Wednesday 6 May 2015

Cover Model: Madhuri Gautam /Photography: Vicku Singh, Gaurav Sharma & Rishu Kaushik/ Makeup: Gagz Brar

Monday 4 May 2015

Novelist Balraj Singh Sidhu
बलराज सिंह सिद्धू प्रवासी पंजाबी लेखकों में से सबसे अल्प आयु का एक स्थापित और कददावर नाम है। 16 मार्च 1976 को जगराऊँ, जिला-लुधियाना में जन्में बलराज सिद्धू बचपन से ही इंग्लैंड के सीने में सिथति बर्मिंघम शहर में बसा हुआ है। उसने अपने श्रम, लगन, कला और विषयों की विलक्षणता के साथ पूरी दुनिया में अपने लिए विशाल पाठक वर्ग पैदा किया हुआ है। उसका शुमार इंग्लैंड के युवा और अधिक पढ़े जाने वाले लेखकों में होता है। पंजाबी साहित्य के क्षेत्र में बहुत सारे विषय ऐसे हैं, जिन पर सर्वप्रथम कलम आजमार्इ सिफऱ् बलराज सिद्धू ने ही की है। उसको प्रकिति द्वारा यह वर प्राप्त है कि वह जब अपने हुनर और कला द्वारा नवीन दृषिटकोण से बेबाकी के साथ कोइ बात लिखता है तो पुराने कलमकारों द्वारा बनाइ सारी धारणायें रदद करके पाठकों के मनों में एक नया बिंब उभार देता है। बलराज सिद्धू कहानी लिखने के लिए जन्मा है या कहानी का आविष्कार बलराज सिद्धू के लेखन के लिए ही हुआ है, इसका निर्णय करना कठिन है। उसकी पुस्तकों की बिक्री और फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग मीडिया पर उसकी रचनाओं को मिलने वाले हुंकारे ने यह सिद्ध किया है कि शिव कुमार बटालवी (पंजाबी कवि) के बाद नौजवान सित्रयों द्वारा शिददत से यदि किसी पंजाबी साहित्यकार को पढ़ा जाता है तो वह बलराज सिंह सिद्धू है। बलराज सिद्धू शब्दों का ऐसा शिल्पकार है कि उसका जादू पाठक के सिर पर चढ़कर बोलता है और उसकी कोर्इ भी रचना पढ़ते समय बीच में छोड़ पाना असंभव हो जाती है। 
-रूप दविंदर कौर नाहल, रेडियो व टी.वी. प्रैजेंटर, लंदन












अनुक्रमिका
1. कांड-    भोर का इंतजार
2. कांड-    स्वर्ग से  सुंदर
3. कांड-    हुस्न, जवानी और इश्क
4. कांड-    मर्ज-ए-इश्क
5. कांड-    बिरहा तू सुल्तान
6. कांड-    रंग में भंग
7. कांड-    बगावत
8. कांड-    प्रेम पत्र
9. कांड-    लंबी उड़ान
10. कांड-    नई सेज, कुंआरी काया
11. कांड-    भूल गई यार
12. कांड-    टूर डी फ्रांस
13. कांड-    इब्तदा (शुरूआत)
14. कांड-   पुरातन कथा नये पात्र
15. कांड-   कुत्ते की पूंछ
16. कांड-   मां
17. कांड-   सिविल वार
18. कांड-  वेश्या
19. कांड-  हमराही
20.कांड-   नींद न देखे बिस्तरा
                   



             -सावधानी-
इस नावल क ी क हानी क ाल्पनिक  है तथा इस मंे वर्णित
       घटनायें, वृत्तांत व पात्रों क ा यथार्थ से क ोई  सबध नहीं है 
     अगर सी  वास्तविक  तथा निजि जिंदगी से विवरण
     मिलता  हो  तो  यह  महज   एक    इत्तफ ाक   होगा।


1. कांड- भोर का इंतजार



Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar

 ''ऐंह.......हैं....ऐं...हां….।" मैं एकदम ठिठक कर जाग गई, डर से मेरा वजूद इस तरह कांप उठा, जैसे बज रही सांरगी की तार में क ंपन होती है। हैरान परेशान होकर इधर-उधर देखने लगती हूं.....अरे ? ये तो मैं कोई सपना देख रही थी। मैं तो अपने घर में, अपने पलंग पर लेटी  हुई हूं। यहां नदी कहां ? अभी-अभी देखा सपना  मुझे दुबारा याद आने लगता है।

दूर-दराज, किसी अन्जान सी जगह में कोई अज्ञात सा गांव है। शायद यह एशिया का कोई पुराना गांव होगा। प्राचीन समय में घूम रही थी मैं। कु छ जवान लड़कियों की टोली बनाकर गांव से बाहर नदी पर नहाने के लिए जाती हैं। एक पशु चरा रहा लड़का उन्हें छेड़ता है। वे लड़कियां उस चरवाहे की ओर कोई तबज्जो दिए बिना आगे निकल जाती हैं। चरवाहा उनकी बेपरवाही क ो अपनी बेइज्जती समझ कर उन लडकियों का चुपके-चुपके  पीछा करने लग जाता है। लड़कियां आगे जाकर सुनसान नदी के किनारे अपने कपड़े उतारकर रख देतीं हैं तथा  नहाने लग जाती हैं। वे गीत गा-गाकर एक दूसरी को रगड़-रगड़ कर नहलाती हैं। कौन सा गीत गाती थीं वे ?...हां गाने के बोल कु छ इस प्रकार थे........
 
''उजड़ा बुर्ज लाहौर का ते हेठ व्गे दरिया,
मल-मल नावण गोरीयां ते लैज गुरां दा नां…"

कांड 2 -स्वर्ग से सुंदर

Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar

हरा-भरा संसार था हमारा। मैं अमी, अब्बू, मेरी दो बहनें तथा दो भाई। ये थी हमारी दुनिया। एक बहन के बिना बाकी सभी मेरे बहन-भाई मुझे से छोटे थे। नाजीया सबसे बड़ी थी। उसके दो साल बाद मेरा जन्म हुआ था। मुझ से सलीम एक साल छोटा था। सलीम की पैदायश से पूरे तीन साल बाद गफूर का जन्म हुआ था, तथा आगे राजीया का गफूर से चार साल का अंतर था। आम मुस्लिम परिवारों की तरह हमारा परिवार भी चाहे कु छ बड़ा ही था। लेकिन फिर भी हम में से कोई भी किसी दूसरे सदस्य को गैरजरुरी नहीं समझता था। कोई भी किसी दूसरे सदस्य को गैरजरुरी नहीं समझता था। जुराब से लेकर सिर की चुनरी तक जैसे एक औरत के पहने हुए सभी वस्त्रों का अपना-अपना महत्त्व होता है। सलवार की जगह कु त्र्ता या ब्लाऊज़ की जगह पेटीकोट नहीं पहना जा सकता। वैसे ही परिवार में सभी सदस्यों की अपनी-अपनी अहमीयत होती है। किसी भी सदस्य को हमारे परिवार में से अलग करके नहीं देखा जा सकता था। हम सभी में इतना ज्यादा प्यार था कि हम एक दूसरे की सौगंध तक नहीं उठाते थे।

कांड 3- हुस्न, जवानी व इश्क


Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar
मुझे बचपन में देखकर लोग कहा करते थे कि मैं अमर-बेल की तरह बढ़ती जा रही हूं। मैं पूरे पंद्रह साल व छ: महीने की हो गई थी। ये इतने साल बीतने का अहसास ही नहीं हुआ था। पंद्रह साल जैसे पंद्रह साल तो लगते ही नहीं थे। ऐसे लगता था जैसे पंद्रह सैकिंड हों। मैं अल्हड़ व भोली-भाली सी थी। मेरे चेहरे से मासूमियत ही मासूमियत झलकती रहती थी। मेरे बदन ने बचपन को विदा करके जवानी का स्वागतम ताजा-ताजा ही किया था। यौवन किसे कहते हैं, इसका मुझे पता ही नहीं था। हां, इतना ही जानती हूं कि उस समय सूर्य को देखकर मेरा दिल किया करता था कि उसे पकड़ कर साबुत निगल जाऊं। नहाते समय या कपड़े बदलते समय शरीर गर्मागम भाप छोडऩे लग जाता था। सारे शरीर में से सेंक निकलते लगता। शरीर का प्रत्येक अंग गर्माहट छोड़ता। अपने अंदर धधक रही आग को बुझाने के लिए मेरा बर्फ के पहाड़ पर लेटने को दिल चाहता। बार-बार पानी पीना, बहुत प्यास लगना। दिल में आता कि कोई बहुत बड़ा समुंदर हो, कोई महासागर तथा मैं उसे एक ही घंूट में पी जाऊं ताकि मेरी प्यास बुझ सके। भटकन, एक प्यास सी हर समय लगी रहती थी। शायद इस आग का नाम ही जवानी होगा।

कांड 4 -मर्ज-ए-इश्क


Cover Model: Madhuri Gautam Photography by Vicku Singh Gaurav Sharma & Rishu Kaushik Makeup by Gagz Brar


मैं हाई स्कूल के आखिरी साल में थीं उसके बाद मेरी स्कूल की पढ़ाई खत्म हो जानी थी। मेरा याल है, अक्तूबर का महीना था वह। उस साल गर्मी बहुत पड़ी थी तथा सर्दी काफी लेट थी। शनिवार व इतवार पूरा दिन-रात बारिश होती रही थी। हवा में नमी आने के कारण ठंड हो गई थी। सोमवार को स्कूल पहुंचने पर सब (छात्रों व अध्यापकों) को स्कूल की सारी सेंट्रल हीटिंग खराब होने की खबर मिली थी। गर्मीयों का पूरा सीजन मुकमल तौर से हीटर व रेडीएटर बंद रहने के कारण उनमें कोई खराबी आ गई थी, जिसकी रिपेयर पर पांच छ: घंटे लग सकते थे। सर्दी में बच्चों को स्कूल के ठंडे कमरों में बैठने को कहना उन्हें सजा देने के समान था। ऐसी स्थिति में पढ़ाई तो क्या होनी थी, उल्टा उनके बिमार होने की संभावना थी। इसको ध्यान में रखते हुऐ हमारे प्रिंसीपल ने हमें उस दिन स्कूल में छुट्टी करदी थी। वैसे भी उन दिनों में अभी कोई खास पढ़ाई नहीं होने लगी थी। क्योंकि सितंबर में ही तो नई क्लासें शुरू हुई थी। हम सभी छात्र-छात्राएं घर पर खाली बैठने की बजाए वर्दीयां बदलकर सीधे सिनेमाघर में फिल्म देखने चले गये।