मैक्स खुद सारा दिन पब में रहता था तथा एक मिनट भी घर नहीं आता था। लेकिन उसने मेरे बाहर जाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा रखी थी। मुझे सिर्फ घर पर रहकर शराब पीने की इजाजत थी। यह हक भी मैंने लड़कर मैक्स को छीनने नहीं दिया था। वरना मैक्स कहां मानने वाला था। वह तो मेरे मर्जी से सांस लेने पर भी पाबंदी लगाने तक जाता। इस मर्द प्रधान समाज में सदैव औरत को ही झुकना पड़ता है। मैंने भी समझौता कर लिया था कि चलो पब में न सही घर बैठकर ही पी लिया करूंगी। वैसे भी भीड़-भाड़ मुझे अच्छी नहीं लगती। मुझे अकेले रहना ज्यादा पसंद है। तन्हाई पसन्द इन्सान हूँ मैं। भीड़ में आदमी गुम होकर रह जाता है। न तेज चल सकता है न ही धीरे। हमें लोगों की रफ़्तार के साथ मिलकर चलना पड़ता है। दुनियां के कदम से कदम मिलाकर अपनी मनमर्जी की गति से तो हम, सबसे अलग तथा अकेले होकर ही चल सकते हैं। अकेलेपन के बहुत फायदे होते हैं। तन्हाई में हम अपने आप को जानने की कोशिश करते हैं, अपनों को याद करते हैं। हजूम में तो बस गैरों को ही देखते रहते हैं। बेगानों में ही घिरे रहते हैं, जैसे वस्त्र उतारने पर शरीर नजर आने लगता है। ऐसे ही तन्हाई में अन्र्तध्यान होने पर हमें अपना मन साफ नजर आने लग जाता है। तन्हाई में हमारा कुछ भी ढंका नहीं रह पाता, हम बिल्कुल नंगे हो जाते हैं। समुन्दर के किनारे खेलते बच्चों की तरह जब अपने आपको खोजना हो, अपनी अन्र्तात्मा से संवाद रचना हो, तब अकेले होना ही पड़ता है। सच पूछो तो मुझे अकेले रहने की आदत पड़ गई थी। ऐसे ही अच्छा लगता था। किसी के साथ या भीड़ में जाने पर दिल घबराने लग जाता था। बस हर समय अपने आप में ही गुम सुम रहती थी।
मैक्स हमेशा रात को देर से आता था। मैं इंतजार करती रहती ताकि उसे घर आने पर गर्मा-गर्म खाना दे सकूं। ऐसे ही मेरी मां अपने आदमी (मेरे पिता) का इन्तजार किया करती थी। अन्तर सिर्फ इतना ही था कि मेरे अब्बा कमाने गये होते थे तथा मैक्स गंवाने जाता था। ये मेरी मुश्किल से लाई हुई सारी कमाई उड़ा आता था। अगर नहीं देती थी तो लड़-झगड़ कर मार पीट करता तथा धक्के से सारे पैसे छीनकर ले जाता था।
एक बार की बात सुनाती हूँ। मैक्स मुझसे पौंड मांग रहा था तथा मैंने उसे कुछ नहीं दिया था। बहाना बना दिया कि मुझे अभी तन्खाह नहीं मिली। जानते हो, उस हरामी ने क्या किया? मेरा मेहनत के पैसे से खरीदा चीनी का टी-सैट चोरी करके ले गया। बहुत महंगा आया था तथा मुझे पता था कि उसने कौड़ीयों के भाव बेच दिया था। ऊपर से ज्यादा चालाक ने अपनी इस करतूत की मुझे तो बू भी नहीं आने दी थी। यह तो संयोगवश उस दिन दारू पीने को गिलास उठाने लगी तो अल्मारी खाली पड़ी थी। एक-एक करके उसने पहले भी कई चीजें ऐसे ही बेच दी थीं। वह टी-सैट तो मैक्स शर्तीया उस दिन ही लेकर गया था, क्योंकि दोपहर को तो मैंने मैक्स को उसे साफ करते देखा था। मैंने सोचा शायद सफाई कर रहा था। लेकिन मुझे क्या खबर थी उसकी योजनाओं की। वैसे हैरानी तो मुझे हुई थी, क्योंकि उसने पहले तो कभी सफाई नहीं की थी। मैक्स को बाहर गये तीन-चार घंटे बीत गये थे।
''यह मैक्स का बच्चा समझता क्या है अपने आपको? अब आया तो घुसने नहीं दूंगी घर में।" अभी मैं यह सब सोच ही रही थी कि मैक्स तभी अंदर आ घुसा था। उसके हाथ में पकड़े लिफाफे में वही टी-सैट था। मैंने तो मैक्स को आते ही घेर लिया था, ''खबरदार जो इसे बेचा तो, पकड़ा मुझे..., काहे को लेकर गया था?"
''इसे बेचने की तो जरूरत ही नहीं पड़ेगी, जिन्दा रहे मेरा बड़ा भाई", मैक्स शराब में टुन्न था।
''कौनसा तेरा भाई?" मैंने अपना टी-सैट मैक्स के हाथ से छीनते हुये पूछा था।
''पीछे मुड़कर देखते हुये मैक्स ने आवाज लगाई थी। अरे आ जाओ, बहन के भाई बाहर क्यों रूक गये?"
एक मैला-कुचैला व्यक्ति अन्दर आ गया था। मैक्स किसी शराबी को पब से अपने साथ ही घर ले आया था। मुझसे उसका परिचय करवाते हुये मैक्स ने कहा, ''मेरा दोस्त है, खुश कर इसे।"
मैंने आँख निकालकर देखा तो बात बदलकर कहने लगा, ''चिकन करी बना कर दो इसके लिये, तुम्हारे देसी खाने का शौकीन है यह।"
करी तो ऐसे कह दिया था जैसे करी के बिना हम कुछ और खाते ही नहीं या और कुछ हमारा खाना ही नहीं होता। हमारे ऐशीयन लोगों के खाने के बारे इन अंग्रेज लोगों की जानकारी सिर्फ करी चपाती तक ही सीमित है। मैंने मैक्स को तरी वाला मीट बनाने के लिये हां कह दिया था।
शराबी मुझे सिर से पैर तक देखता हुआ बोला था, ''इंडियन लड़कियां मुझे बहुत सुन्दर लगती हैं।"
''इंडियन नहीं, यह तो पाकिस्तानी है भई, मैक्स ने उसे बताया था।"
''अच्छा पाकी है यह? हां-हां मेरा मतलब वही था। एशीयन लड़कियां, अरे भई मुझे इंडियन व पाकिस्तानी लड़कियों का फर्क पता नहीं चलता। सभी एक जैसी ही लगती हैं। क्या फर्क होता है जी?" शराबी ने मुझसे जानकारी मांगी थी।
इंडियन व पाकिस्तानीयों के बीच अन्तर? कहने को तो अन्तर कोई भी नहीं है। वैसे देखा जाये तो दूरीयां हैं भी बहुत, ''मुझे ऐसा लगा था जैसे कोई पुराना दर्द कुरेदा गया हो।"
''फिर भी पहचानने के लिये कोई न कोई अन्तर तो होगा ही?"
''अन्तर के बारे में तुम्हे तो पता होना चाहिये, तुम्हारा फिरंगीयों का ही तो अन्तर डाला हुआ है।"
''वह कैसे?"
शराबी को मेरी समझ नहीं आई थी। शायद भारत-पाक के बंटवारे के दुखांत के बारे में वह शराबी कुछ नहीं जानता था। मैंने उस शराबी का मुँह बंद करवाने के लिये कहा था, ''इस अन्तर वाली बात की तुम्हे समझ नहीं आ सकती तथा न ही तुम्हारे लिये जानना जरूरी है।"
मैं वहां से उठकर रसोई की ओर आ गई थी। मैक्स तथा वह, दोनों काफी समय तक शराब पीते रहे थे। मैं मीट बनाकर ले गई तो मांस के माध्यम से उस शराबी ने मुझे सुना∙ र ∙ हा था, ''आह...हा...., तेरा गोश्त बहुत मजेदार है, देखकर ही नजारा आ गया, मुँह में डालने पर तो पता नहीं क्या होगा?"
मैंने शराबी की आँखों में देखा था, वह मेरी छाती पर नजर टिकाये अपने होंठों पर जीभ फिरा रहा था। मैं उसकी नजर को उसकी आँखों से ट्रेस करते हुये केन्द्र बिन्दू तक पहुंची तो मैंने देखा मेरे ब्लाऊज के गले का ऊपर वाला बटन खुला था। जिस कारण मेरे स्तनों के बीच में बनने वाली लकीर सी दिखाई दे रही थी। मैं समझ गई थी कि मीट का डौंगा मेज पर रखते समय जब मैं उस शराबी के सामने झुकी थी तो अवश्य ही उसने मेरे गले के अन्दर देखा होगा। मैंने शरमाकर अपना बटन बंद कर लिया था। समझ तो मैक्स भी सब कुछ गया था, लेकिन जान-बूझकर मनचला बनकर दांत निकाल रहा था। अगर अंग्रेज मैक्स की जगह कोई एशीयन होता तो उस बदतमीज शराबी अंग्रेज की गर्दन मरोड़ देता। होता कौन था वह मेरे नंगे स्तन देखने वाला?
मुझे भी मैक्स ने अपने साथ ही पीने लगा लिया था। हमारे घर पर एक ही सोफा है। बैठने को कोई और जगह नहीं थी। मजबूरन मुझे मैक्स तथा उस शराबी के बीच बैठना पड़ा था। शराबी ने मेरे लिये बड़ा सा पैग बनाकर पानी वाला जग उठाकर पूछा था, ''मैं अंदर डाल दूं या खुद अपनी जरूरत अनुसार डालेंगी?"
''जी कुछ नहीं डालना, मैं सूखी ही पीती हूँ, मैं शराबी की ओर देखकर मुस्कराई थी। पहले जब उसने पूछा था तो मैं उसकी बात का गलत अर्थ ही लगा गई थी।"
मैंने अपना गिलास उठाकर घूंट भर ली थी। शराबी अपना पैग उठाते हुये बोला था, ''और भई मैक्स....? वह मैगजीन है न जिसमें एशीयन लड़कियों की अश्लील तस्वीरें छपती हैं, क्या भला सा नाम है उसका?"
''एशीयन बेबस", मैक्स ने बताया था।
''हां....हां.... वही, लाये हो कभी?"
''नहीं भई, वह हमने क्या करना है? वह तो महंगा ही बहुत आता है", दारू के गिलास से घूंट भरकर क्रिस्प का टुकड़ा उठाते हुये मैक्स ने जबाव दिया था।
''हां भई, तुम्हे क्या जरूरत है? तुम तो साक्षात सब कुछ देखते हो। वैसे वह मैगजीन बिकता बहुत है। दुकानों पर आता बाद में है, लोग पहले ही खरीद लेते हैं। हाथों-हाथ सारी कापीयां बिक जाती हैं। सुना है नंगी तस्वीरें खिंचवाकर ये एशीयन लड़कीयां बहुत खुश होती हैं। अपनी गोरी औरतों की तरह नहीं होती ये", अपने तजुर्बे ब्यान करता हुआ शराबी मेरे साथ लगता जा रहा था।
मैं उससे दूर होती हुई दहाड़ी थी, ''हां-हां, गोरीयों की तो जैसे लच्चर तस्वीरें ही नहीं होंगी। एशीयन तो मजबूरी में खिंचवाती हैं। तुम्हारी गोरीयां तो शौक से खिंचवाती हैं। कोई भी अखबार, मैगजीन, पोस्टर, कैलेंडर, कैटालॉग, फिल्म या नाटक जो मर्जी देख लो, हर जगह गलीयों-बाजारों में गोरी मेम अपने जिस्म की नुमाइश करती फिरती हैं।"
शराबी बात बदलता हुआ बोला था, ''कभी तुमने अपनी नंगी तस्वीर खिंचवाई है कि नहीं? तुम्हारी तो सुन्दर भी बहुत आयेगी। किसी भी राष्ट्रीय अखबार से तुम्हे अच्छी रकम मैं लेकर दूंगा, बात करो, अगर दिल मानता है तो?"
''पहले जाओ अपनी मां की फोटो छपवाओ, फिर मेरे साथ बात करना।"
मेरी डांट से शराबी की हालत पानी से पतली हो गई थी।
''तुम तो गुस्सा कर गई, मैं तो हंस रहा था।"
''रहने दो हंसने को, मुझे तुम रोते हुये ज्यादा अच्छे लगते हो।" उसके बाद मैंने पंद्रह-बीस मिनट लगातार अच्छी तरह से उस शराबी को दलीलों से डांट पिलाई थी, तब जाकर वह चुप हुआ था। दारू पीते हुये उस शराबी ने कई बार मेरी जांघों पर हाथ फिराने की कोशिश की थी। मैं एक तो उसके मुँह की ओर देख रही थी कि अपने आप हट जायेगा तथा दूसरा मैक्स को देख रही थी कि वही अपने शराबी दोस्त को हटायेगा, लेकिन मामला धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। इससे पहले कि पानी सिर से ऊपर से गुजरता, मैंने उठकर अपने कमरे में जाकर सो जाना ठीक समझा था।
अभी मैं वहां से उठने ही वाली थी कि उस शराबी ने मेरे गले में बाजू डालकर मेरी गाल चूमने की कोशिश की थी, ''आय-हाय मेरी जूलीया रार्बटस....ऊं....पुच….।"
अंगुली पकड़कर हाथ पकडऩे वाली बात की थी उस बेगैरत शराबी ने। मैंने पूरे जोर से धक्का मारकर उसे दूर किया था। जैसे ही मैं खड़ी हुई तो शराबी ने मेरा हाथ पकड़ लिया था। मैंने झटककर उससे अपना हाथ छुड़ाया तथा मेज के ऊपर चढ़कर वहां से भागी थी, कमरे से निकलते हुये मेरे कानों में मैक्स की आवाज पड़ी थी, ''माइंड न करना, मैं समझाता हूँ उसे।" पता नहीं वह यह बात मुझे कह रहा था या उस शराबी को?
आधी रात हो गई थी। मैं सीधा अपने कमरे में सोने चली गई थी। समेत जूते बिना कपड़े बदले मैं बैड पर गिर गई थी। तकिए में सिर छिपाकर तब तक रोती रही थी, जब तक मेरे आंसू खत्म नहीं हो गये थे।
मेरी आँख लगने ही वाली थी कि मेरे मुँह पर कोई कागज सा आ गिरा था। मैंने आंखें खोलकर देखा तो वह शराबी हाथों में नोटों की गड्डी पकड़े मेरे पैरों की ओर बिल्कुल नंगा खड़ा था। वह थोड़े-थोड़े करके मुझ पर ऐसे नोट गिरा रहा था जैसे किसी नाच रही तवायफ पर मुजरा सुनने वाले अय्याश अमीरजादे धन लुटाते हैं।
शराबी की आँखों से मेरी आंखें मिलीं तो उसने हाथों में पकड़े नोट हवा में उछालकर वर्षा की तरह मुझ पर बरसात कर दी थी। मेरी तो उसे नंगा देखकर तभी आँखें बंद हो गई थीं।
बैड पर उठकर बैठते हुये मैंने ऊंची आवाज में आवाजें लगाई थीं, ''मैक्स? मै...क्स…?"
चीखती क्यों हो? मैक्स-मूक्स नहीं यहां, हमें दिल बहलाने के लिये छोड़कर चला गया है वह, सुबह आयेगा, उसने तो सात जन्मों में कभी भी इतनी दौलत नहीं देखी होगी, जितनी मैंने उसे एक दिन में ही दिखा दी।
यह सुनकर मेरे तन-बदन में आग लग गई। मुझे सातों कपड़े आग लग गई थी। मैक्स अब इतना गिर गया था कि उसने मेरे जिस्म का सौदा करना शुरू कर दिया था। वह कौन होता था मेरा मोल बटोरने वाला? मैंने अपने आप से पूछा था।
शराबी मेरी ओर बढ़ रहा था। मैंने उसे धमकाया था, ''जा, बाहर निकल जा मेरे कमरे से, मैं पुलिस बुलाने लगी हूँ नहीं तो….?"
''मेरी रानी गुस्से क्यों होती हो? अरी छमीयां..... अभी तूने मेरा देखा ही क्या है? खुश कर दूंगा तुझे, तेरे गट्टू से खसम से तो बुरा नहीं मैं? छप्पन छुरी, मेरी औरत बन जा, छोड़ पल्लू उसका, तुझे फूलों की तरह संभाल-संभाल कर रखूंगा।"
शराबी मेरे बिस्तर पर घुटने टिकाकर मेरे पास आने लगा था । और तो मुझे कुछ नहीं सूझा था। उसे अपने ऊपर चढ़ता आता देखकर मैंने जोर-जोर से उसके जांघों के बीच तीन-चार लातें मारी थीं। मेरा दिल करे सात नंबर के सैंडिल की चार इंच लंबी एड़ी से उसका सामान पिचका कर रख दूँ।
महाभारत ग्रन्थ में वर्णन आता है कि कौरवों (कुरूवंश) के राजा धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से श्रेष्ठ पुत्र दुर्योधन था। धृतराष्ट्र के अन्धा होने के कारण उसकी पत्नी गांधारी ने भी अपनी आँखों पर यह कहकर पट्टी बांध ली थी कि जिस संसार को उसका पति नहीं देख सकता, उसे वह खुद भी नहीं देखेगी। जब पांडवों के साथ हुये युद्ध में बहुत से कौरव पुत्र मारे गये तो गांधारी को अपने पुत्र दुर्योधन की जान की चिंता हुई। गांधारी ने ब्रह्मा की भक्ति करके वरदान प्राप्त किया कि वह अपने पुत्र के शरीर को अगर एक बार नग्न अवस्था में देख लेगी तो दुर्योधन का सारा शरीर पत्थर जैसा मजबूत हो जायेगा। इसलिये गांधारी ने दुर्योधन से कहा, पुत्र तुम सुबह नदी में स्नान करके बिना कोई वस्त्र पहने मेरे पास आ जाना, मैं कुछ क्षणों के लिये अपनी पट्टी उतारकर तेरे शरीर को देखूंगी, जिससे तेरा शरीर पककर चट्टान जैसा ठोस बन जायेगा तथा फिर तुझे कोई भी चोट नहीं पहुँचा सकेगा।
दुर्योधन ने हिचकिचाते हुये कहा, माता जी, मैं आपके सामने कैसे आ सकता हूँ?
क्यों नहीं? हर मां अपने पुत्र के नंगे जिस्म को देखती है। बच्चा मां के हाथों में ही तो पलता है। फिर जन्म देने वाली मां से काहे की शर्म?
दुर्योधन मां की आज्ञा मानकर सुबह-सवेरे नहाकर नदी से आ रहा था तो रास्ते में उसे भगवान कृष्ण जी मिल गये। उन्हें गांधारी के वरदान के बारे में पता था। पांडवों के पक्ष में होने के कारण कृष्ण नहीं चाहते थे कि दुर्योधन का शरीर लोहे जैसा मजबूत व फौलादी बने। इसलिये कृष्ण ने दुर्योधन को यह बात जंचा दी कि छोटे होते समय बात और थी, अब तुम बड़े हो गये हो, मां के सामने बिल्कुल नग्न जाते हुये तुम्हे शर्म आनी चाहिये।
कृष्ण की लच्छेदार बातों में आकर दुर्योधन ने अपनी कमर पर केले के पत्तों का वस्त्र लपेट लिया। जब गांधारी ने दुर्योधन के सामने आने पर अपनी पट्टी उतारकर देखा तो दुर्योधन का बाकी हिस्सा पक गया, लेकिन केले के वस्त्र से ढंका हुआ हिस्सा कच्चा रह गया। लड़ाई के दौरान भीम ने दुर्योधन के इसी हिस्से पर गदा मार-मार कर ही उसे मार दिया था। तभी से यह धारणा बनी हुई है कि हर मर्द के शरीर का यह भाग कच्चा होता है अर्थात इस जगह चोट करने पर सहज ही व्यक्ति को मारा जा सकता है। अगर किसी की हत्या करनी हो तो मर्द के इसी गुप्त अंग पर चोट करो। इसी लिये कुश्तीयों में कमर के नीचे वार करना वर्जित होता है।
मुझसे अपने नाजुक सामान पर चोट खाकर वह शराबी भी वहीं गिरकर चीखें मारने लगा था। मैं फुर्ती से दूसरे कमरे में जाकर अन्दर से कुण्डी लगाकर सारी रात बैठी अपनी किस्मत पर रोती रही थी।
सुबह तक मैक्स अपने आप उस शराबी को मेरे कमरे से उठाकर पता नहीं कहां छोड़ आया था। मैंने नहीं पूछा था, वह जिंदा है या मर गया। अपने आप ही मैक्स ने बात चलाई थी, ''वैसे ही मना कर देती, यह जूडो-कराटे के दांव चलाने की क्या जरूरत थी? अगर गलत जगह पर चोट लगने से वह मर जाता।"
''अगर मेरी इज्जत लूट लेता?"
''तुम्हारी क्या बैटरी डाऊन होने लगी थी? सैक्स तो मन को सुकून व सरूर (नशा) देने वाली एक शारीरिक कसरत है, पता है वह शराबी कितना अमीर है?"
''मैंने कब दल्ला बनकर ग्राहक लाने को कहा था? अगर मैं इतनी ज्यादा डैस्प्रैट होऊंगी तो अपने आप किसी सड़क पर जाकर खड़ी हो जाऊंगी, तुझे कमीशन क्यों दूंगी? खबरदार अगर फिर कभी मेरे पास किसी को लेकर आया तो याद रखना, मैं तो चाकू लेकर उसका गुप्त अंग ही काट दूंगी।" मैंने जी भरकर खरी-खोटी सुनाई थी। लो जी, वह दिन गया व आज का आया, फिर नहीं लेकर आया वह सेवा करवाने के लिये किसी को। मैक्स जानता है मेरे स्वभाव को, भई मैं तो आने वाले का कबाड़ा बनाकर रख दूंगी।
मैक्स को मैंने साफ-साफ बता दिया था, ''तेरे नाम जिंदगी लगाई है, तुम जो मर्जी करो, तुम्हे कोई जबाव नहीं , और किसी को मैंने हाथ नहीं लगाने देना। मेरी हवा की ओर भी किसी ने देखा तो उसकी आंखें निकाल दूंगी।"
जिन एशीयन औरतों के व्यवस्थित (अरेंज) विवाह होते थे। उनके बारे में मैं सोचा करती थी कि वह नित्य अपना बलात्कार करवाती हैं। मर्जी के बिना किसी मर्द के द्वारा औरत से किया गया सैक्स जिसमें औरत को कोई आनन्द न आये तथा जुल्म सहना पड़े तो इसे ही तो बलात्कार कहा जाता है। उस स्थिति से भागती-भागती मैं आखिरकार उसी में ही फंस गई थी। मैं मैक्स के साथ मजबूरी में रह रही थी। हर रोज उससे अपना बलात्कार करवाती थी।
भाई गुरदास जी ने कितना सही कहा है, ''कुत्ता राज बहालीए, फिर चक्की चॅटे, सॅपे दुॅध पिआलीये , विहु (विष) मुख थीं सॅटे, पत्थर पानी रखीये, मन हठ न घॅटे, चोआ चंदन पर रहै, खरू खेह पलॅटे", बिल्कुल वही हाल मैक्स का था, इस लंगूर को मैं अंगूर मिल गई थी।
मेरी इज्जत निलाम करने में नाकाम होकर मैक्स ने मुझसे बदला लेने का और ढंग ढूंढ लिया था। मेरे सामने ही मैक्स घर पर मोल की गलत औरतों को लाने लगा था। वह दो पैसे की नहीं होती थीं, जिन्हें बैड पर मेरे साथ ही लिटाकर भोग-विलास करता था। मैं सारी-सारी रात पलंघ की एक ओर पड़ी खून के आंसू रोती रहती थी। पता नहीं उसे ऐसी सड़कछाप औरतों में क्या मजा आता था। मेरे पैर जैसी भी नहीं होती थीं वह। मेरे साथ बाजारू औरतों वाला सलूक करता था। गीली लकड़ी की तरह धीरे-धीरे जल रही थी मैं। भक्त नामदेव जी ने कहा है, ''घर की नारि त्यागै अंधा, पर नारी सो घालै धंधा।"
मेरी अम्मी के पास एक इंडियन औरत काम करती थी, हमारे घर के पास ही रहती थी वह, उसके घरवाला घर पर कम व पब में ज्यादा रहा करता था। दूसरे-तीसरे दिन वह मेरी अम्मी के पास आकर रोने लग जाया करती थी। वह शक किया करती थी कि उसके घरवाले का किसी और औरत से चक्कर होगा। बहुत रोया करती थी कि वह। अकसर ही आत्महत्या करने की बातें किया करती थी। ''बहन जी मैं तो कुछ खाकर मर जाऊंगी। मैं इंडिया से आई हूँ इसलिये मेरा पति मुझे पसंद नहीं करता। उसे तो कोई यहां की रहने वाली लड़की चाहिये थी। मैंने बलराज सिंह सिद्धू की कहानी 'नंगीया आंखया' में पढ़ा है। उसने एक पात्र के मुँह से कहलाया है, ''मर्दों को यह आदत होती है कि जब बाहर जायेंगे तो कोट-पैंट, टाई-शाई, लगाकर जायेंगे, घर आयेंगे तो हल्का फुल्का व आराम दायक महसूस करने के लिये कुर्ता-पाजामा पहन लेेंगे। इसी तरह पत्नि में मर्द दोनों गुणों की तलाश करता है। एक्टिव आऊट-फिटस वाली भी तथा आरामदायक कपड़ों वाली भी। मैं गंवार हूँ, घर के काम धन्धे ही कर सकती हूँ, इसी कारण मेरा पति मुझे कहीं बाहर नहीं लेकर जाता। मुझे तंग करता है, हम सदैव लड़ते रहते हैं, मेरी तो जिंदगी नर्क बनी पड़ी है।"
मेरी अम्मी उसे बहुत समझाती थी, ''भई गुड़ीया जिस आदमी को शराब की लत लगी हो वह मुश्किल से ही छूटती है। तुम अपने मालिक से लड़ाई-झगड़ा मत किया करो, बल्कि उससे कहा करो कि जितनी पीनी होती है घर बैठकर पी लिया करो। इस तरह वह भी तुम्हारी नजर में रहेगा। साथ ही आदमी पास हो तो सौ तरह की छेड़-छाड़ करता है। पत्नि के साथ अगर कुछ और नहीं तो कम से कम उल्टी सीधी जगह पर चार-पांच चिकोटी तो काट ही लेगा।"
अम्मी की राय उस लड़की के दिमाग में घुस गई थी। वह अपने पति को खुद ही जाम बनाकर देने लग पड़ी थी। वह आदमी अपनी शराब पीता रहता तथा वह उसके साथ बैठकर जूस पीती रहती। इस तरह उन मर्द-औरत का मूड बन जाता तथा वह प्यार करने लग जाते। उसके बाद उनके बीच कभी भी झगड़ा नहीं हुआ था। वह लड़की खुद ही मेरी अम्मी को बताती थी, ''मैं तो ऐसे ही शक करती रही, सचमुच इनकी तो किसी औरत के साथ कोई बात नहीं थी, अब तो घर से निकलने का नाम ही नहीं लेते, धक्के देकर काम पर भेजना पड़ता है।"
इसलिये मेरा कहने का यह मतलब है कि पराई औरत का विचार भी घरवाली को तड़पा कर रख देता है। फिर मैक्स की हरकतों से मेरी जो दुर्गति होती थी, मैं या मेरा भगवान ही जानता था। एक कहावत है, ''धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो थोड़ा सा गया, चरित्र गया तो सब कुछ गया।"
मैक्स ने भी शर्म-हया उतारकर छींके पर टांग दी थी। कुछ नहीं बचा था उस निर्लज के पास। मुझे मैक्स को रोकने की हिम्मत भी नहीं रही थी। पहले-पहले पूछा था, ''ये सब क्यों करता है?"
तो मैक्स ने सीना फुलाकर बताया था, तुम्हारे धर्म में आदमी को एक से ज्यादा औरतें रखने का हक है। मुसलमान तीन-तीन विवाह करवा लेते हैं तो मुझे किसी दूसरी औरत की बगल में देखकर तेरे क्या बिच्छू लड़ता है? तुम्हारे मुसलमानो से ही सीखा है यह.....।
तो मैक्स ने सीना फुलाकर बताया था, तुम्हारे धर्म में आदमी को एक से ज्यादा औरतें रखने का हक है। मुसलमान तीन-तीन विवाह करवा लेते हैं तो मुझे किसी दूसरी औरत की बगल में देखकर तेरे क्या बिच्छू लड़ता है? तुम्हारे मुसलमानो से ही सीखा है यह.....।
''मुसलमानों के गलत काम ही क्यों अपनाये हैं? अच्छे भी धारण कर लेता? मुसलमानों से इश्क करना भी सीख लेता? जो महबूब की कब्र पर छत डालने के लिये ताज महल खड़ा कर देते हैं। हमारे धर्म में वेश्या को घर लाने की पाबंदी है। कुरान में तीन औरतें रखने की इजाजत तो तुमने पढ़ ली। इससे आगे जो शर्तें लिखी थी, उनसे क्यों आंखें बंद कर ली? वे पढ़कर देखता? विचार करता कि किन हालात में मर्द को एक से ज्यादा औरतें रखने की छूट है...…।"
''क्या लिखा है चल तूं ही बता दे, हमें अनपढों को क्या पता है…?"
रस्मों-रिवाज, परम्परायें व कानून हमेशा इन्सानों की सहूलियत के लिये बनाये जाते हैं। जब कभी ये सब इतना पुराना हो जाता है कि इनसे मनुष्य को फायदे की जगह नुकसान होने लगता है तो इन्हें संशोधित या बदल दिया जाता है। सही है कि इस्लाम ने मर्द को एक से ज्यादा औरतें रखने का अधिकार दिया है। क्यों? कब? तथा कैसे? ऐसा किया गया था। इस बात को आंख परोखे करके हमारे धर्म पर कीचड़ उछालने का तुम अंग्रेजों को कोई हक नहीं है। जुल्फिकार अली भुट्टो साहब ने अपने एक भाषण में कहा था, ''इस्लाम इज दी मोस्ट अन अन्डरस्टूड रिलीजन इन दी वैस्ट।"
मुहम्मद साहब ने तीन बीबीयां रखने का यह धार्मिक कानून इसलिये बनाया था, क्योंकि पुराने समय में युद्ध में पति मारे जाते थे तो उनकी जवानी में विधवा हुई औरतों को कोई संभालने वाला नहीं होता था। ऐसी हालत में औरत को अपना जिस्म न बेचना पड़े, वेश्या न बनना पड़े तथा समाज में बुरे तत्वों की नजरों से बचाने के लिये यह हुक्मनामा जारी किया गया था। इस कानून का एक ही मकसद था कि औरत को शरीफ आदमी के घर में बसाकर इज्जत की जिन्दगी जीने का मौका मिले।"
अच्छी तरह से धूल झाड़कर मैल उतारी थी मैंने मैक्स की। इसके साथ ही मैंने उससे यह भी कहा था कि, ''मेरे धर्म के बारे में अगर कोई और शंका उसके मन में है तो वह अभी बता दे, वह भी दूर कर दूँगी? कल को कुछ और मत कहना।" मेरे सामने बात नहीं आई थी मैक्स को। बाद में कभी उसने धार्मिक मामलों को नहीं छेड़ा था। उस दिन मैंने मैक्स को अच्छी तरह से बता दिया था कि मैं वेश्या नहीं हूँ। जिसे नोट देकर कोई भी जैसे मर्जी भोगता फिरे। मुझे औरत बनाकर रखना है तो रख, नहीं तो दफा हो जा। मैक्स उस दिन से मुझसे पूरा चालू है। ऐसे आदमी तो इसी तरह दबाकर रखे ही ठीक रहते हैं, नहीं तो ऐसे ही ऊपर चढऩे लगते हैं। मेरे साथ तो जब कोई उलझे मैं उसे टके सा जबाव सुना देती हूँ, सुनकर अपने आप चुप बैठ जाता है।
पहले-पहले मैं मैक्स के साथ घर आने वाली वेश्याओं को नफरत करती थी। अब तो मैं उनके आने का बुरा नहीं मनाती, क्योंकि अब मैंने उनके प्रति अपना नजरीया बदल लिया है। जो औरत जिस्म बेचे उसे वेश्या कहा जाता है। अगर वे औरतें धन के बदले संभोग करने के कारण वेश्या कहलाती हैं तो उस लिहाज से तो मैं भी वेश्या थी, जो मैक्स को अपने साथ जोड़े रखने के लिये उसे अपना शरीर भेंट करती थी। सैक्स बेचने व खरीदने वाले दोनों की ही सोच वेश्यावृति वाली होती है। दोनों ही वेश्याएं होते हैं। मुझे तो मैक्स भी वेश्या लगता था जो शारीरिक सुख प्राप्त करने के लिये दौलत खर्च करता था। वेश्या, हां वेश्या। कभी-कभार तो मुझे यह पूरा संसार ही चकला तथा सारी मतलबी दुनियां वेश्या प्रतीत होने लगती है।
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