Wednesday 6 May 2015

Cover Model: Madhuri Gautam /Photography: Vicku Singh, Gaurav Sharma & Rishu Kaushik/ Makeup: Gagz Brar

Monday 4 May 2015

Novelist Balraj Singh Sidhu
बलराज सिंह सिद्धू प्रवासी पंजाबी लेखकों में से सबसे अल्प आयु का एक स्थापित और कददावर नाम है। 16 मार्च 1976 को जगराऊँ, जिला-लुधियाना में जन्में बलराज सिद्धू बचपन से ही इंग्लैंड के सीने में सिथति बर्मिंघम शहर में बसा हुआ है। उसने अपने श्रम, लगन, कला और विषयों की विलक्षणता के साथ पूरी दुनिया में अपने लिए विशाल पाठक वर्ग पैदा किया हुआ है। उसका शुमार इंग्लैंड के युवा और अधिक पढ़े जाने वाले लेखकों में होता है। पंजाबी साहित्य के क्षेत्र में बहुत सारे विषय ऐसे हैं, जिन पर सर्वप्रथम कलम आजमार्इ सिफऱ् बलराज सिद्धू ने ही की है। उसको प्रकिति द्वारा यह वर प्राप्त है कि वह जब अपने हुनर और कला द्वारा नवीन दृषिटकोण से बेबाकी के साथ कोइ बात लिखता है तो पुराने कलमकारों द्वारा बनाइ सारी धारणायें रदद करके पाठकों के मनों में एक नया बिंब उभार देता है। बलराज सिद्धू कहानी लिखने के लिए जन्मा है या कहानी का आविष्कार बलराज सिद्धू के लेखन के लिए ही हुआ है, इसका निर्णय करना कठिन है। उसकी पुस्तकों की बिक्री और फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग मीडिया पर उसकी रचनाओं को मिलने वाले हुंकारे ने यह सिद्ध किया है कि शिव कुमार बटालवी (पंजाबी कवि) के बाद नौजवान सित्रयों द्वारा शिददत से यदि किसी पंजाबी साहित्यकार को पढ़ा जाता है तो वह बलराज सिंह सिद्धू है। बलराज सिद्धू शब्दों का ऐसा शिल्पकार है कि उसका जादू पाठक के सिर पर चढ़कर बोलता है और उसकी कोर्इ भी रचना पढ़ते समय बीच में छोड़ पाना असंभव हो जाती है। 
-रूप दविंदर कौर नाहल, रेडियो व टी.वी. प्रैजेंटर, लंदन












अनुक्रमिका
1. कांड-    भोर का इंतजार
2. कांड-    स्वर्ग से  सुंदर
3. कांड-    हुस्न, जवानी और इश्क
4. कांड-    मर्ज-ए-इश्क
5. कांड-    बिरहा तू सुल्तान
6. कांड-    रंग में भंग
7. कांड-    बगावत
8. कांड-    प्रेम पत्र
9. कांड-    लंबी उड़ान
10. कांड-    नई सेज, कुंआरी काया
11. कांड-    भूल गई यार
12. कांड-    टूर डी फ्रांस
13. कांड-    इब्तदा (शुरूआत)
14. कांड-   पुरातन कथा नये पात्र
15. कांड-   कुत्ते की पूंछ
16. कांड-   मां
17. कांड-   सिविल वार
18. कांड-  वेश्या
19. कांड-  हमराही
20.कांड-   नींद न देखे बिस्तरा
                   



             -सावधानी-
इस नावल क ी क हानी क ाल्पनिक  है तथा इस मंे वर्णित
       घटनायें, वृत्तांत व पात्रों क ा यथार्थ से क ोई  सबध नहीं है 
     अगर सी  वास्तविक  तथा निजि जिंदगी से विवरण
     मिलता  हो  तो  यह  महज   एक    इत्तफ ाक   होगा।


1. कांड- भोर का इंतजार



Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar

 ''ऐंह.......हैं....ऐं...हां….।" मैं एकदम ठिठक कर जाग गई, डर से मेरा वजूद इस तरह कांप उठा, जैसे बज रही सांरगी की तार में क ंपन होती है। हैरान परेशान होकर इधर-उधर देखने लगती हूं.....अरे ? ये तो मैं कोई सपना देख रही थी। मैं तो अपने घर में, अपने पलंग पर लेटी  हुई हूं। यहां नदी कहां ? अभी-अभी देखा सपना  मुझे दुबारा याद आने लगता है।

दूर-दराज, किसी अन्जान सी जगह में कोई अज्ञात सा गांव है। शायद यह एशिया का कोई पुराना गांव होगा। प्राचीन समय में घूम रही थी मैं। कु छ जवान लड़कियों की टोली बनाकर गांव से बाहर नदी पर नहाने के लिए जाती हैं। एक पशु चरा रहा लड़का उन्हें छेड़ता है। वे लड़कियां उस चरवाहे की ओर कोई तबज्जो दिए बिना आगे निकल जाती हैं। चरवाहा उनकी बेपरवाही क ो अपनी बेइज्जती समझ कर उन लडकियों का चुपके-चुपके  पीछा करने लग जाता है। लड़कियां आगे जाकर सुनसान नदी के किनारे अपने कपड़े उतारकर रख देतीं हैं तथा  नहाने लग जाती हैं। वे गीत गा-गाकर एक दूसरी को रगड़-रगड़ कर नहलाती हैं। कौन सा गीत गाती थीं वे ?...हां गाने के बोल कु छ इस प्रकार थे........
 
''उजड़ा बुर्ज लाहौर का ते हेठ व्गे दरिया,
मल-मल नावण गोरीयां ते लैज गुरां दा नां…"

कांड 2 -स्वर्ग से सुंदर

Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar

हरा-भरा संसार था हमारा। मैं अमी, अब्बू, मेरी दो बहनें तथा दो भाई। ये थी हमारी दुनिया। एक बहन के बिना बाकी सभी मेरे बहन-भाई मुझे से छोटे थे। नाजीया सबसे बड़ी थी। उसके दो साल बाद मेरा जन्म हुआ था। मुझ से सलीम एक साल छोटा था। सलीम की पैदायश से पूरे तीन साल बाद गफूर का जन्म हुआ था, तथा आगे राजीया का गफूर से चार साल का अंतर था। आम मुस्लिम परिवारों की तरह हमारा परिवार भी चाहे कु छ बड़ा ही था। लेकिन फिर भी हम में से कोई भी किसी दूसरे सदस्य को गैरजरुरी नहीं समझता था। कोई भी किसी दूसरे सदस्य को गैरजरुरी नहीं समझता था। जुराब से लेकर सिर की चुनरी तक जैसे एक औरत के पहने हुए सभी वस्त्रों का अपना-अपना महत्त्व होता है। सलवार की जगह कु त्र्ता या ब्लाऊज़ की जगह पेटीकोट नहीं पहना जा सकता। वैसे ही परिवार में सभी सदस्यों की अपनी-अपनी अहमीयत होती है। किसी भी सदस्य को हमारे परिवार में से अलग करके नहीं देखा जा सकता था। हम सभी में इतना ज्यादा प्यार था कि हम एक दूसरे की सौगंध तक नहीं उठाते थे।

कांड 3- हुस्न, जवानी व इश्क


Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar
मुझे बचपन में देखकर लोग कहा करते थे कि मैं अमर-बेल की तरह बढ़ती जा रही हूं। मैं पूरे पंद्रह साल व छ: महीने की हो गई थी। ये इतने साल बीतने का अहसास ही नहीं हुआ था। पंद्रह साल जैसे पंद्रह साल तो लगते ही नहीं थे। ऐसे लगता था जैसे पंद्रह सैकिंड हों। मैं अल्हड़ व भोली-भाली सी थी। मेरे चेहरे से मासूमियत ही मासूमियत झलकती रहती थी। मेरे बदन ने बचपन को विदा करके जवानी का स्वागतम ताजा-ताजा ही किया था। यौवन किसे कहते हैं, इसका मुझे पता ही नहीं था। हां, इतना ही जानती हूं कि उस समय सूर्य को देखकर मेरा दिल किया करता था कि उसे पकड़ कर साबुत निगल जाऊं। नहाते समय या कपड़े बदलते समय शरीर गर्मागम भाप छोडऩे लग जाता था। सारे शरीर में से सेंक निकलते लगता। शरीर का प्रत्येक अंग गर्माहट छोड़ता। अपने अंदर धधक रही आग को बुझाने के लिए मेरा बर्फ के पहाड़ पर लेटने को दिल चाहता। बार-बार पानी पीना, बहुत प्यास लगना। दिल में आता कि कोई बहुत बड़ा समुंदर हो, कोई महासागर तथा मैं उसे एक ही घंूट में पी जाऊं ताकि मेरी प्यास बुझ सके। भटकन, एक प्यास सी हर समय लगी रहती थी। शायद इस आग का नाम ही जवानी होगा।

कांड 4 -मर्ज-ए-इश्क


Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar


मैं हाई स्कूल के आखिरी साल में थीं उसके बाद मेरी स्कूल की पढ़ाई खत्म हो जानी थी। मेरा याल है, अक्तूबर का महीना था वह। उस साल गर्मी बहुत पड़ी थी तथा सर्दी काफी लेट थी। शनिवार व इतवार पूरा दिन-रात बारिश होती रही थी। हवा में नमी आने के कारण ठंड हो गई थी। सोमवार को स्कूल पहुंचने पर सब (छात्रों व अध्यापकों) को स्कूल की सारी सेंट्रल हीटिंग खराब होने की खबर मिली थी। गर्मीयों का पूरा सीजन मुकमल तौर से हीटर व रेडीएटर बंद रहने के कारण उनमें कोई खराबी आ गई थी, जिसकी रिपेयर पर पांच छ: घंटे लग सकते थे। सर्दी में बच्चों को स्कूल के ठंडे कमरों में बैठने को कहना उन्हें सजा देने के समान था। ऐसी स्थिति में पढ़ाई तो क्या होनी थी, उल्टा उनके बिमार होने की संभावना थी। इसको ध्यान में रखते हुऐ हमारे प्रिंसीपल ने हमें उस दिन स्कूल में छुट्टी करदी थी। वैसे भी उन दिनों में अभी कोई खास पढ़ाई नहीं होने लगी थी। क्योंकि सितंबर में ही तो नई क्लासें शुरू हुई थी। हम सभी छात्र-छात्राएं घर पर खाली बैठने की बजाए वर्दीयां बदलकर सीधे सिनेमाघर में फिल्म देखने चले गये।

कांड 5 -बिरहा-तू-सुल्तान

Model: Madhuri Gautam Photography: Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup: Gagz 

आखिर एक रोज मेरी अर्ज मालिक के दरबार में कबूल हो ही गई थी। बीमारी से मुझे छुटकारा मिल ही गया। हमारे फैमिली डाक्टर का अस्पताल शाम को ही खुलता था। शाम को जाकर मैं डाक्टर से फिट नोट ले आई थी। सारी जिंदगी में मैंने जितने दफा घड़ी देखी है, उतनी बार उस एक रात में ही देखी थी। बड़ी बेसब्री में मैंने वह रात गुज़ारी थी। आधी रात को ही मैं नहा धोकर तैयार हो गई थी। निर्धारित समय से बहुत पहले, अंधेरे में ही मैं घर से स्कूल को रवाना हो गई थी। मैंने पूरी तरह दिन भी नहीं चढऩे दिया था। लंबा समय बीमार रहने के बाद मैं पहले दिन स्कूल गई थी। मेरे बिना स्कूल में अभी एक भी विद्यार्थी नहीं आया था। स्कूल में सां-सां हो रही थी। समय सारणी  के अनुसार उस दिन मेरा पहला लैसन ही विज्ञान का था। कई छुट्टियां करने की वजह से मैं पढ़ाई में पिछड़ गई थी। नि:संदेह बाकि विद्यार्थियों के  साथ पहुंचने के लिए मुझे दिन-रात एक करना जरुरी था। नोटस् तो मैं किसी की नोट बुक मांगकर  घर पर भी नकल कर सकती थी। लैक्चर भी सारे रिकॉर्ड होकर साल भर के लिए स्कूल की लाईब्रेरी में जमा रहते थे। मैं किसी समय भी वहां से टेप निकलवा कर काम चला सकती थी। लेकिन प्रयोग मुझे कक्षा में ही करने जरुरी थे। पुराने एसाईनमैंट फु र्ती से निपटाने की सोचकर सुबह जल्दी ही स्कूल लगने से पहले ही मैं लैबॉट्री (प्रयोगशाला) में चली गई थी। आगे वहां इकबाल बैठा अपना प्रैक्टिकल का काम निपटा रहा था। उसे देखकर मेरा पीला पड़ा रंग शराब की लाली में बदल गया। मुझे तो खुशी होनी ही थी, इकबाल को भी मेरा दीदार करके  बेहद खुशी हुई थी। हाय-हैलो कहने की जगह मैंने हंसते हुए पंजाबी गायिका परमिंद्र संधू व गायक दीदार संधू के गाए दोगाना पंजाबी गीत की लाइनें गुनगुना दी, ''दिन लंघंूगा सुहागरात वर्गा, वे उठदी दी नज़र पियैं ।"  

कांड 6 -रंग में भंग


                
इजबल नाम की अंग्रेज लड़की हमारे स्कूल की एक और हॉट (गर्म) प्रॉपर्टी मानी जाती थी। गर्मा-गर्म पकौड़ों की तरह लड़कों में उसक ी बहुत मांग थी। उसकी आंखें पूरी नीली थीं,समुंदर के पानी  जैसी । मेम होने के कारण जाहिर है कि वह गोरी थी। लेकिन उसकी नरम, मुलायम चमड़ी, मौस्चराईज़र क्रीम व हल्का सा मेक-अप करने पर और भी लिस्क (चमक) जाती थी। उसके होठों पर हमेशा हल्की सी लिपस्टिक लगी होती थी, जिस कारण उसके लब (होंठ) काफी आकर्षित लगते थे। उसके कंधों तक लबे कटे हुए बालों का असल रंग तो गेहूंआ था, लेकिन वह हर महीने उन्हें नए हेयर कलर से रंग लिया करती थी। जिस कारण इजबल की दिखावट पर हर महीने पहले से भी ज्यादा निखार आ जाता था। उसकी बातचीत में इतनी मिठास होती थी कि सुनकर ऐसा लगता था जैसे बाग में कोई कोयल गीत गा रही हो। हर समय उसे बातें करते सुनने को दिल करता रहता था। अपनी सुडौल टांगों की बनावट सुंदर होने के कारण वह आम तौर पर उन्हें नंगी रखने के लिए मिनी स्कर्ट ही पहना करती थी। उसका मध्यम दर्जे का शरीर था, न ही बहुत  मोटी व न ही पतली। वह न तो लंबी थी तथा न ही ठिगनी थी। उसका सिर से पैरों तक समूचा ढांचा ही देखने को बहुत कामुक प्रभाव देता था। नि:संदेह इजबल भी मेरी तरह एक 'आईटम' मेरे विचार में हमारे स्कूल की सबसे सुंदर लड़की थी। लेकिन इजबल मुझे सबसे हसीन समझती थी। एकबार तो उसने अपने मुंह से भी मुझे कहा था, ''हाय, शैजीया ,भगवान ने तुझे जी भरकर रूप दिया है। मुझे तुझ से बड़ी जलन होती है। अगर तुम न होतीं तो मैंने इस स्कूल की सबसे सुंदर लड़की होना था।"

कांड 7 -बग़ावत

Model: Madhuri Gautam Photography: Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup: Gagz Brar
                    
मेरी बहन नाजीया मुझ से पूरे दो साल बड़ी थी। हाई स्कूल से निकलने के बाद उसे आगे पढऩे नहीं लगााया गया था। ज्यादातर ऐशीयन लोग ऐसे ही करते हैं, विशेष करके हमारा मुस्लिम समाज। लड़की को स्कू ल भी सिर्फ मजबूरीवश ही भेजते हैं, क्योंकि इस देश के कानून के अनुसार सोलह साल तक स्कूल जाना जरुरी है।
                 
मेरे रुढ़ीवादी मां-बाप के जंग लगे दिमाग में यह बात बैठी हुई थी कि पढ़ लिखकर लड़कियों के दिमाग खराब हो जाते हैं। उनकी तबीयत बागी किस्म की हो जाती है। सोच में विद्रोह आ जाता है। वह बाहर लड़कों से दोस्ती कर लेती हैं। इश्क लड़ा लेती हैं। अपनी मर्जी से दूसरे धर्मों व नस्लों के व्यक्तियों से पहली बात तो शादी करवा लेती हैं, नहीं तो कम-से-कम शरीरिक संबंध तो जरुर ही कायम कर लेती है।
    
मेरे मां-बाप हरगिज नहीं चाहते थे और आजाद याल तथा आवारा लड़कियों की तरह हम सभी बहनों में से किसी एक पर भी पश्चिमी सयता का प्रभाव पड़े। ऐशीयन लोगों में पश्चिमीकरण के पैदा हो रहे रुझान से मेरे अब्बा खासतौर से फिक्रमंद थे। इसीलिए हमें आधुनिक अंग्रेज लोगों वाली पोशाकें भी नहीं पहनने दी जाती थीं। पहले-पहल मैंने विरोध किया था कि मैं भी माडर्न कपड़े पहनूंगी अग्रेजों जैसे। मेरे अब्बा ने मुझे चिल्लाकर डांटा था,''नहीं तुझे यही (सलवार-सूट) कपड़े पहनने होंगे। अपना पहरावा यही है। गोरियों की भी कोई पोशाकें हैं, सारा शरीर तो उनमें से दिखाई देता रहता है।"
              
''इन देसी कपड़ों में क्या खाक सुंदर लगूंगी? इससे तो मुझपर सारंगी पर लपेटे कपड़े की तरह गिलाफ ही चढ़ा दो। छुपा दो मुझे पूरी तरह दुनिया से। किसी भी अंग को हवा न लग जाए।"
              
''सुंदरता जिस्म के प्रदर्शन में नहीं बल्कि उसे ढंक कर रखने में होती है।" अमी गुस्से से चिल्लाई थी।

कांड 8 -प्रेम पत्र

Model: Madhuri Gautam /Photography: Vicku Singh, Gaurav Sharma & Rishu Kaushik/ Makeup: Gagz Brar

मायूस होकर मुझे अपनी जिंदगी से इस तरह नफरत हो गई थी कि मेरा दिल करता था कि मैं मर जाऊं। यकीन करो तो मैंने ऐसा करने की कोशिश भी की थी।  अममी कभी-कभार डिप्रेशन तथा नींद की जो गोलीयां खाया करती थी, मैं उनकी शीशी उठाकर सारी की सारी खाने लगी थी। गोलीयां खाकर आत्महत्या करने से पहले मेरे मन में आया कि क्यों न मैं मरने से पहले अपनी वसीयत कर दूं। ऐसा करने के लिये मैं किताबों वाली दुकान डब्लू.एच.समिथ से बहुत समय पहले अब्बा के लिये लाया गया। सरकार से प्रमाणित वसीयतनामा उठाया तथा लिख मारा।

कांड 9 -लंबी उड़ान

 Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar
ईस्टर की छुट्टियां नजदीक आ रही थीं। पाठयक्रम की सारी पढ़ाई खत्म हो चुकी थी। छुट्टियों से पहले स्टॅडी लीव हो जाती थी, जिसका मतलब स्कूल न जाकर घर बैठकर ही पढऩा था तथा सिर्फ जून के महीने में परीक्षा देने ही स्कूल जाना था। हाई स्कूल का पांचवां व अंतिम साल होने के कारण यह साल बहुत महत्वपूर्ण था। जल्दी ही 'रवीजन सैशन' हो जाना था। हमारे अध्यापकों ने सलाह बनाई थी कि दूर-दराज जाकर दो-चार दिन की ब्रेक कर लेने से हमारा सभी बच्चों का दिमाग तरो-ताजा तथा खाली हो जायेगा तथा इसके बाद डटकर परीक्षा की तैयारी करना काफी लाभदायक रहेगा। इस बात को ध्यान में रखकर स्कूल की तरफ से मेरी क्लास के लड़के-लड़कीयों को एक सप्ताह के लिये फ्रांस ले जाने की काफी समय पहले ही योजना बना ली थी। ट्रिप पर जाने की सारी तैयारीयां पूरी हो चुकी थीं। एक दो विद्यार्थी, जिनके मां-बाप खर्च नहीं उठा सकते थे, उन्हें छोङ र बाकी सभी जा रहे थे। मैंने भी अपना नाम नहीं लिखवाया था, क्योंकि मैं जानती थी कि लड़की होने के कारण मेरे रूड़ीवादी विचारों के मां-बाप मुझे लड़कों के साथ दूसरे देश में नहीं जाने देंगे। वैसे मुझे घूमने-फिरने का ज्यादा शौक भी नहीं था।

10. कांड- नई सेज, कुं आरी काया


साथियों के शोर-शराबे से मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि शाम ढल रही थी। दूर दो पहाड़ों के बीच छिपने के लिये खड़ा सूर्य मुझे लेटे हुये भी दिखाई दे रहा था। जैसे कि मुझे गुड-बॉय कहने को ही रूका हुआ था, नहीं तो सूर्य ने कब का अस्त हो जाना था। हालांकि मेरी मुश्किल से दो-अढ़ाई घंटे आंख लगी थी। लेकिन फिर भी ऐसे प्रतीत होता था जैसे मैं कई दिन सोने के बाद जाग रही हूँ। भरपूर नींद ली थी मैंने। हल्का-हल्का सिर तो दर्द कर रहा था। लेकिन मैं फिर भी पूरी होश में थी। दारू का नशा उतर चुका था।

11. कांड-भूल गई यार पुराना


जैसे सावन की बरसात के समय होता है, कभी बिना रूके झन्नाटेदार बारिश रफतार कम करके बूंदा-बांदी पर आ जाती है तथा कभी बूंदा-बांदी से हल्की रिमझिम पर तथा कभी फिर जोर पकड़कर मूसलादार बारिश होने लगती है। उसी तरह मैं रोये जा रही थी। रोकने की कोशिश करने पर भी मुझसे अपने आंसू रोके नहीं जा रहे थे। मेरे टैंट में बैठी मेरी सहेलियां एंजला व इजबल मुझे जितना चुप करवाने की कोशिश करती थीं, मैं उतना ही और ऊंचा रोने लग जाती थी। वे मेरी समस्या को अपने दृष्टिकोण से देख रही थीं तथा मैं अपने दृष्टिकोण से। उनसे मेरे विचार अलग थे। वे तो कपड़ों की तरह यार बदलती थीं। किसी लड़के के साथ सो लेना उनके लिये मामूली व साधारण सी बात थी। लेकिन मेरे लिये यह बहुत बड़ी बात थी। जिस काम के लिये मैंने इकबाल को भी मना कर दिया था, वही काम मैंने मैक्स के साथ बिना किसी आपत्ति के कर लिया था। मुझे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब कैसे हो गया। इकबाल से शारीरिक संबंध बने होते तो और बात थी, वह मेरे बचपन का साथी था, वह मेरे सपनों व विचारों में बसा हुआ था, मैं उसे पसंद करती थी, मैं उसे चाहती थी, प्यार करती थी, उसके ऊपर मरती थी, लेकिन मैक्स को तो मैं अच्छी तरह से जानती तक नहीं थी। जिंदगी में पहले कभी मिली भी नहीं थी तथा न ही आगे किसी मुलाकात होने का भरोसा था। एेसी एक-आध घंटे की मुलाकात के बाद पराये मर्द को अपना सब कुछ गोरी व काली औरतें तो सौंप देती हैं, लेकिन एेशियन लड़कियां व खास तौर से मेरे जैसी शरीफ व इज्जतदार खानदान की लड़कियां तो हरगिज एेसे घटिया वन नाईट स्टैंडÓ वाले काम नहीं करतीं।

12 कांड -टूर-डी-फ्रांस


एक दिन मैक्स मुझे सोती छोड़कर बिना कुछ कहे कहीं चला गया था। उसकी गैर हाजिरी के मामले को लेकर जागने के बाद मैं काफी समय तक परेशान रही थी। फिर मैं अपना ध्यान किसी दूसरी तरफ उलझाने के लिये  यालों की दुनियां में गुम हो गई थी। मैं फ्रांस व वहां के इतिहास के बारे में सोचने लग गई थी। उस देश ने भी मेरी तरह कई उतार-चढ़ाव देखे थे। कई बार वह गिरा तथा कई बार खड़ा हुआ था।

13 कांड इब्तदा (शुरूआत)


फ्रांस को अलविदा कहकर हम फैरी में सवार होकर वापिसी के रास्ते पर आ गये। छुट्टियों का यह एक सप्ताह कब व कैसे बीत गया था? इस गुजरते समय का बिल्कुल ही पता नहीं चला था। मुहब्बत व काम में धंसकर पिछले दिनों में जितना मैं खुश रही थी, अब उतना ही दुखी व उदास होने लगी थी। मेरा फ्रांस से आने को बिल्कुल दिल नहीं करता था, लेकिन क्या करती? वहां से आना तो पडऩा ही था।

14 कांड -पुरातन कथा नवीन पात्र


मैं अपनी मकान मालकिन बीविया को पहली तारीख को ही किराया दे देती थी। उस भली औरत का इतना अहसान ही काफी था, जो उसने रहने के लिये हमें रियायत में जगह दे दी थी। नहीं तो मकानों के किराये तो आसमान पर चढ़े पड़े थे। पता नहीं हमें कहां-कहां धक्के खाने पड़ते। फुटपाथों, स्टेशनों या पार्कों के बैंचों पर सोने से बच गये थे। मैं तो बीविया की इस बात के लिये शुक्रगुजार थी कि उसने हमें सिर छिपाने के लिये छत बश दी थी।

16 कांड -माँ


मुझे मैक्स के साथ रहते पूरे तीन साल हो गये थे। मैं मां-बाप को लगभग भुला चुकी थी। पिछली जिंदगी के पन्ने फाड़कर मैं नये पन्ने लिखने शुरू कर चुकी थी। अब मेरा जीवन सिर्फ और सिर्फ मैक्स के साथ जुड़कर रह गया था। जिन्दगी अपनी चाल चलती जा रही थी। मैं जद्दो-जहद करके दुखों-तकलीफों से लड़-लड़कर जिन्दगी जीने की जीवन जांच सीख गई थी।

17 कांड- सिविल वार/गृह-युद्ध


मैंने स्कॉटलैंड आकर जी-जान लगाकर पूरी मेहनत से काम लिया था, पहले तो फैक्टरीयों, दुकानों में जो काम धन्धा मिलता, कर लेती थी, फिर लगभग एक साल बाद मुझे एक अस्पताल में जमादारी की पक्की नौकरी मिल गई थी, मैं साल-दर-साल काम किये जा रही थी तथा पौंड कमा रही थी, मैं कंजूस भी बहुत थी, इसी कंजूसी से मैंने काफी सारा धन अपनी तनखवाह में से इकट्ठा कर लिया था, क्या पता होता है कि भविष्य में दौलत की कब जरूरत पड़ जो? इसी तरह से अपनी मेहनत की कमाई से मैंने लगभग सात सालों में अपना घर भी खरीद लिया था, वैसे तो वीविया के घर में भी हमें कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन फिर भी अपना घर आखिर अपना ही होता है।

18 कांड -वेश्या


मैक्स खुद सारा दिन पब में रहता था तथा एक मिनट भी घर नहीं आता था। लेकिन उसने मेरे बाहर जाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा रखी थी। मुझे सिर्फ घर पर रहकर शराब पीने की इजाजत थी। यह हक भी मैंने लड़कर मैक्स को छीनने नहीं दिया था। वरना मैक्स कहां मानने वाला था। वह तो मेरे मर्जी से सांस लेने पर भी पाबंदी लगाने तक जाता। इस मर्द प्रधान समाज में सदैव औरत को ही झुकना पड़ता है। मैंने भी समझौता कर लिया था कि चलो पब में न सही घर बैठकर ही पी लिया करूंगी। वैसे भी भीड़-भाड़ मुझे अच्छी नहीं लगती। मुझे अकेले रहना ज्यादा पसंद है। तन्हाई पसन्द इन्सान हूँ मैं। भीड़ में आदमी गुम होकर रह जाता है। न तेज चल सकता है न ही धीरे। हमें लोगों की रफ़्तार के साथ मिलकर चलना पड़ता है। दुनियां के कदम से कदम मिलाकर अपनी मनमर्जी की गति से तो हम, सबसे अलग तथा अकेले होकर ही चल सकते हैं। अकेलेपन के बहुत फायदे होते हैं। तन्हाई में हम अपने आप को जानने की कोशिश करते हैं, अपनों को याद करते हैं। हजूम में तो बस गैरों को ही देखते रहते हैं। बेगानों में ही घिरे रहते हैं, जैसे वस्त्र उतारने पर शरीर नजर आने लगता है। ऐसे ही तन्हाई में अन्र्तध्यान होने पर हमें अपना मन साफ नजर आने लग जाता है। तन्हाई में हमारा कुछ भी ढंका नहीं रह पाता, हम बिल्कुल नंगे हो जाते हैं। समुन्दर के किनारे खेलते बच्चों की तरह जब अपने आपको खोजना हो, अपनी अन्र्तात्मा से संवाद रचना हो, तब अकेले होना ही पड़ता है। सच पूछो तो मुझे अकेले रहने की आदत पड़ गई थी। ऐसे ही अच्छा लगता था। किसी के साथ या भीड़ में जाने पर दिल घबराने लग जाता था। बस हर समय अपने आप में ही गुम सुम रहती थी।

19 कांड -हमराही


खाना बनाने का सामान तो वैसे मैं स्टोरों या सुपरस्टोरों से ही लेती थी, क्योंकि वहां सारी चीजें छोटी दुकानों से सस्ती होती हैं। बड़े स्टोरों वाले हर चीज थोक के भाव पर खरीद लेते हैं, इसलिए उन्हें चीजें सस्ती मिलती हैं। छोटी दुकानों वाले थोड़ी मात्रा में खरीद करते हैं, इसलिये उन्हें चीजें महंगी मिलती हैं तथा वे मुनाफा निकालने के लिये आगे ग्राहक को भी महंगे भाव बेचते हैं। बहरहाल थोड़ी-बहुत सब्जी बगैरा या और मिर्च-मसाला मैं नजदीक से ही ले लेती थी। हमारी गली के मोड़ पर एक छोटी सी दुकान थी। उस कार्नर-शाप का मालिक अनवर भी पाकिस्तानी ही था। सूरज देवता अपोलो जैसा सुन्दर है वह। कभी-कभार सामान लेने गई मैं अनवर के साथ अपने देश का होने के कारण दो-चार मिनट दुख-सुख कर लेती थी। मेरी तरह दुखी था बेचारा। वह भी जवानी में किसी गोरी को इश्क करता था। वह धोखा दे गई थी उसे। गहने, कपड़े व धन दौलत लेकर किसी और के साथ भाग गई थी। बस दिल टूट गया था उसका, फिर उसने शादी नहीं की थी। मेरे साथ वह पूरा खुल गया था।

20 कांड- नींद न देखे बिस्तर


ठांय, अन्दर आकर मैंने घर का दरवाजा बंद किया है। कंधे से हैंडबैग दूर पड़े मेज पर फेंकती हँू। अभी सीधी काम से आ रही हूँ। इस उमस में सांस घुट रहा है। कितनी आग सी लगी पड़ी है। पसीने से तर-ब‐तर हुई पड़ी हूँ मैं। पता नहीं आज गर्मी है या पैदल चलने के कारण है? दूरी भी कौन सी थोड़ी चलनी पड़ती है। एक चलती भी मैं बहुत तेज हूँ। सुबह घर से काम पर व शाम को काम से घर तक पूरे आठ (एक तरफ की दूरी) मील चलना पड़ता है। टांगें दर्द करने लगती हैं। शरीर में इतनी भी जान नहीं कि चार कदमों पर पड़े सोफे पर जाकर बैठ सकूं। जहां खड़ी हूँ, वहीं उसी जगह जमीन पर थकावट से लुढ़ककर गिर पड़ती हूँ।