपने बच्चे को कत्ल करने का कारण पूछती, लेकिन मैक्स कुछ नहीं बोलता। आखिर मैंने इस विषय पर बात करनी ही छोड़ दी। फिर एक दिन शराबी हालत में बोल ही पड़ा तथा उसके अन्दर का सच सामने आ ही गया।

दरअस्ल मैक्स ने बच्चे को रास्ते से इसलिये हटाया था, क्योंकि उसे मेरे साथ मुहब्बत ही नहीं थी। वह तो सिर्फ मन बहला रहा था, कामुक जरूरतों को पूरा करने के लिये मेरा इस्तेमाल कर रहा था। सबसे बड़ा डर मैक्स को यह था कि अगर बच्चा पैदा हो गया तो मुझसे अलग होने की सूरत में उसे सारी जिंदगी मुझे बच्चे का खर्च देना पड़ता। वह इस जिम्मेवारी से भाग नहीं सकता था, क्योंकि जो मर्द अपनी पत्नि या गर्लफ्रेंड के सिर पर बच्चे का वजन डालकर भाग जाते हैं, चाइल्ड स्पोर्ट एजेंसी नामक संस्था एेसे मर्दों से जब्रदस्ती बच्चों के पालन-पोषण के लिये खर्च दिलवाती है। सारी जिंदगी बच्चे का खर्च देने के डर से मैक्स ने यह घटीया काम किया था। अगर कहीं मैक्स खुलकर मुझे अन्दर की बात बता देता तो मैं उसे कह देती कि तुम जाओ एेश करो। मेरी ओर से तूं आजाद है। मैं खुद ही अकेली इस बच्चे को जन्म दूंगी तथा अकेली ही इसका पालन कर लूंगी। तुझसे फूटी कौड़ी नहीं मांगूंगी। इस देश में कितनी ही एेसी महिलाएं हैं जो अकेली ही बच्चों का पालन करती हैं। लेकिन क्या कर सकती थी मैं? मुझे तो मैक्स ने कोई मौका ही नहीं दिया था। मैंने दिल में बच्चे का बहुत गम मनाया था। जबसे मुझे अपने गर्भवती होने का पता चला था, उसके बाद थोड़े से दिन में ही मेरा अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से बहुत लगाव हो गया था। मैं दिन में कई-कई बार शीशे के सामने खड़ी होकर अपना पेट नंगा कर लेती तथा उस पर हाथ फिराकर देखती रहती। जैसे मारवाड़ी सेठों का बड़ा सा पेट होता है, उसी तरह से मैं भी अपना पेट जल्दी से जल्दी घड़े की तरह हुआ देखना चाहती थी। लेकिन अबार्शन के बाद उस भाग्यहीन जिंदगी के वैराग्य में मैं अकसर रोती रहती थी। कई दिन शोक मनाती रही थी मैं। आंसू बहा-बहाकर मैंने धीरे-धीरे अपने मन को मार लिया था।

औरत अगर किसी मर्द को दिल से प्यार न करती हो तो उस व्यक्ति से किसी न किसी मजबूरी में सैक्स तो कर सकती है, लेकिन बच्चा सिर्फ उसी आदमी का पैदा करती है, जिसे दिल से चाहती हो, जो मर्द उसके अन्दर तक उतर गया हो, जो उसकी रूह को हिला गया हो, मैक्स तो मुझसे एेसा कुछ भी नहीं कर सका था। इतने समय तक मेरे साथ रहने पर भी वह मेरे दिल को छू तक नहीं सका था। साथ ही वह बच्चा मैं उसके लिये नहीं अपने लिये पैदा करना चाहती थी। मैं सोचती थी कि कोई और नहीं तो बच्चा ही मेरी जिन्दगी का सहारा बन जायेगा। मुझे जीने का मनोरथ मिल जायेगा। दूसरी तरफ मैं यह सोचकर अपने मन को दिलासा दे लिया करती थी कि चलो जो हुआ वह ठीक नहीं हुआ। कितने जुल्म व तकलीफ मैं मैक्स की दी हुई बर्दाशत कर रही थी, मैं नहीं चाहती थी कि मेरे बच्चे को भी एेसा कुछ सहन करना पड़े। आगे से मैंने और बच्चा पैदा न करने का दृढ़ निश्चत कर लिया था, भक्त कबीर जी ने अपनी वाणी में कहा है कि ''जननी जणै त भगत जन कै दाता कै सूर, नहीं तो जननी बांझ रहे काहे गवावे नूर"

मैक्स के गंदे खून से तो गंदा खून ही पैदा होना था। उससे तो मैं बेऔलाद रहना ही कई गुणा अच्छा खयाल करती थी, मैं दुबारा गर्भवती होने का थोड़ा सा भी रिस्क नहीं लेना चाहती थी, इसलिये मैंने कनेक्शन कटवाकर सदैव के लिये मामला खत्म कर दिया था। एक बार जो झेल चुकी थी, फिर से मैं उस संताप को नहीं भुगतना चाहती थी, इस तरह से मैं जिंदगी भर के लिये बच्चा जनने की खुशी से वंचित होकर रह गई थी। अब जिंदगी भर मैक्स जितना मर्जी 'फायरिंग' करता रहे, सारी की सारी खाली जायेगी, इस तरह मां बनने की चाहत मेरे मन की कब्र में ही दफन होकर रह गई थी।

इस घटना के बाद हमारे संबंध कभी भी आम जैसे हो ही नहीं सके थे, मैं तथा मैक्स, हम एक दूसरे को अपनी-अपनी जरूरतों के लिये इस्तेमल करते थे तथा इसके बिना हमारे बीच और कोई रिश्ता नहीं रहा था, मुझे सुरक्षा व साथ की जरूरत थी तथा मैक्स को मेरे जिस्म तथा एक औरत की, जो उसके लिये एक नौकरानी का काम देती थी, मैं उसकी पत्नि थोड़ी थी, मैं तो एक आया हूँ, आया, हमारे बीच सिर्फ शारीरिक रिश्ता ही रह गया था। मुहब्बत न थी, न है तथा न ही अब कभी होगी, मेरा तो मैक्स पर बिल्कुल मन नहीं भीगता, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती, उम्र भर के लिये लगा हुआ यह श्राप अब जिंदगी खत्म होने पर ही खत्म होगा, मां-बाप को छोड़कर इसके पास आई हूँ, अब इसे छोड़कर किसके पास जाऊं? इस सवाल पर आकर मेरी सोच व जिंदगी दोनों हमेशा-हमेशा के लिये अटक जाती है।

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