Monday 4 May 2015

12 कांड -टूर-डी-फ्रांस


एक दिन मैक्स मुझे सोती छोड़कर बिना कुछ कहे कहीं चला गया था। उसकी गैर हाजिरी के मामले को लेकर जागने के बाद मैं काफी समय तक परेशान रही थी। फिर मैं अपना ध्यान किसी दूसरी तरफ उलझाने के लिये  यालों की दुनियां में गुम हो गई थी। मैं फ्रांस व वहां के इतिहास के बारे में सोचने लग गई थी। उस देश ने भी मेरी तरह कई उतार-चढ़ाव देखे थे। कई बार वह गिरा तथा कई बार खड़ा हुआ था।

1500 ईस्वी पूर्व में फ्रांस के मूल निवासियों में कैल्टस (स्कॉटलैंड, आयरलैंड व वेल्ज के लोग) का मिश्रण होना शुरू हो गया था तथा 50 सालों में उन्होंने फ्रांस में अपनी अच्छी खासी धाक जमा ली थी। फिर रोमन सेना ने जूलीयस सीजर की कमान में उन पर हमला बोल दिया था। पांचवीं शताब्दी में जर्मन शासकों ने रोमन लोगों का शासन खत्म कर दिया। उस समय फ्रांस को 'फरैंकिशर एेलम' के नाम से पुकारा जाता था। 486 ए.डी. में फ्रांस इसाई महाराजा क्लोविस के कब्जे में आ गया था। 800 ईसा के बाद चाल्र्स ने फ्रांस की राजगद्दी पर बैठकर देश को हर पक्ष से मजबूत किया। उसकी मृत्यु के पश्चात राज्य बिखर गया। 843 ईस्वी में चाल्र्स ऑफ बोल्ड ने फ्रांस की बाग डोर संभाली, लेकिन फ्रांस कई टुकड़ों में बंट गया तथा इसके कुछ भाग अलग हो गये थे। दसवीं सदी में नोरसमैन तथा उसके बाद हग्ग कैप्ट का फ्रांस में शासन रहा, लेकिन वह पूरे देश की बजाए कुछ हिस्सों तक ही सीमित रहा। 1066 विलियम, डयू∙  ऑफ नौरमैंडी ने फ्रांस पर कब्जा करके मनमर्जी का शासन किया। सातवीं व आठवीं सदी में लुईस चौहदवें (1643-1715) ने कला व साहित्य को बढ़ावा देकर फ्रांस का नाम पूरी दुनियां में चमकाया। 1792 में लोकतंत्र की नींव रखी गई थी, लेकिन 1799 में नेपोलियन ने फ्रांस का शासन हथिया लिया व 1804 में शहनशाही राज्य स्थापित कर दिया। जिसे उसके बाद लुईस नेपोलियन ने संभाला व उसके बाद फिर लोकतंत्र स्थापित हो गया तथा लोगों की सरकार सत्ता में आ गई। इस तरह जैसे-जैसे फ्रांस के शासक बदलते गये, वैसे-वैसे वे लोग फ्रांस को भी प्रभावित करते गये।

जब तक हम फ्रांस में रहे, एक भी दिन टिककर नहीं बैठे, हर रोज कोई न कोई नया गांव या शहर देखने जाते। इस तरह हमने कुछ दिन में ही फ्रांस का ज्यादातर हिस्सा घूम लिया था।

फ्रांस में छुट्टियां काटते हुये पेरिस जाने की योजना हमने कई बार बनाई थी तथा कई बार रद्द करनी पड़ी थी। कभी मौसम खराब होता, कभी हमारे किसी अध्यापक की तबीयत ठीक न होती तथा कभी हमारी टूरिस्ट बस खराब हो गई होती। इस तरह किसी न ∙ि सी वजह से हमारा फ्रांस की राजधानी देखने का कार्यक्रम स्थगित हो जाता था। जो आदमी फ्रांस आये तथा पेरिस न देखे तो यात्रा सफल नहीं मानी जाती है। हमारी छुट्टियों के दो दिन बचे थे तथा हमारे अध्यापकों ने मन्सूबा यह बनाया था कि पेरिस में दो दिन बिताकर हम वहीं से वापिस जाने के लिये कैले को चले जायेंगे।

तय समय पर हमारी टूरिस्ट बस हमें लेकर शीशे जैसी सड़कों पर पैरिस की तरफ दौड़ी जा रही थी। नौरमैंडी से चलकर कुछ घंटे बाद ही हम पैरिस पहुंच गये थे।

काशमीर को देखकर एक बार मुगल बादशाह शाहजहां (अबुल-मुज्जफर शहाबुदीन शाहजहां) ने कहा था कि, ''गर फिरदौसे बरो जमीं अस्त, अमीं अस्तो ....अमीं अस्तो,ÓÓ अर्थात अगर कहीं धरती पर स्वर्ग है तो वह यहीं है, यहीं है। काशमीर तो मैंने देखा ही नहीं, मगर हां, मैं यह दावे के साथ कह सकती हूं अगर शाहजहां फ्रांस को देख लेता तो वह फ्रांस के बारे में वही कुछ कहता जो उसने काशमीर के संदर्भ में कहा था। जो भी इंसान एक बार फ्रांस की सैर कर लेता है, वही कहता, ''फ्रांस तो बिल्कुल स्वर्ग है, स्वर्ग, खूबसूरती का दूसरा नाम, कुदरत का करिश्मा,ÓÓ चाहे फ्रांस के कण-कण में से सुन्दरता झलकती है, लेकिन फ्रांस की राजधानी पैरिस की तो बात ही और है। पैरिस को उसकी बेहद सुन्दरता के कारण फ्रांस का दिल होने का रूतबा हासिल है। मतलब कि महत्वपूर्ण अंग पुकारा जाता है। पैरिस शहर की सुन्दरता का वर्णन करते हुये किसी शायर ने कहा था, ''पैरिस उस सुन्दर लड़की जैसा शहर है, जिसके सिल्की बालों में गुलाब गूंथा हुआ हो।ÓÓ

दो-अढ़ाई हजार साल पुराना इतिहास है पैरिस का। ईसा से लगभग पचास साल पूर्व तक सेन दरिया के किनारे एक टापू पर मछेरों का एक कबीला बसा करता था। उस कबीले का नाम पैरिस था। इसी कारण उस इलाके का नाम पैरिस पड़ गया। छठी सदी में फ्रांस के राज कलोविस ने इसे अपने राज्य की राजधानी बना लिया था।

पैरिस को ''फैशन की नर्सरी भी कहा जाता है।ÓÓ दुनियां के मशहूर ड्रैस डिजाईनर अपने बनाये हुए हर नये से नये फैशन के वस्त्र मॉडलों को पहनाकर सबसे पहले पैरिस के फैशन शोज में प्रदर्शित करते हैं। इकबाल होता तो शायद हम भी कोई न कोई आधुनिक पौशाक पहनकर स्टेज पर हाथों में हाथ डालकर ''कैटवॉक' (बिल्ली की तरह सिर्फ मैं ही चलती, इकबाल साधारण मर्दाना अकड़ वाली चाल चलता) करते।

फ्रांस में गहने, सैटों व कपड़ों की किस्मों का कोई अंत नहीं था, लेकिन मैंने किसी चीज को आंख उठाकर भी नहीं देखा।

सारी दुनियां में पैरिस के कलाकारों की नकल की जाती है। फ्रांस के दो-तिहाई कलाकार व लेखक पैरिस में ही रहते हैं। मौटमारटरे तो है ही सिर्फ कलाकारों की बस्ती, मेरी तो वहां जाने को रत्ती भर भी इच्छा नहीं हुई।

कितनी इच्छा थी मेरी, लोरो अजायबघर में पड़ी लियोनार्डो-डी-विंसी की बनाई विश्व प्रसिद्ध 'मोना लीजा' वाली तस्वीर को देखने की, लेकिन जब मैं उस चित्र के सामने खड़ी थी तो मुझे बिल्कुल भी आकर्षित नहीं कर सकी थी, मैं वहां से फटाफट आगे निकल गई थी।

लूबर अजायबघर मिऊजी-डे-आेहसे में लगे चित्रों की प्रदर्शनी भी मेरे मन को प्रभावित न कर सकी थी।

कामेडी फ्रांसिस पैरिस थियेटर में चल रहे फ्रांसीसी नाटक मुझे बिल्कुल किरकिरे, बेमजा तथा बोरिंग लगे थे।

दि ओपेरा डी ला बैसिले, जिसमें कभी ओपेरा खेले जाते थे। जब हम वहां गये तो वहां डांस प्रतियोगिता चल रही थी, मुझे उसका भी बिल्कुल मजा नहीं आया था।

सुना था पैरिस की अजीम व महत्वपूर्ण इमारतों पर रात के समय फलैश लाईटों की तेज रोशनी डाली जाती है। जिससे जगमगाता हुआ शहर रात को दिन से भी ज्यादा मनमोहक नजर आता है, लेकिन मुझे तो जीत के निशान 'ऑर्क आफ टरंफ' के पास खड़ी को सिवाए कालिख व अंधेरे के और कुछ भी नहीं नजर आया था।

1889 में लोहे व स्टील के मिश्रण से बना तीन सौ मीटर ऊंचा एेफिल टावर कला का एक अत्ति उत्तम नमूना माना जाता है। गुसटेव आईफल नामक इंजिनियर के द्वारा डिजाईन किये इस एेफिल टावर को देखने साल में तीस लाख से ज्यादा लोग आते हैं, मुझे वह टावर भी महज एक लोहे के खंभे से ज्यादा कुछ भी नहीं लगा था।

न ही मुझे सेन दरिया में तैरती किश्तीयों में बैठने का कोई मजा आया था। पैरिस के इतिहास की जानकारी देने वाले कार्नवैले मयूजियम में भी मैंने कोई दिलचस्पी नहीं ली थी। इसी तरह यूनिवर्सिटी ऑफ पैरिस, स्कूल ऑफ फाईन आर्टस, स्पेन के पाब्लों पिकासो की कल्ला कृत्तियों वाले पिकासो मयूजियम, पामपीडो नेशनल सैंटर ऑफ आर्ट एंड कल्चर, नेशनल मयूजियम ऑफ माडर्न आर्ट, मयूजियम ऑफ डैकोरेटिव आर्ट आदि कुछ भी मेरे मन को पसंद नहीं आया था।

पैरिस की घनी आबादी तथा भीड़-भाड़ के बावजूद भी मैं तन्हा महसूस कर रही थी। पुरातन यूनानी व रोमन तर्ज पर बने फ्रांस के भवन, चौराहे व सड़कों पर घूमती हुई मैं इतनी ज्यादा उदास हो गई थी कि मेरा दिल करता था कि कौन सा समय होगा जब मैं यहां से निकलूंगी। एक तो मैं इतनी खीझ गई थी कि नेपोलियन के बुत के बिल्कुल सामने जो विश्व प्रसिद्ध आर्मी मयूजियम है न? दिल करे कि उसमें पड़े उन्नत किस्म के तथा घातक एतिहासिक हथियारों से अपने आपको खत्म करके खुद भी इतिहास बन जाऊं। मेरे अंदर हर्षोल्लास, उत्साह, खुशी व महक आदि भावनाएं मर चुकी थीं। मेरी हसरतें खत्म हो गई थीं। मेरे इस तरह उखड़े-उखड़े रहने का सबसे बड़ा कारण इकबाल का साथ न होना था। ऊपर से मैक्स की गैरहाजिरी ने स्थिति को और गंभीर तथा बददतर बना दिया था। एक मैं ही थी जो ठोकरें खाती इधर-उधर भटकती घूम रही थी। बाकी सारे लड़के-लड़कियां तो खुशी से मतवाले हुये चहक रहे थे, हल्ला-गुल्ला कर रहे थे, सबको 'टूर-डी-फ्रांस' यानि कि फ्रांस की सैर करने की विवाह जैसी खुशी चढ़ी हुई थी। सबके पास अपने-अपने महबूब व साथी थे तथा मेरे पास कोई भी नहीं था। सारी सहेलियां कैथेड्रिल में मोमबत्तियां जलाने गई हुई थी, मर्द मित्र के बिना मैं ऐश करती भी तो किसके साथ? मेरे साथ तो वह बात हुई थी जिसे गुलाम फरीद ने अपने कलाम में इस तरह कहा है:-
''ईद आई ते मैंडा यार न आया,
रब्बा खैर होवे ओहदे दम दी,
हार शिंगार मैंनू चंगा नहीओं लगदा,
ते किसे चीज ते नजर न जंमदी,
यारां वालीयां यारां दे नाल गईयां,
असां रात गुजारी एे गम दी,
गुलाम फरीदा मैंनू गल नाल ला लै,
नहीं ता ईद किसे नहीं कम दी,

निराश, मायूस तथा दुखी होकर इकबाल की याद को भुलाने के लिये मैं खुद ही अपने मन को समझाने लग पड़ी थी। पूरा एक दिन व एक रात पैरिस में गुजारकर हम फ्रांस की बंदरगाह पर आ गये थे। यहीं पर जब हम इंगलिश चैनल पार करने के लिये फैरी में सवार हो रहे थे तो मैक्स भी हमारे साथ आ मिला था। उसे देखकर मेरा मूड फिर से खुशगवार हो गया था।

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