Monday 4 May 2015

14 कांड -पुरातन कथा नवीन पात्र


मैं अपनी मकान मालकिन बीविया को पहली तारीख को ही किराया दे देती थी। उस भली औरत का इतना अहसान ही काफी था, जो उसने रहने के लिये हमें रियायत में जगह दे दी थी। नहीं तो मकानों के किराये तो आसमान पर चढ़े पड़े थे। पता नहीं हमें कहां-कहां धक्के खाने पड़ते। फुटपाथों, स्टेशनों या पार्कों के बैंचों पर सोने से बच गये थे। मैं तो बीविया की इस बात के लिये शुक्रगुजार थी कि उसने हमें सिर छिपाने के लिये छत बश दी थी।


बीविया बहुत ही रिजर्व किस्म की औरत थी। सदैव अपने आप में ही गुम हुई रहने वाली। किसी के साथ वह ज्यादा मेल-जोल नहीं बढ़ाती थी। बहुत कम बाहर निकलती थी। आम तौर पर अपने घर में ही रहती थी और कोई भी उसके पास आता या जाता नहीं था,तथा न ही मैंने उसे किसी के घर आते-जाते देखा था। आस-पड़ौस में उसकी बोलचाल भी बस हाय-हैलो या गुड-मार्निंग तक ही सीमित थी और कोई भी बीविया के बारे में कुछ नहीं जानता था। उसकी जिंदगी मेरे लिये रहस्य बनी हुई थी। मैं उसके अतीत के बारे में जानना चाहती थी। उसने यह बताकर मेरे अंदर हलचल मचा दी थी कि कभी वह भी मेरी तरह भागकर आई थी। वह किसके साथ भागी थी? उसका यार कहां गया? वह कैसा था? उसके साथ घर से भागने के बाद क्या घटित हुआ था? उसकी जिंदगी में क्या परिवर्तन आया? क्या वह अपने उठाये हुये कदम से खुश थी? उसे परेशान तो नहीं होना पड़ा? एेसे अनेक प्रश्न मेरे मन में उथल-पुथल मचा रहे थे तथा मैं इन सभी का जबाव जानना चाहती थी।

बीविया को घर से भगौड़ा होने की क्या जरूरत आन पड़ी थी? मैं तो समझती थी एेसा हमारे एेशियनों को ही करना पड़ता है। अंग्रेज तो अपने बच्चों को उनकी पसंद का वर चुनने की आजादी दे देते हैं। फिर अंग्रेजों को भागने की क्या जरूरत है? सबसे बड़ी बात तो यह थी कि मेरा जी भरकर बीविया से बातें करने को दिल करता था, मेरे पास कोई बातें करने वाला नहीं था। मुझे कोई एेसा चाहिए था जिसके पास अपने मन के गुब्बार निकाल सकती, मेरे पास कोई एेसी सहेली नहीं थी जिसके आगे मैं अपना दिल खोलकर रख सकती। मैं अपना सुख-दुख किसी के साथ सांझा नहीं कर सकती थी। मैक्स के साथ मेरा रिश्ता तो सिर्फ शारीरिक संबंधों तक ही सीमित था। मैं अपने मन का गुब्बार निकालना चाहती थी।

हर बार की तरह उस दिन भी मैं बीविया को पहली तारीख को किराया देने गई थी। पहले वह दरवाजा खोलती, मैं किराया देती तथा वह किराया लेकर दरवाजा बंद कर लेती। इस तरह मैं दरवाजे से ही वापिस आ जाती थी। हमारी एक दूसरे के साथ कभी कोई बात नहीं हुई थी। लेकिन इस बार पता नहीं क्यों मैं रूक गई थी। बीविया ने वही काला चोगा पहना हुआ था। वह हमेशा यही पहनकर रखती थी, जैसे कि उसके पास इसके बिना कोई और कपड़ा था ही नहीं। चाहे कि बीविया का चोगा कोई ज्यादा सुन्दर तो नहीं था, लेकिन मैंने ऐसे ही बात शुरू करने के बहाने से उसकी तारीफ करते हुये कह दिया था, ''तुहारा गाऊन बहुत सुन्दर है।"

बीविया हंसकर कहने लगी, ''ज्यादा पसंद है तो उतारकर दूं तुझे? तुम पहन लेना"

''जरूर पहनती अगर मेरे नाप का होता तो," मैंने उसके व्यंग्यमयी ताहने को काटने के लिये कहा था।

''आ जाआे, बाहर क्यों खड़ी हो, अंदर आ जाआे?"

एेसे लगता था जैसे वह भी मेरे पास अपना दिल खोलना चाहती थी। हम दोनों अंदर चली गई। उसी कमरे में, जिसमें उसने हमें पहली बार बिठाया था। बैठने से पहले मैंने सांप वाले बक्से को देखा, सांप उसमें बंद करके रखा गया था, यह देखकर मुझे तसल्ली हो गई थी। मैं आराम से सोफे पर बैठ गई थी। हम इधर-उधर की बातें करने लगी थीं। थोड़ी सी हिचकिचाहट के बाद वह अपने आप ही मेरे साथ खुल गई थी।

''शाजीया, बात तो कुछ भी नहीं थी, मैं अल्हड़ सी होती थी तेरी तरह। दुनिया व भगवान से बेखबर। बचपन की छाल उतारकर जवानी की नई खाल पहने घूम रही थी मैं। कई लड़कों ने मुझ पर आंख रखी हुई थी लेकिन मेरी कोई आंख के नीचे नहीं आता था। हमारे घर से कुछ दूरी पर एक मकान बिकाऊ था। उसमें एक परिवार आकर रहने लगा। उनका लड़का मेरा हमउम्र था। कैविन को पहली नजर देखते ही मैं उसे तन-मन हार बैठी थी। आता-जाता वह मुझे हर रोज ही मिलता था, लेकिन हम आपस में कभी नहीं बोले थे। मैं मन ही मन उसे चाहने लगी थी। बहुत समय बाद मुझे यह पता चला था कि हमारा मिलन नहीं हो सकता क्योंकि हमारे धर्म अलग-अलग थे। कैविन कैथोलिक संप्रदाय का था तथा मैं प्रोटेस्टैंट थी। उसके तथा अपने बीच इस दूरी को देखकर मैंने उसे अपने दिल से निकाल देना चाहा था। लेकिन एेसा करना इतना आसान नहीं था, खासकर उस उम्र में। जब कभी गलीयों-बाजारों में मैं उसे दिखाई देती वह मुझे टिकटिकी लगाकर देखता रहता।"

बीविया ने सांस ली तथा फिर से अपनी कहानी शुरू कर ली, ''मेरे पिता का स्क्रैपयार्ड होता था, मैं हर रोज दोपहर को डैडी का खाना लेकर जाया करती थी। वह नित्य मुझे उस समय मिला करता था। इसी तरह एक दिन मैं खाना पकड़ाकर आ रही थी। कैबिन मोटरसाइकिल पर मेरे पास से गुजरा, वह काफी दूर तक मेरी आेर पीछे मुड़-मुड़ कर देखता रहा था। जब तक उसका मोटरसाइकिल मुझे दिखाई देता रहा, मैं उसे देखती अपने राह चलती गई थी। रास्ते में मुझे विरान पेड़ों के झुंड में से होकर गुजरना था, मैं उस जंगल में घुस गई थी। अभी मैंने आधा रास्ता ही तय किया था कि मुझे पत्तों की खडख़ड़ाहट सुनाई दी। मुझे एेसा लगा जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा हो। मैंने रूककर पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहां कोई भी नहीं था। फिर मैं चल पड़ी। मुझे फिर से वहां किसी के होने की आहट सुनाई दी थी। मैंने चकमा देने के लिए थोड़ा सा चलकर एकदम से पीछे घूमकर देखा , सच में कोई मेरा पीछा कर रहा था। जैसे ही मैंने पीछे की आेर मुँह घुमाया , वह झट से पेड़ों के पीछे छिप गया था। मैं उसे देख चुकी थी। वह भी जान गया था कि मैंने उसे देख लिया है। चाहे चेहरा तो मैंने उसका नहीं देखा था। उसके चमड़े के काले कपड़ों से मैंने उसे पहचान लिया था कि वह तो मेरा वही महबूब था, क्योंकि मोटरसाइकिल पर कुछ देर पहले मैंने कैविन के वही कपड़े पहने हुये देखे थे। मैंने जानबूझकर अंजान बनते हुये पूछा था, ''कौन है?"

''मैं कैविन पेड़ के पीछे से बाहर आ गया था। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, ''जानती हो न कौन हूँ मैं?"

''क...क क ......क्या चाहिये?"

''तुम... सिर्फ तुम…." वह धीरे-धीरे मेरे पास आने लगा था। मैं वहां से पीछे को दो तीन कदम चलकर फिर सीधी होकर तेज चलने लगी थी। उसकी पदचाप से ही मुझे अंदाज हो गया था कि वह मेरे साथ मिलने के लिये तेज चाल चल रहा था। मैं दौड़ पड़ी थी, वह भी मेरे पीछे दौडऩे लगा था, ''हे?... रूक?... बात सुन?…"

किसी चीज ने मेरे पैरों में बेड़ीयां डाल दी थीं, मैं वहीं जकड़ी गई थी, मुझसे एक कदम भी नहीं उठाया गया था, मैंने वहां खड़े-खड़े ही पूछा था, ''हां, जल्दी-जल्दी बता बात क्या है?"

''मुझे तुझसे प्यार हो गया है, मर मिटा हूँ मैं तुझ पे," इतना कहकर उसने मुझे जप्फी डाल ली तथा मेरे होठों से होंठ लगाकर मुझे चूमने लगा था। मैंने रोष स्वरूप एक तरफ को मूँह फेर लिया था। वह मेरी गालों को अपने दांतों से काटने लगा था। मुझे उससे इस तरह की हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। मैं उससे छूटकर दौड़ पड़ी थी, वह मेरे पीछे लग गया था, मैं पूरी तेजी से दौड़ती गई, वह अटककर गिर गया था, तथा गिरते समय उसके हाथ में मेरे पैर का टखना आ गया था। उसके मेरे पैर को खींचने से मैं भी धड़ाम से गिर गई थी। उसकी आँखों में एक बहशियत थी। मैंने डरकर उसके आगे हाथ बांधे, रोई, गिड़गिड़ाई थी, उसने मुझ पर कोई रहम नहीं किया था, मेरे कपड़े फाड़कर तार-तार कर दिये थे तथा.....।"

''तो क्या उसने आपका रेप.....? मैंने चौंक कर पूछा था।"

''हां, अपनी हवस बुझाकर उसने अपने कपड़े पहने तथा पैंट में शर्ट ठूंसता हुआ चला गया। अंधेरा बहुत हो चुका था। मैं फटे हुये अपने कपड़ों के साथ वापिस घर आ गई थी। घर पर कोई नहीं था। मैंने नहा-धोकर कपड़े बदले तथा बिस्तर में जाकर लेट गई। उस दिन न तो मैंने कुछ खाया तथा न ही कुछ पिया।" 

मैंने किसी के साथ इस हादसे की बात भी नहीं की थी तथा न ही मैंने पुलिस को इतलाह की थी। अगर एेसा करती तो हमारे परिवारों के बीच लड़ाई-झगड़ा हो जाता । हमारे धर्म के लोगों में खून खराबा बढ़ जाता। मैंने अपने आप को यही समझा लिया था कि कैविन के साथ मैंने रजामंदी से किया था, लेकिन एेसा करती हुई मैं अंदर से मर गई थी।

उसके बाद अक्सर मैं अपने कमरे में पड़ी रोती रहती। एक दिन मेरी खिड़की में से किसी ने पत्थर फेंका था। पत्थर के साथ एक कागज भी लपेटा हुआ था। मैंने उठकर बाहर देखा तो कैविन खड़ा था। मैंने कागज उठाकर पढ़ा, कैविन अपने किये पर शर्मिंदा था। माफीनामा लिखकर भेजा था उसने। उसने लिखा था कि वह मुझसे बहुत मुहब्बत करता है तथा मुझसे भी बदले में प्यार की आशा करता है। मेरे घर के सामने वाले पार्क में हर रोज शाम से रात तक वह मेरा इंतजार करेगा।

मैंने सोचा था कि हमारे लोगों में फैली धर्मों व मजहबों की नफरत को मारकर कब्र में दफनाने के लिये शायद हमारी मुहब्बत ही पहली ईंट साबित हो जाये। मैं कैविन को खिड़की में से देखती रहती थी। वह बरसात, आंधी, धूप, छांव कुछ भी नहीं देखता था, बस खड़ा मेरा इंतजार करता रहता था। एक दिन मैं अपने आप को रोक नहीं सकी थी तथा दौड़कर उसकी बाहों में जा गिरी थी। उसने जप्फी डालकर मुझे हवा में घुमा दिया था, मेरे पैर धरती से ऊपर उठ गये थे, वह केन्द्र पर घूमते किसी पंखे की तरह मुझे घुमाते हुये आटा चक्की ही बन गया था। हम दोनों बहुत खुश थे। जब थककर वह मुझे घुमाने से रूका तो मुझे चक्कर आने लगे। मुझसे अपने पैरों पर खड़ा नहीं रहा गया तथा मैं शराबियों की तरह लडख़ड़ा कर गिर गई। मेरे अंदर से उसके प्रति सारी नफरत मर गई थी तथा मैं उससे इतना प्यार करने लगी थी, जितना मां अपने बेटे से करती है। हर रोज शाम को मैं कैविन को उस पेड़ों के जंगल में बुला लेती थी। वह मुझसे पहले ही तयशुदा जगह पर मैडम तुसाद में लगे बुत्त की तरह खड़ा होता था। उससे मिलने के लिये जाने में मैंने भी कभी देरी नहीं की थी। मैं भी दौड़कर जाया करती थी। मुझसे भी सब्र नहीं हो पाता था। मैं जाते ही उसके कपड़े फाड़ देती थी। हम घंटों तक एक दूसरे में समाए रहते.....इस तरह से मैं उसके प्यार में पागल हो गई थी।

इधर हमारी मुहब्बत जोर पकड़ती जा रही थी तथा उधर आई.आर.ए. (एक आतंकवादी संगठन) की सरगर्मीयां तेज होती जा रही थीं। हालात बिगड़ते जा रहे थे। जब कैथोलिक समुदाय का कोई नुक्सान होता तो वे समझते कि किसी प्रोटैस्टैंट ने यह काम किया होगा। जब प्रोटैस्टैंटों का कोई नुक्सान होता तो इसके लिये किसी कैथोलिक को इसका जिम्मेदार समझते, दोनों धर्मों के लोगों में आपसी तनाव बढ़ गया था। अपने इश्क का अन्जाम मैं जानती थी। हमारे एक दूसरे का जीवन साथी बनने के लिये न मेरे परिवार ने मानना था तथा न ही कैविन के परिवार ने। अगर परिवार मान भी जाते तो समाज ने कोई न कोई पंगा खड़ा कर देना था। इसलिये हमने फैसला किया कि भागकर कहीं दूर चले जायें।

फिर कैविन के साथ भागकर में इंगलैंड चली गई थी। लेकिन लंदन की महंगाई ने हमारे पैर नहीं लगने दिये थे। मैंने पिकाडली के क्लबों में स्ट्रिपर (कपड़े उतारकर क्लबों में नंगा नाच करने वाली डांसर) बनकर पौंड कमाये। मैं यह काम करना पसंद नहीं करती थी। फिर एक दिन हम ट्रेन में बैठे तथा जहां स्कॉटलैंड आ गये। वीविया अपनी जीवन कथा बताने के बाद खामोश होने के साथ ही बेहद उदास हो गई थी।

सन्नाटे को तोडऩे के लिये मैंने सामने मेज पर पड़ी फोटो की ओर इशारा करते हुये पूछा था, ''ये तुम्हारे पिता हैं?"

''नहीं।"

''हम सबसे पहले इस बाबा के पास आकर ठहरे थे। इसके साथ केविन की लंदन में मुलाकात हुई थी। मुझे इन्होंने क्लब में नाचती हुई को देखा था। हम लंदन से सीधे इसके पास आये थे। हमें बहुत स्वादिष्ट पकवान बनाकर खिलाये थे इन्होंने।"

हमारे सामने अलमारीयां खोल दी थीं तथा कहा था, ''जो मर्जी जूस पी लो, जो दिल करे शराब उठा लो।"

केविन ने शराब ले ली थी तथा मुझे संतरे का जूस डाल दिया था। मुझे शराब पीने के लिये उन्होंने काफी जोर लगाया था, लेकिन मैंने मना कर दिया था। मुझे जूस थोड़ा सा कड़वा लगा था, लेकिन मैं यह सोचकर पी गई थी कि शायद जूस ज्यादा खट्टे संतरों का होगा। जूस पीते ही मुझे नींद आने लगी थी, हम सो गये थे, केविन मेरे साथ ही लेटा था।

सुबह जागने पर मैंने देखा कि वह बूढ़ा मेरे साथ नंगा लेटा हुआ था। मेरे शरीर पर कोई भी वस्त्र नहीं था। मैं इस हालत में कैसे पहुंची थी? इसका मुझे कुछ भी पता नहीं था। मैं जल्दी से उठी, बूढ़ा भी जाग गया था, मैं अपने कपड़े ढूंढने लगी।

मेरे नजदीक आता हुआ बूढ़ा बोला, ''कपड़े ढूंढ रही हो?" 

वे तो तुम्हारा प्रेमी ले गया, उन्हें बेचकर रेलगाड़ी का टिकट ले लेगा।"

मुझे उस बूढ़े ने ही बताया था कि नशे का सेवन करने में मेरी रजामंदी न होने के कारण केविन ने ही जूस में डालकर मुझे कुछ दिया था।

यह बात सुनकर मेरी हैरानगी की कोई हद नहीं रही थी, ''ऐं, उसने इतना घटीया व घिनावना काम किया है? चांदी के चंद सिक्कों के बदले अपने प्यार को बेच दिया?"

''हां लड़की, दौलत में बहुत ताकत होती है, इससे सभी रिश्ते-नाते खरीदे व बेचे जा सकते हैं।" 
अरस्तू ने कहा है, ''मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है।" 

सभी मनुष्य इस दुनियां में अपने मतलब के लिये भागे फिरते हैं। जब इन्सान की सोच में सियासत घुस जाये तो वह किसी का दोस्त नहीं रहता। फ्रांस के शासक नेपोलियन बोनापार्ट (1769-1821) ने तो यहां तक कहा है, ''सियासतदान के पास दिल नहीं सिर्फ दिमाग होता है।" 

एक और किस्सा सुनाता हूँ मैं तुझे। हमारे पड़ोस में एक गरीब आदमी रहता था। उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के लिये एक मंत्री ने खुद ही अपने ऊपर गोली चलवाने के लिये भरी हुई बंदूक व बहुत सा धन भेज दिया था। मंत्री का हुक्म था कि गरीब आदमी उन्हें मारने की कोशिश करे, लेकिन मारे नहीं। गोली कहीं आस-पास ही मार दे, ताकि दिखावे के लिये यह जानलेवा हमला लगे। उस गरीब आदमी के पास अपने परिवार की रोटी, कपड़ा व मकान जैसी प्राथमिक जरूरतें पूरी करने की सामथ्र्य नहीं थी। इसलिये वह यह ड्रामा करने के लिये मान गया। मंत्री बुलेट प्रूफ जैकेट पहनकर भाषण दे रहा था। गरीब व्यक्ति ने हुक्म का पालन करने के लिये उस पर गोली चला दी। उस बेचारे को इसमें जेल हो गई। मंत्री यह कहकर प्रचार कर गया कि उस पर गोली विरोधी पार्टी के कहने पर चलाई गई। मंत्री को इस प्रचार से वोटें मिल गई, गरीब का मुंह पौंडों से भर दिया गया। वह अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिये जेल में सड़कर मर गया। इसलिये दौलत के लिये इन्सान कुछ भी कर सकता है।

केविन बूढ़े के साथ मेरा सौदा करके भारी भरकम रकम बटोर कर ले गया था। उस बूढ़े के साथ सोने के लिये मैंने रजामंद नहीं होना था, इसलिये केविन ने मेरे जूस में रौल्फी जिसे संक्षेप में रूफी भी कहा जाता है-नामक नींद की गोलीयां मिला दी थीं, जो कि वेलियम से दस गुणा ज्यादा ताकतवर होती हैं। जब मैं नशे के प्रभाव से अद्र्ध सुप्त अवस्था में चली गई तो वह बूढ़ा मेरे साथ मनमर्जी करने लगा था। मैं तो अवचेतन अवस्था में पड़ी रही थी। उसने पता नहीं एक रात में मेरे जिस्म का वस्त्र कितनी बार उतारा व कितनी बार पहनाया था। होश में आने के बाद जब मैं अपनी इस हालत से रूबरू हुई तो मैं रोने लगी। मैं अपने आपको किसी अजनबी व बूढ़े व्यक्ति के सामने निश्वस्त्र पाकर बहुत शर्मिंदा हुई। मुझे जोर-जोर से रोती देखकर वह बूढ़े बाबाजी मुझे चुप कराने लगे। मैंने उन्हें अपनी सारी आत्मकथा सुनाई। वह बहुत ही समझदार व नेक दिल इन्सान थे। उन्होंने मुझसे कहा कि वह मुझे हिफाजत के साथ मेरे मां-बाप के पास छोड़ आयेंगे। मैं भी वापिस बैलफास्ट (आयरलैंड) जाने के लिये तैयार हो गई थी, लेकिन लगभग उसी समय मुझे फूड पॉयजनिंग हो गई। मैंने बूढ़े बाबाजी से तंदरूस्त हो जाने तक वहां रूकने की इजाजत मांगी वह मान गये। मुझे उल्टीयां व दस्त लग गये थे। मैं कई सप्ताह तक बिमार रही। उसने मेरी सेवा संभाल की। जब मैं बिमार बैड पर पड़ी हुई थी तो उस समय बाबा के दिमाग को काम देवता बहुत चढ़ता था। वह दो दिन से ज्यादा औरत के बिना नहीं रह सकता था। मैं हैरान थी कि उसने मुझे कैसे छोड़ दिया था। शायद उसे मुझ पर रहम आ गया होगा? मुझे भी उस पर बहुत तरस आया था। जब उन दिनों में उसके पास घर पर हर रोज कोई न कोई वेश्या आया करती थी। मैंने अपने दिल से कहा कि उसने मेरा इतना किया है, तो मैं क्यों न उसकी बन जाऊं। मैंने वेश्या का आना बंद कर दिया तथा उसकी जगह खुद ले ली। इस तरह मैं बूढ़े के बिस्तर की जीनत बन गई थी। वह वैसे ही ज्यादा मनचला था, लेकिन उससे ज्यादा कुछ होता नहीं था। मुझे हाथ बाद में लगाता था तथा ढेर पहले हो जाता था। मैं ही कमान संभालकर सब कुछ किया करती थी।

वैसे वह बूढ़ा बाबा बहुत प्यार करता था मुझसे। मेरे मुँह से निकलने से पहले ही वह मेरी हर इच्छा पूरी कर देता था। मुझ पर धन दौलत लुटाने का तो उस पर भूत सवार था। एक बार हम एक शॉपिंग सेंटर में घूमते फिर रहे थे। मुझे एक पोशाक पसंद आ गई। मैंने उससे कहा, ''जानू, ये देखो कितनी सुन्दर ड्रैस?"

''लेकिन तुझसे सुन्दर नहीं।"

''मैं यह ले लूं?"

''आफरीन, आफरीन, मुझे तो तुम्हारी तारीफ करने के लिये शब्द ही नहीं मिल रहे। बहुत जंच रही है यह ड्रैस तुम पर, तुम तो बिल्कुल फुलझड़ी लग रही हो, फुलझड़ी। इन कपड़ों में तुम मुझे बहुत सुन्दर लग रही हो। आ, जल्दी से यह कपड़े उतार दे।" बूढ़े से अपनी हवस पर काबू नहीं हो रहा था तथा वह मुझसे आकर लिपट गया था। मैं उसे आलिंगन में लेकर वहीं पर सोफे में धंसने लगी थी, इस तरह से हमारा सिलसिला चल पड़ा।

दिल की बिमारी का मरीज होने के कारण बूढ़ा कुछ समय बाद ही चल बसा था। खुशकिस्मती से वह अपनी वसीयत में सब कुछ मेरे नाम पर लिख गया था। अगर एेसा न होता तो मैं सड़कों पर बिकती। सभी भगौड़ा हुई लड़कीयां मेरी तरह खुशकिस्मत नहीं होतीं। बहुत से लड़के-लड़कीयां भागकर यहां मेरे पास आते हैं। मैं तो सबको यही सलाह देती हूँ कि वापिस अपने घर चले जाओ, कोई समझे न समझे उसकी मर्जी।

वीविया की कहानी सुनकर तो मैं सुन्न हो गई थी, ''तुम्हारी कहानी तो मेरी अपनी जिंदगी से मिलती जुलती है।"

''कहानीयां तो वही होती हैं। बस पात्र बदल जाते हैं। कुछ घटनाएं बदल जाती हैं। समय व स्थान बदलते रहते हैं।" वह जैसे किसी अंधे कुएं से बोली थी।

वीविया से हुई बातचीत के बाद तो मेरा दिल बैठता जा रहा था। मेरे मन में डर पैदा हो गया था कि कहीं मैक्स भी मेरे साथ केविन की तरह न करे। मेरे जिस्म से खेलकर दिल भरने पर मुझे किसी के हाथ बेच न दे। खौफजदा होकर मैं अपना कांपता वजूद लेकर वहां से उठकर अपने घर आ गई थी।

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