Monday 4 May 2015

11. कांड-भूल गई यार पुराना


जैसे सावन की बरसात के समय होता है, कभी बिना रूके झन्नाटेदार बारिश रफतार कम करके बूंदा-बांदी पर आ जाती है तथा कभी बूंदा-बांदी से हल्की रिमझिम पर तथा कभी फिर जोर पकड़कर मूसलादार बारिश होने लगती है। उसी तरह मैं रोये जा रही थी। रोकने की कोशिश करने पर भी मुझसे अपने आंसू रोके नहीं जा रहे थे। मेरे टैंट में बैठी मेरी सहेलियां एंजला व इजबल मुझे जितना चुप करवाने की कोशिश करती थीं, मैं उतना ही और ऊंचा रोने लग जाती थी। वे मेरी समस्या को अपने दृष्टिकोण से देख रही थीं तथा मैं अपने दृष्टिकोण से। उनसे मेरे विचार अलग थे। वे तो कपड़ों की तरह यार बदलती थीं। किसी लड़के के साथ सो लेना उनके लिये मामूली व साधारण सी बात थी। लेकिन मेरे लिये यह बहुत बड़ी बात थी। जिस काम के लिये मैंने इकबाल को भी मना कर दिया था, वही काम मैंने मैक्स के साथ बिना किसी आपत्ति के कर लिया था। मुझे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब कैसे हो गया। इकबाल से शारीरिक संबंध बने होते तो और बात थी, वह मेरे बचपन का साथी था, वह मेरे सपनों व विचारों में बसा हुआ था, मैं उसे पसंद करती थी, मैं उसे चाहती थी, प्यार करती थी, उसके ऊपर मरती थी, लेकिन मैक्स को तो मैं अच्छी तरह से जानती तक नहीं थी। जिंदगी में पहले कभी मिली भी नहीं थी तथा न ही आगे किसी मुलाकात होने का भरोसा था। एेसी एक-आध घंटे की मुलाकात के बाद पराये मर्द को अपना सब कुछ गोरी व काली औरतें तो सौंप देती हैं, लेकिन एेशियन लड़कियां व खास तौर से मेरे जैसी शरीफ व इज्जतदार खानदान की लड़कियां तो हरगिज एेसे घटिया वन नाईट स्टैंडÓ वाले काम नहीं करतीं।
इजबल अपने लंबे डील-डौल के कारण अपनी उम्र से बड़ी लगने की वजह से हर सप्ताहांत पर टाऊन सेंटर में बने नाईट क्लबों में जाया करती थी, वहीं पर नाचते समय कोई लड़का उसे पसंद कर लेता, इजबल उसके साथ जाकर गप्प-शप्प मारने लग जाती, उसके साथ नाचने लग जाती, लड़के के साथ बीयर व शराब पीती, उसी से खाती-पीती, (इसी कारण इजबल के घर पर तोहफों तथा कपड़ों के भंडार लगे पड़े थे) इसके बदले में सारी रात उसका बिस्तर गर्म करती। अगले दिन मैं कौन? तू कौन? दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी बन जाते तथा बीती रात की घटना को वन नाईट स्टैंडÓ कहकर भूल जाते। अगले सप्ताह फिर कोई नया लड़का इजबल का निशाना होता। एंजला भी एेसे ही करती थी तथा और भी कई पश्चिमी सोच वाली लड़कियां, जिनमें गोरी या काली  व कई एेशियन लड़कियां भी होती थीं।
इजबल की बहन लिल्ली भी इसी तरह की थी, उसका स्कूल में पढ़ती का ही पेट बाहर आ गया था। फिर लिल्ली का आशिक उसे गर्भवती हालत में छोड़कर किसी और के साथ रहने लग गया। मेरे सुनने में तो ये भी आया था कि इजबल भी एक बार गर्भपात (इकबाल से नहीं, किसी और से गर्भ ठहरा था, इकबाल इजबल को छोड़कर रजनी के साथ फंस गया था तथा इजबल ने किसी और अंग्रेज लड़के के साथ दोस्ती कर ली थी) करवा चुकी थी। कहीं मेरे भी कुछ न हो जाये, मैं इस अहसास से डरकर कांप गई थी। चाहे एक रात में तो कोई ज्यादा तबदीली नहीं आती, लेकिन फिर भी मेरे अन्दर इस तरह से डर बैठ गया था कि पेट पर हाथ फेरने से मुझे मेरा पेट पहले से कुछ बढ़ा हुआ महसूस हो रहा था, मुझे वहम हो गया था कि जरूर कुछ न कुछ हो गया होगा। तभी तो मुझे रोना आ रहा था, मेरे आंसू रूक नहीं रहे थे, मुझे हिचकोले ले-लेकर रोती देखकर एंजला ने मुझे डांटकर कहा, मैंने भी उस फ्रैंच लड़के के साथ यही सब किया है, तो फिर बता तेरी कौनसी मेहंदी उतर गई? क्यों रोना-धोना लगा रखा है?ÓÓ
कोई उत्तर देने की बजाए मैंने रोना जारी रखा था।
अगर मैक्स ने तेरे साथ जब्रदस्ती की है, बलात्कार किया है तो बता?ÓÓ इजबल ने मुझसे पूछा था।

मैंने रोते हुये बताया था कि, नहीं, हुआ तो सब कुछ मेरी सहमति से ही है, लेकिन मैं यह सब करना नहीं चाहती थी।ÓÓ
अब तो जो हो गया, सो हो गया,ÓÓ एंजला ने मुझसे डांटने की तरह से कहा था। लेकिन मैं मैक्स को प्यार नहीं करती, मैं इकबाल......ÓÓ इससे आगे मुझसे बात नहीं हुई थी, मैं जोर-जोर से रोने लगी थी तथा मैंने सभी से मुझे तन्हां छोड़ देने को कह दिया था। उन्होंने ऐसा ही किया था तथा मुझे अकेली छोड़कर चली गई थी।
उनके बाद मैक्स मेरे पास आया था। वह भी यही कहता रहा था कि मैं सबकुछ भूल जाऊं तथा उसके साथ रहूँ। उससे बढिय़ा खसम (पति) मुझे और कोई नहीं मिल सकता। ये बात तो पक्की थी कि मैं वापिस घर भी नहीं जा सकती थी। मेरे व मेरे मां-बाप के बीच इतनी दूरी पैदा हो गई थी, जिसे दूर नहीं किया जा सकता था तथा न ही उसके ऊपर पुल बनाया जा सकता था। इसलिए मुझे अपने ठहरने के लिए कोई न कोई ठिकाना तो ढूंढना ही पङऩा था। उस समय मैक्स के बिना और कोई नजर नहीं आ रहा था उस दिन के बाद मैं मैक्स के साथ उसके टैंट में ही रहने लगी थी।

वैसे भी मैं यह अच्छी तरह से समझ गई थी कि इकबाल अब मुझे कभी भी नहीं मिलेगा, क्योंकि मैं वह नहीं रही थी जिसे इकबाल ने चाहा था।
इकबाल व मैं एक बार कक्षा में एक ही बैंच पर बैठे बातें कर रहे थे, मैंने उसे सरसरी नजर से ही पूछा था, तुझे मेरी कौन सी चीज सुंदर लगती है?ÓÓ

हर चीज, तेरी सादगी....तेरी सुन्दरता.... तथा सबसे ज्यादा तेरा देसी पहरावाÓÓ इकबाल ने शायराना लहजे में बताया था।

इकबाल के मुंह से यह सुनकर मुझे अपने देसी वस्त्रों पर बहुत फर्ख महसूस हुआ था। मेरा दिल करता था कि उसी समय घर जाऊं तथा अपने सभी पंजाबी सूट उठाकर लाऊं तथा फिर सभी सूट इकबाल को पहनकर दिखाऊं। इकबाल को देसी औरतों के पहने हुये अंग्रेजी लिबास पसंद नहीं थे। वह मेरे सूट-सलवार के कारण ही मुझ पर मोहित हुआ था। उसी सूट-सलवार को मैं तिलांजली दे चुकी थी।
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार हमारा मानव शरीर पांच तत्वों के मिलाप से बनता है, पंच तत मिलि काया कीनीÓÓ भगत कबीर जी ने कहा है तथा इसकी प्रमाणिकता सिखों के नौवें गुरू जी ने भी अपनी वाणी में करते हुये लिखा है, पांच तत्त को तन रचिओÓÓ ये पांच तत्व जल, अग्नि, पवन, पृथ्वी व आकाश होते हैं। पानी की भावना सबको शुद्ध व शांत करना होती है, आग का स्वभाव रूखा-सूखा तरो ताजा जैसा मिले खाकर प्रसन्न रहना तथा प्रकाश बांटना होता है, हवा का कार्य सबको समान स्पर्श करना तथा जीवन देना होता है, धरती का काम धीरज रखना व सबको निवास देना होता है। आसमान का कार्य सबको ढंकना होता है। संस्कृत के विद्वानों ने शारीरिक पांच तत्वों के जो पांच-पांच गुण स्वीकार किये हैं, वे इस प्रकार हैं:-
अंबर (आकाश)-काम, क्रोध, लज्जा, मोह, लोभ,
पानी - वीर्य,   लहू,   मिंज,   मल,   मूत्र।
मिट्टी-नींद, भूख-प्यास, पसीना, आलस्य, अग्नि (तड़पना, भटकना)
हवा-धारन (पकडऩा), चालन (धकेलना), फांकना, समेटना, फैलाना।
हमारे मरने के बाद तत्व फिर अलग-अलग हो जाते हैं। शरीर आत्मा का वस्त्र होता है। आत्मा एक शरीर के खत्म होने पर दूसरे, दूसरे से तीसरे में प्रवेश करती रहती है। बिल्कुल उसी तरह से जैसे गंदा होने पर या फटने पर एक कपड़ा उतारकर हम दूसरा वस्त्र पहन लेते हैं। शरीर नाशवान है, मर जाता है। लेकिन आत्मा अमर है। कभी नहीं मरती। हर इंसान की आत्मा पवित्र होती है। लेकिन मेरी तो आत्मा भी अपवित्र हो चुकी थी। मैक्स के साथ संबंध चाहे अन्जाने में ही बने थे, लेकिन इसमें मेरा पूरा दोष था। मैं अब इकबाल के काबिल भी नहीं रही थी, मैं अब बिल्कुल बदल गई थी।
अब मैं अंग्रेज लड़कियों की तरह एय्याश हो गई थी। जिस सीधी सादी लड़की को इकबाल ने चाहा था, यकीनन वह मुझमें से मनफी (कम) हो गई थी। मेरा पहनावा, चाल-ढाल, सोच सब कुछ बदल गया था। सबसे बड़ी बात तो यह कि अब मैं पाक-पवित्र भी नहीं रही थी। मैक्स ने मुझे जूठन बना दिया था। मेरा भोग किया जा चुका था, मैं नापाक हो गई थी, भ्रष्ट हो गई थी। मैं जापानियों के कहे अनुसार अब मैं मूसमेई यानि कुंवारी व पवित्र कन्या नहीं रही थी। कुंवारापन एक अमूल्य वस्तु होती है, जो मेरे खयाल से हर व्यक्ति को अपने विवाहित साथी को ही सर्मपण करनी चाहिए, लेकिन मैं मूर्ख वह अमूल्य वस्तु भांग के मोल ही गंवा चुकी थी।

मेरे पास मैक्स के पल्ले बंधने के बिना और कोई चारा नहीं बचा था। मां-बाप को खुद छोड़ आई थी तथा इकबाल हासिल नहीं हो सका था। मेरे साथ तो वह हुई, "न खुदा ही मिला, न विसाले-सनम, न इधर के रहे, न ऊधर के।ÓÓ
जब हमारे पास अपनी मनपसंद चीज न हो तो हमें उस चीज को पसंद करने लग जाना चाहिये जो हमारे पास उपलब्ध हो।
उस समय मैं छोटी सी होती थी कि एक बार पैट्रोल की बढ़ी कीमतों के विरोध में पूरे इंगलैंड के ट्रक ड्राइवरों ने हड़ताल कर दी थी। तेल कंपनियों के दरवाजों के आगे ट्रक खड़े करके धरने लगा दिये थे, रास्ते बंद होने के कारण तेल कंपनियां पैट्रोल स्टेशनों पर नहीं पहुंचा सकी थी। सारे देश के पैट्रोल स्टेशनों से तेल खत्म हो गया था। शीशा रहित तो बिल्कुल भी नहीं मिलता था। और कई लोगो की तरह मेरे अब्बा ने भी शीशा रहित तेल न मिलने पर शीशे वाला तेल ही डालकर काम चलाया था। जिन व्यक्तियों ने ऐसा नहीं किया, उनके काम तो बहुत पहले ही रूक गये थे।
मैं अपने जीवन में ठहराव नहीं लाना चाहती थी। इसलिए मैंने मैक्स के साथ ही जिंदगी बिताने का फैसला कर लिया था। इस रास्ते पर कदम बढ़ाने के बिना मेरे पास और कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था। अंग्रेजी की एक कहावत है, पास्ट इज गौन, फयूचर इज अननोन, प्रेजेंट इज गिफट,ÓÓ अर्थात भूतकाल बीत गया, भविष्य का कुछ पता नहीं, वर्तमान वहुमूल्य तोहफा है, इसकी संभाल करनी चाहिये। मैं उस समय अपने वर्तमान को संभाल लेना चाहती थी।
मुझे फ्रांस बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था। घूमते-घूमते इकबाल के बारे में सोचकर मुझे रोना आ जाता था, कितना प्यार करता था वह मुझे। सारा दिन मैं उसकी तकदीर के बारे में सोचती रहती थी, लेकिन रात को मैक्स के पास आते ही मैं सब कुछ भूल जाती थी, यहां तक कि इकबाल को भी।
हिन्दू मिथिहास में एक कथा आती है कि एक बार सरस्वती देवी पर मारकंडा ऋषि मोहित हो गये। सरस्वती उसे अपने पास भी न फटकने दे, सरस्वती यहां भी जाये, मारकंडा उसके पीछे-पीछे रहा करे। सरस्वती उससे तंग आकर अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी। एक दिन सरस्वती नहा रही थी। उसे मारकंडा दूर से खड़ा रहकर देखता रहा। जब सरस्वती ने देखा कि मारकंडा सामने खड़ा है तथा अगर वह पानी से बाहर निकली तो वह उसे निवस्त्र देखकर छेड़-छाड़ करेगा। इस तरह मारकंडे के डर से सरस्वती पानी में खड़े-खड़े नदी बन गई। जप तप ∙र∙ेे मारकंडा भी दरिया बन गया तथा सरस्वती नदी के पास ही बहने लगा। सरस्वती उसे भूल-भुलैया में डालने के लिए कभी दो मील धरती के ऊपर तथा कभी एक मील धरती के नीचे बहने लगती। यही लुका-छिपी खेलती सरस्वती एक जगह जाकर बिल्कुल गायब हो गई। मारकंडा दरिया उसकी खोज में भटकता हुआ पता नहीं कहां-कहां बहता है। हकीकत में आज भी देखें, तो शिवालिक की पहाडिय़ों (सिरमौर) से निकलकर अंबाला, पटियाला, राजस्थान आदि जगहों से होती हुई रेत में छिपती व प्रकट होती, रणकच्छ के पास समुद्र में जाकर मिलने वाली सरस्वती नदी, इलाहाबाद जहां त्रिवेणी बनती है, वहां आकर बहुत लंबी दूरी तक बिल्∙ु ल अलोप हो जाती है मार∙ंडा दरिया नाहन राज्य ∙े बङाबठ स्थान से (जो कटासन दुर्गा मंदिर के नीचे है) निकलती है तथा यह अंबकाले (अंबाला) पास के जिले में प्रवेश करता है। समय के फेर व कुछ भूगोलिक कारणों से अब भी मारकंडा दरिया सरस्वती नदी से कोसों दूर है। मारकंडा दरिया आधे से ज्यादा तो सूखा ही पड़ा है। उसे इस खस्ता हालत में देखकर आज भी लगता है कि जैसे मारकंडा दरिया सरस्वती की तलाश में भटकता फिरता हो। उसकी जुदाई में मरता जा रहा हो। इकबाल पर मुझे बड़ा तरस आता था, वह मुझे मारकंडा ऋषि की तरह लगता था।

जिन प्रेमीयों का मिलाप न हो सके उनकी रूह भटकती रहती है। उनका जन्म व मृत्यु होती रहती है। जब तक वे इकट्ठे रहकर जीवन व्यतीत नहीं करते, तब तक वे जन्म-दर-जन्म फिर से जन्म लेते रहते हैं। मुझे एेसे लगता है कि जैसे मैं भी सरस्वती का ही दूसरा रूप हूं।
एक बड़ी ही मशहूर कहावत है, आंख से दूर, दिल से दूर।ÓÓ जब कोई हमसे दूर चला जाता है तो धीरे-धीरे हम उसे भूल जाते हैं। इकबाल भी मेरे दिल से निकलता जा रहा था। मैं तन-मन से मैक्स के साथ जुड़ती जा रही थी। जैसे चलती हुई रेलगाड़ी एक स्टेशन से दूर व दूसरे के नजदीक होती जाती है। उसी तरह मेरी हालत थी। मैं इकबाल से दूर व मैक्स के नजदीक होती जा रही थी। फ्रांस में मैं और मैक्स दिन में तो घूमते रहते तथा रात को सारी-सारी रात जागते रहकर हम कई-कई बार ताजा विवाहित जोड़े की तरह सैक्स करते रहते थे। शारीरिक मिलन के दौरान पहले दो-तीन दिन तो दर्द होता रहा था, चलते रहने व हिलने के कारण गुप्त अंग से कभी-कभी तेज दर्द भी होने लगता था, लेकिन बाद में सब कुछ ठीक हो गया तथा मुझे सैक्स का आनंद आने लगा था। मैं मैक्स को बता-बताकर संभोग करवाया करती थी। पूरे दो सप्ताह हम फ्रांस में रहे तथा इन दिनों में हमने सैक्स पर ही ज्यादा जोर दिये रखा था। शारीरिक सांझ के कारण मैक्स मुझे अच्छा तथा भला मानुष लगने लगा था।
एक बार मेरे भाई सलीम के जन्मदिन पर हमने फोटो खींची थी। जब फोटो वाली रील की धुलाई करवाई तथा फोटो बनकर आई तो उनमें एक भी ढंग की फोटो नहीं आई थी। फोटो में या तो दो-दो चेहरे नजर आ रहे थे या किसी फोटो में हमारे सिर कहीं और, तथा आंखें कहीं और नजर आ रहे थे। हमने लैब वाले से फोटो खराब होने का कारण पूछा तो उसने बताया कि फोटो खींचने से पहले हमने कैमरे को सही ढंग से फोक्स नहीं किया था। इसी कारण फोटो सही व स्पष्ट नहीं आई थी। उसके बाद हम कैमरा किसी फोटोग्राफर के पास लेकर गये तथा उसे लैंस को घुमाकर फोक्स करने का तरीका सीखा था। उससे पहले हम यह गलती कर रहे थे कि कैमरा वस्तु के बहुत करीब ले जाकर फोटो खींचते थे। जबकि फोक्स करने के लिए कैमरा विषय-वस्तु से एक खास तथा निर्धारित दूरी पर होना चाहिए। तभी फोटो बढिय़ा आती है। उसके बाद हमारी फोटो कभी भी खराब नहीं हुई थी। औरत व मर्द के संबंधों पर भी यही कैमरे के फोक्स वाला सिद्धांत लागू होता है। जब तक औरत व मर्द के बीच जरूरी फासला है, तब तक वे एक दूसरे का सही व स्पष्ट रूप देख सकते हैं। गुण-अवगुण जांच सकते हैं, उनकी पड़ताल कर सकते हैं, लेकिन जब दूरी मिट जाये, उनके जिस्म एक दूसरे के साथ जुड़ जायें तो फिर उन्हें सही दिखाई देना बंद हो जाता है। उन्हें एक दूसरे की बुराईयां नजर नहीं आती। उनकी आंखों के सामने साथी की सही तस्वीर चित्रित नहीं होती। मेरे और मैक्स के शारीरिक संबंधों ने भी अपना रंग दिखाया था। मैक्स के अवगुणों की ओर से मैंने आंखें बंद कर ली थी। मुझे उसकी बुराई भी अच्छाई ही लगती थी। मैक्स के शरीर से स्पर्श करते ही इकबाल के खयाल मेरे दिमाग से एेसे निकल जाते थे जैसे आधी रात में पक्षियों के घोंसलों में से अंडे गिर जाते हैं तथा उस टूटे हुए अंडे में से बच्चे के निकलने की संभावना हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। इस तरह नये यार के साथ दोस्ती के बाद मैं पुराने यार को भूलती जा रही थी।

मेरे स्कूल के सहपाठी लड़के-लड़कियां मुझे तलाश रहे होते, मैं मैक्स के टैंट में छिपी होती। मैं हर समय मैक्स के ही साथ चिपकी रहती थी। मैं मैक्स को जानना तथा भोगना व उसे अपने से वाकिफ करवाना चाहती थी।
आम तौर पर मैक्स दिन के समय काफी देर तक मुझसे कोई न कोई बहाना लगाकर गायब हो जाता था। वह कहां जाता था? क्या गोरख धंधा करता था? मुझे कुछ भी पता नहीं था, मैं उसके टैंट में जाकर उसका इन्तजार करती रहती थी। कभी-कभी वह जल्दी वापिस आ जाता था, लेकिन कई बार तो वह बहुत देर कर देता था, मैं उसके इन्तजार में तड़पती रहती थी। मुझे इकबाल का खयाल आ जाता तथा मैं रोने लगती या फिर मैं अपने साथियों के साथ कहीं घूमने चली जाया करती थी।

मैक्स जब भी बाहर से आता तो उसके कन्धों पर फौजियों के पिट्ठू बैग जैसा एक भारी-भरकम बैग टंगा होता था। उसमें क्या होता था? क्या नहीं? मैं नहीं जानती थी तथा न ही मैंने कभी उससे इस संंबंध में पूछा था। मैंने उस बैग को कभी खोलकर भी नहीं देखा था। मुझे मैक्स के दूसरे कार्यों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मेरा तो उसके साथ काम-क्रीड़ा करने तक का ही संबंध था।

हम पूरे फ्रांस में ही घूमते रहे थे, हर शाम हम किसी न किसी नये गांव या शहर में जाकर डेरा लगा लेते। इस तरह दिन बीत रहे थे। कैंपों की जगह बदल जाती थी। टैंटों में परिवर्तन आ जाता था। चादर, दरियां, स्लीपिंग बैग बदल जाते थे, लेकिन उनमें सोने वाले हम दोनों नहीं बदलते थे। वही रहते, वही मैं तथा वही मैक्स।

अक्सर मैं बीते समय को कोसती रहती थी। मैं मैक्स के साथ भी तो धूल फांकती थी। अगर इकबाल के साथ सब कुछ कर लेती तो वहां मैक्स की जगह मेरे साथ इकबाल ने होना था। मुझे इकबाल की तब बहुत याद आती, जब मैक्स दूर होता था। जब मैक्स आकर मेरे साथ लेट जाता तो मैं सब कुछ भूल जाती थी। मुझे अपनी पहचान भी याद नहीं रहती थी, भूल जाती थी कि मैं कौन हूं, हर समय काम का नशा मुझ पर हावी हुआ रहता था। भोग के समय मैक्स के बिना मुझे और कुछ भी नजर नहीं आता था, मैं अंधी हो जाती थी। कुछ समय मैं मैक्स को प्यार करती हुई हवा में उड़ान लगाती। जब सैक्स का गुब्बार निकल जाता तो मुझे वही घटीयापन का अहसास होता, वही घिनावनी भावनाएं फिर से आने लग जाती थी। मुझे मैक्स में से दुर्गन्ध व अपने आप से सड़ांध आने लग जाती थी। यहां तक कि अगर मैं शीशा देखती तो मेरा अपना ही अक्स मेरे ऊपर थूकता नजर आता, मेरे अन्दर बैठा कोई मुझे फटकार लगाता, जिससे डरकर मैंने शीशा देखना ही छोड़ दिया था। एेसा क्यों होता था, मैं भी नहीं जानती थी। एेसे लगता था जैसे मुझे पागलपन के दौरे पड़ते हों। इतनी बुरी हालत हो गई थी, एक मिनट भी आंख नहीं लगती थी मेरी, मैं सारी-सारी रात तड़पती रहती थी। मैक्स मुझे इस हालत में देखता तो मुझे व्हिस्की की बोतल ला देता था। शराब पीकर मुझे कोई सुध-बुध नहीं रहती थी, हां कुछ समय के लिए नींद जरूर आ जाती थी। नशे में मुझे कुछ पता नहीं लगता था कि मैं क्या कर रही होती हूं। बाद में मैक्स ही मुझे नशा रहित होने पर बताता था, ''तू शराबी होकर बहुत ही बढिय़ा सैक्स करती है, हर कोई औरत एेसा नहीं कर सकती, ज्यादातर को तो दो घूंट शराब पीकर ही नींद आ जाती है या कई उल्टीयां करके कपड़े गंदे करने लगती है, लेकिन तुझे तो जितनी मर्जी पिला दें, तू झेल जाती है, अरे भई तू तो कमाल की औरत है।ÓÓ
वैसे मैक्स मुझे कभी भी नशे के बिना न रहने देता, हर समय शराबी करके रखता। जब वह देखता कि मेरी शराब उतर रही है तो और पिला देता, सुबह उठते ही खाली पेट मुझे शराब पीने की आदत पड़ गई थी। काम शक्ति ने मुझे अपने वश में कर लिया था। मुझे शारीरिक संबंधों के आनंद व स्वाद की आदत पड़ गई थी। औरत व मर्द के इस तरह शारीरिक मिलन के बारे मैंने फिल्मों या टेलीविजन में ही देखा था या अपनी सहेलियों से सुना था। लेकिन अब मैं खुद ये सब तर्जुबे कर रही थी। एेसे संंबंधों की मैंने सिर्फ इकबाल के साथ ही कल्पना की हुई थी। अपनी कौम के किसी मर्द के साथ भी एेसा रिश्ता बनाने के बारे में मैंने सोचा भी नहीं था। लेकिन किसी अंग्रेज को अपना सब कुछ सौंप देने का तो मैंने कभी सपना भी नहीं लिया था। लेकिन फिर भी मैं इसका लुत्फ लेने लग गई थी। मैं मैक्स को अपने साथ लेटा देखती तो मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता, जैसे स्विच का बटन दबाने से कोई मशीन काम करती-करती रूक जाती है। मेरी शारीरिक जरूरतें मुझे सुन्न व निकमी कर देती थी तथा मैं मैक्स को अपने में समा लेती या मैं उसमें समा जाती। चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं, औरतों में मर्दों की तुलना में भोजन खाने की सामथ्र्य दोगुणा, शर्मिलापन चारगुणा, हिमत छ: गुणा व कामुकता आठ गुणा ज्यादा होती है।ÓÓ 

मुझे यह बात उस समय बिल्कुल ठीक लगती जब मैक्स तो जल्दी ही हाथ खड़े कर देता तथा मेरा दिल और मुहब्बत करने को करता रहता। मैक्स से मेरी शारीरिक भूख शांत नहीं होती थी। मुझे वह संतुष्ट नहीं कर पाता था, वह मुझे हाथ लगाते ही थक जाता तथा थके हुये शिकारी कुत्ते की तरह थोड़ी सी भाग-दौड़ के बाद ही हांफने लग जाता था। मेरे दिल खोलकर प्यार करने के अरमान अधूरे ही रह जाते थे, उन्हें पूरा करने के लिये मैं मैक्स के साथ खींच-तान करती रहती। इस तरह करते-करते मैं मैक्स सेजुड़ती हुई उसके और ज्यादा करीब होती जा रही थी। जैसे चुंबक लोहे को खींचता है, उसी तरह मैं काम की चुंबकीय शक्ति से उसकी ओर खिंचती चली जा रही थी।

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